Sunday, July 7, 2013

क्या तुम अजंता एलोरा के बारे में जानते हो?

                         क्या तुम अजंता एलोरा के बारे में जानते हो?

               भटकने को लेकर बहुत सी बाते कही गई है। कोई यायावर है तो कोई यात्री। केाई भटकता है तो कोई भ्रमण करता है। केाई कहता है कि पे्रम के सहारे इंसान दुनिया में भटकता है। वह भटकना उसको पे्रम के पास ले जाता है और भटकता है। इंसान सदियों से भटकता रहा है। सदियों से भ्रमण करता रहा है। रहस्यों को भेदता रहा है। उसके अंदर इस तरह की अजीब लालसा रही है कि वह भटकता और भेदता हुआ रचता रहा है। यही उसके बाहर और भीतर का सर्जन करता रहा।
एलोरा अंजता। महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है ये प्राचीन गुफाएं। जिनके बारे में न जाने कितनी बाते मन में थी जो साफ होती गई। वर्धा से मुम्बई वहां से मैं और बृजेश औरंगाबाद पहुंचे। रेल का सफर और रेलमपेल। जिद थी कि गुफाएं देखनी हैं। औरंगाबाद से करीब चालीस किमी एलोरा की गुफाए हैं। बस से वहां गये। ये गुफाएं इतिहास में दफन थी। इतिहास इनके बारे में अंदाज से कुछ कहता है। यहां जाते हुए जिस तरह से अतीत अपने आगोश में समेटता है। वह इतिहास से दूर कहीं मनुष्य की कर्मठता की याद दिलाता है। पहाड़ को काटकर उससे सर्जन करना। यह मनुष्य का दुस्साहस ही रहा है जो ऐसा करता रहा है। ये गुफाएं अलग-अलग जगहों पर बनी हैं। जिनके बारे में कहा जाए कि ये महात्मा बुद्व के चाहनेवालों ने बनायी। इनको बनाने का तरीका हमें नहीं पता है। इनके बारे में कहा जाए तो वह यही कि इनको पत्थरों को तराशकर बनाया गया। मनुष्य पत्थर से लड़ता रहा है। उसकी कठोरता को अपने लिए चुनौती मानकर चलता है। जिससे उसके अंदर साहस का संचार होता रहा। यही उसके सजृन का आधार रहा होगा।

ये महात्मा बुद्व की याद को सार्थक करती है। बुद्व वह नायक था जिसने वर्ण व्यवस्था को पहली बार चुनौती दी। हिंदू धर्म के शास्त्रों को सवालों के घेरे में खड़ा किया। जिस तरह से उसने जीवन की तमाम भौतिक सुविधाओं को ठुकराकर तपस्वी जीवन का चुनाव किया। जीवन की संभावना को साकार किया। यहां बुद्व की भव्य और दिव्य मूर्तिया हैं। बड़े-बड़े सभागार है। उनके अंदर बारीक काम है। उनको देखते हुए बार-बार श्रम करते हुए हाथ याद आते हैं। उनका सौंदर्य याद आता है। महात्मा बुद्व के सजल उर शिष्य याद आते हैं। जो वाकई उनके ब्रह्ंराक्षस बने। 
यहां की गुफाएं हमारे मन में जिस तरह की धारणा गुफाओें को लेकर होती है उसको तोड़ती हैं। यह साबूत पत्थर की गुॅफाएं हैं। ये सुरंगोंवाली गुफाएं नहीं है। एलोरा की गुफाएं जिस तरह की चट्टानों को काटकर बनायी गई वह कारीगरी और कलात्मकता दोनों ही स्तरों पर अद्भुत हैं। जिस तरह से इतिहास पढ़ाया जाता है उसमें राजा और रानी आते हैं वहां इतिहास के वे पात्र और स्थल नहीं आते जिनसे मानव समाज का सौंदर्य सर्जन उजागर हो। इतिहास जितना रुचिकर विषय है उसको उतना ही बोझिल बनाकर पढ़ाया जाता है। यही वजह है कि इतिहास और मिथक में मिथक ज्यादा प्रभावित भी करता है और आकर्षित भी करता है। इतिहास या तो तारीखों के चक्कर लगाता है या फिर शासकों की मूर्खताओं पर। जबकि इतिहास तारीखों से बाहर और भीतर होता है। उसको खोजना इतिहासकार का काम है। एलोरा का इतिहास तारीखों में नहीं है। वह मनुष्य के दुस्साहस और उसकी बीहड़ता का बयान करता है। क्या वह भी हो सकता है। हार मानना और ठानना। यह मनुष्य के ठान लेने का साहस है। उस पार जाने का साहस है। यह तब भी संभव था और अब भी है। 

एलोरा से अजंता करीब एकसौ दस किलोमीटर है। सीधी कोई बस न होने के कारण यहां से औरंगााबाद फिर वहां से अजंता के लिए रवाना हुए। इस यात्रा में जिस तरह से सफर हुआ वह अजीब ही था। अजंता और एलोरा के बारे में यही धारणा थी कि दोनों ही एक ही जगह पर है। पहली ही धारणा टूट गई। दोनों दूर-दूर है फिर दोनों में बहुत भारी अंतर है। एलोरा की गुफाएं अलग-अलग जगहों पर हैं वही अजंता एक ही पहाड़ को काटकर बनायी हुई गुफा है। एक ही पहाड़ को काटकर यू आकार का पहाड़ है। जिसको काटकर उसके अंदर गुफाओं का निर्माण करना, सच में बहुत बड़ा साहस रहा होगा। अजंता पहुंचे तो वहां जापान सरकार की बसे चलती हैं, जिनसे आप गुफा तक जा सकते हैं। फिर वहां से पैदल चलते हुए गुफा का भ्रमण करो।
अजंता पहाड़ पर चलते हुए विराटता का अनुभव होता रहा। कितना अदभुत अनुभव था वह। अंदर महात्मा बुद्व की मूर्तिया। अजीब तरह की गंध। चारों तरफ पहाड़ का विराट नजारा। कलाकारों के लिए वाकई अनोखी जगह है यह। जिसके बारे में जिस तरह से कहा जाए वह उसको और भी खूबसूरत बनाता है। बीहड़ता में सर्जन करना बीहड़ लोगों के बस की ही बात है। पहाड़ों के पार जाना। वहां से सत्य की खोज करना। कलाकार हमेशा अपने लिए खुद रास्ता बनाता है। अपने को रचता है। ये ऐसे ही कलाकार जिनके द्वारा ये गुफाएं बनायी गई। एक-एक गुफा अपनी पहचान बताती है। एक-एक में अनोखापन है। उसके भीतर और बाहर अतीत के निशान है।
अंतिम गुफा में बुद्व की निद्रा में लीन अनोखी मूर्ति है। बुद्व का मंदिर है। जो इन फकीरों की साहसिकता का अनूठा प्रमाण है। ये लोग पंडि़तों की तरह पेटू नहीं थे। इनका जीवन ही इनका सिद्वांत था। ये किसी राजा के आदेश से ये निर्माण नहीं करते। ये स्वयं ऐसा निर्माण करते हैं कि इनकी साहसिकता का प्रमाण खुद ही मिलता है। छेनी हथोड़ी की आवाज वहां आज भी सुनी जा सकती हैं। वहां विरानी सी विरानी नहीं है। मनुष्य के श्रम का उत्साह और उत्सव दोनों हैं। पहाड़ और नदी के साथ जीवन का अनुभव है। प्रकृति और मनुष्य का रागात्मक संबंध है। जहां मनुष्य अपने होने का अहसास कराता है, प्रकृति को किसी भी तरह का नुकसान किये बगैर। यहां धन कुबेर नहीं है। यहां से लौटते हुए उदासी नहीं, कुछ करने का साहस पैदा होता है। अपने होने का मतलब मिलता है। किसी कुबेर के मंदिर की यात्रा करना और इन गुफाओं की यात्रा करने में अंतर है। यहां आपको भगवान नहीं, अपने होने का अहसास होता है। यह अहसास ही हमें अपने पुर्खो से जोड़ता है। मनुष्य की परम्परा से जोड़ता है। यहां पास में साई बाबा का मंदिर भी है। वहां भी भटकने गये थे। वहां कुबेर का आतंक इस कदर हावी रहा कि उसके यहां खामोशी ही आवाज बनी। धनपतियों का व्यापार और आस्था का कारोबार। 
अजंता का नजारा प्रकृति के साथ मनुष्य के तादात्म्य का नाजारा है। पहाड़, नदी और मनुष्य के साथ का नजारा है। वहां किसी तरह का कारोबर नहीं है। तुम जाओ और अपने को तलाशों। लौटो और फिर वहां जाओ। मुक्ति का अनुभव देता है यह दर्शन। यहां से लौटते हुए मनुष्य बाहर और भीतर से हल्का होगा। मनुष्य भटकता है और हल्का होता है। अपने कलाकार को तराशता है। यह तलाश और तराश ही कलाकार को बनाती है। भटकने का अपना सुख होता तो दुख भी होता है। दोनों को साथ लेकर भटकते हुए फिर वर्धा आ गए।


 कालु लाल कुलमी


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