अपना इतिहास जानना क्यों
जरुरी है
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मछुआ समुदाय का एक विशाल तबका अपनी सभी जातियों में एकजुटता का जबदस्त पक्षधर है। बड़ी -बड़ी बातें होती हैं। ताने -बाने बुने जाते हैं मगर सफलता कुल मिलकर नगण्य। स्थिति वहीँ आकर रुक जाती है, जहाँ से सूत्रपात होता है। ऐसा नहीं है कि इस तबके की नियत में कोई खोट है अथवा उनके प्रयासों में कमी का आभाव होता हो। वह पुरजोर रूप से एकता -एकता का उद्घोष करते हैं ,मगर लोगों के कानो में जूं तक नहीं रेंगती। ऐसा क्यों ? क्या कारण है कि इतने शसक्त प्रयासों के बाद भी स्थिति निर्मम है।
इसका महतवपूर्ण कारण है कि हम स्थानीय स्तर पर तो एकजुट हो जातें हैं मगर देश के अन्य भागों में ऐसी स्फूर्ति नाममात्र को ही मिलती है। अब प्रशन स्वाभाविक है कि राष्ट्रीय स्तर पर हम अपना संगठित रूप क्यों नहीं दिखा पाते , जैसा की स्थानीय स्तर पर दिखाई पड़ता है। इसका सबसे बड़ा कारण है अपने एक होने का अल्प ज्ञान। दरअसल २० करोड़ की आबादी वाले समुदाय के 95 फीसदी लोगों को आज तक पता ही नहीं कि हमारी और भी बहुत सी उपजातियां हैं। उन्हें यही नहीं पता कि हमारे और भी भाई - बहन हैं। इसीलिए हमें इतिहास की आवश्यकता पड़ती है। इतिहास हमें बताता है कि हमारे पिता कौन हैं। पिता से अर्थ मूल जाति से है। जब आपको पिता का पता चलता है तो अनुवांशिकता उत्पन्न होती। फिर रक्त में उत्तेजना प्रवाहित होती है। उत्तेजना उत्कृष्ट भाव में आती है तो रक्त का बहाव अपने रक्त का अनुसरण करता है। रक्त का संचरण अनुकूल होता है तो एकजुटता स्वत: उत्पन्न हो जाती है। मै इसी रक्त के उबाल को देखने के लिए इतिहास के पन्नो पर खुद को तलाशता हूँ। कि ना जाने कब २० करोड़ में प्रवाहित रक्त के डीएनए का मिलान हो और कब राष्ट्रीय स्तर पर रुसी क्रांति जैसा शंखनाद हो।
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मछुआ समुदाय का एक विशाल तबका अपनी सभी जातियों में एकजुटता का जबदस्त पक्षधर है। बड़ी -बड़ी बातें होती हैं। ताने -बाने बुने जाते हैं मगर सफलता कुल मिलकर नगण्य। स्थिति वहीँ आकर रुक जाती है, जहाँ से सूत्रपात होता है। ऐसा नहीं है कि इस तबके की नियत में कोई खोट है अथवा उनके प्रयासों में कमी का आभाव होता हो। वह पुरजोर रूप से एकता -एकता का उद्घोष करते हैं ,मगर लोगों के कानो में जूं तक नहीं रेंगती। ऐसा क्यों ? क्या कारण है कि इतने शसक्त प्रयासों के बाद भी स्थिति निर्मम है।
इसका महतवपूर्ण कारण है कि हम स्थानीय स्तर पर तो एकजुट हो जातें हैं मगर देश के अन्य भागों में ऐसी स्फूर्ति नाममात्र को ही मिलती है। अब प्रशन स्वाभाविक है कि राष्ट्रीय स्तर पर हम अपना संगठित रूप क्यों नहीं दिखा पाते , जैसा की स्थानीय स्तर पर दिखाई पड़ता है। इसका सबसे बड़ा कारण है अपने एक होने का अल्प ज्ञान। दरअसल २० करोड़ की आबादी वाले समुदाय के 95 फीसदी लोगों को आज तक पता ही नहीं कि हमारी और भी बहुत सी उपजातियां हैं। उन्हें यही नहीं पता कि हमारे और भी भाई - बहन हैं। इसीलिए हमें इतिहास की आवश्यकता पड़ती है। इतिहास हमें बताता है कि हमारे पिता कौन हैं। पिता से अर्थ मूल जाति से है। जब आपको पिता का पता चलता है तो अनुवांशिकता उत्पन्न होती। फिर रक्त में उत्तेजना प्रवाहित होती है। उत्तेजना उत्कृष्ट भाव में आती है तो रक्त का बहाव अपने रक्त का अनुसरण करता है। रक्त का संचरण अनुकूल होता है तो एकजुटता स्वत: उत्पन्न हो जाती है। मै इसी रक्त के उबाल को देखने के लिए इतिहास के पन्नो पर खुद को तलाशता हूँ। कि ना जाने कब २० करोड़ में प्रवाहित रक्त के डीएनए का मिलान हो और कब राष्ट्रीय स्तर पर रुसी क्रांति जैसा शंखनाद हो।
लेखक -सुरेश कश्यप
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