Wednesday, October 23, 2013

विधर्व और महाराष्ट का शेर वीर शिवाजी

 विधर्व और महाराष्ट का शेर वीर शिवाजी !!

मात्र १२ -१३ वर्ष की उम्र में ही वीर शिवाजी के पिताजी के देहांत होने के उपरांत वीर शिवाजी की माता श्री ने ही अपने राज्य की रक्षा 
और प्रजा के हित के लिए राज्य धर्म निभाने हेतु अपने बेटे वीर शिवाजी को कहा की बेटा जल्दी -२ सारे राजनेतिक फेसले लेने हेतु अब तुम्हे ही राज्य की बागडोर और सिंघासन सभालना ही पडेगा उसके अलावा और कोई विकल्प ही नहीं था, क्युकी उस समय स्त्रियो की का विकाश इतना नहीं हुआ था की उनकी माँ राज्य की बागडोर संभालती ....?

लिहाजा आखरी विकल्प के तोर पर वीर शिवाजी को राज्य का भार अपने कोमल कंधो पर उठाना ही पड़ा लेकिन एक दिक्कत भी थी वो थी राज्य तिलक अभिसेख की जो की राज्य के प्रोहहित जिन्हें हम ब्ह्रामण के रूप में सभी भारत के लोग जानते हे उसके द्वारा ही तिलक धारण होने के पश्चात ही मान्यता मिलने का चलन था क्युकी वीर शिवाजी भी पिछड़े/दलित वर्ग से समन्धित थे ...? एक और बात की सामंती लोगो की कुटिल चालों को कुचक्र भी चल रहा था ...?

इसलिए कोई भी ब्ह्रामण और प्रोहहित उनका राज्य अभिसेख /तिलक अभिसेख करने को तेयार नहीं हुआ और यह भी की इतनी छोटी सी उम्र का बालक क्या राज्य का काम -काज और राज्य का भार अपने कोमल कंधों पर उठा भी सकेगा ...? बस इसी उहा - पोह में पूरे राज्य के महाराष्ट में यही आम अवाम में तरह-तरह की बाते फेल गई लेकिन यह भी कड़वा सच ही था उस समय का भी बिगेर तिलक अभिसेख के आखिर राज्य का काम-काज केसे हो ...?

उनकी माँ जो राजनीती और कूट निति में माहिर थी उनकी माँ ने अपने कुछ विश्वसनीय दूतों को शरद के पा भी भेजा उनके शूत्रो और दूतों ने आखिर में एक गरीब ब्ह्रामण इलाहबाद /वारानिशी गंगा के किनारे एक गरीब ब्ह्रामण मिल ही गया आज उत्तर प्रदेश के राज्य के रूप जाना जाता हे,उस गरीब ब्ह्रामण और प्रोहहित से बात की और वो मान गया तब जाकर वीर शिवाजी का राज्य अभिसेख/तिलक अभिसेख हुआ था ...? तब हुई नए सोच की जंग शुरू ...?

अब बात आती हे की में यह कहानी जो इतिहासिक और सत्य हे क्यों लिख रहा हूँ, तो इसका मुख्य कारण उस घटना से कराना 
चाहता हूँ,जब वीर शिवाजी ने मुगलों की सेनाओ को शिकस्त देने के लिए सभी नीति/राजनीती/कूट नीति से काम लिया जो की 
उस समय मुगलों का स्वर्ण युग चल रहा था ...?

उनसे लोहा लेना,लोहे के चने चबाने जेसा था लेकिन प्रजा और आम अवाम जो ग्रामीण और किसान था वीर शिवाजी पर भरपूर विश्वास करता था इसलिए अपनी सेना में भर्ती करने में आम अवाम से सहयोग भी मिला था,वीर शिवाजी को पता था की सारी ताकत वास्तविकता में हे कहा ...?

वीर शिवाजी ने अपनी सेना में भर्ती के लिए आम अवाम मजदूर और किसान को ही शामिल किया और सारे सामंतीओ और देश्मुखों को भी शामिल किया जिससे उनकी ताकत में और इजाफा हुआ लेकिन बड़ी ही मुश्किल से अपनी सेना में शामिल 
सेना की संख्या केवल १० हजार के आसपास हो पाई थी इससे सीधे तोर पर मुगलों से टकराना आत्मघाती और अपनी प्रजा को खतरे में डालने जेसा कदम होता ....?

अब वीर शिवाजी ने सोचा की अपने राज्य को बचाया केसे जाए क्योंकी राज्य की कर प्रणाली ने और केवल विकाश पर बल न देने के कारण आम किसान और मजदूरों की उस समय कमर तोड़ दी थी क्युकी सूखे की स्थिति .में भी कर प्रणाली में कोई राहत नहीं दी जाती थी और ना ही कोई सुनने वाला था ..? 

अब वीर शिवाजी ने सोचा की ऐसा किया क्या जाए जिससे बिगेर लड़ाई के ही मुगलों को अच्चा पाठ पडाया जाए ...? जिससे उनके आम अवाम को न्याय मिल सके और आम अवाम खुशी के कुछ पल गुजार सके जिसके लिए बड़ी ही परिपक्ता की जरुरत थी वीर शिवाजी ने अपनी माता श्री और कुछ अच्छे सलाहकारों की बाते सुनी और एक निर्णय लिया जो की इतिहास में 
दर्ज हो गया ...? वो थी एक ऐसी नीति जिसमे सेना के साथ गधो का भी इस्तेमाल हुआ था ...?

वो था आम और मजदूर किसान की सेना आम अवाम की सेना जो १० हजार के आसपास थी जो की पुरे जोश में थी,जिसमे ३० हजार गधो का भी इस्तेमाल हुआ था केवल मिली हिदायत के पालन पर ही ध्यान दिया गया था क्युकी वीर शिवाजी पर पूरा विश्वास आम अवाम को था उन सभी सेनिको को कहा गया की रात के अँधेरे में मुग़ल दूत के महल की घेरा बंदी करनी हे वो भी तीन से चार किलो मीटर दुरी से अब शुरू हुआ सही खेल जिससे कई राजनितिक दिग्गज भी सोचने को मजबूर हो जाए ...?

की किया ऐसा क्या था जो सभी मजबूर हो जाए ...? की वाह ऐसे भी भारत के सपूत थे इसी भारत में और इसी धरती पर जन्मे में भी इस वीर पुरुष और योद्धा छत्रपति वीर शिवाजी महाराज को कोटी-कोटि प्रणाम करता हूँ, केवल १० हाजार सेना को दो मशालो को ले जाना था बाकी २० हजार गधो को केवल चार मशाले ले जाने का हुकुम दिया गया था कुल सेना हुई मशालों की ९० हजार जो की एक सही नीति थी और कारगर भी साबित हुई केसे ...? जब मुग़ल सम्राट के दूत के महल की और कूच किया गया और इसकी सारी कुल दुरी तीन से चार किलो मीटर रखी गई और इसी दुरी को कायम रखते हुए ही उस जगह के महल के चारो और केवल एक चक्कर लगाना भर था ?

केवल एक सन्देश देने के लिए कुटिल चालों का कुटिल जवाब था यह नीतिगत फेसला जेसे ही मुग़ल दूत के महल का एक चक्कर पूरा हुआ महल की ऊँची मीनारों पर बेठे मुग़ल सेना के सिपाई सामने से एक बड़ा लश्कर सेना का मशालों के साथ आता दिखाई दिया और यह देखकर घबरा गए और भागे अफरा -तफरी और होच-पोच में की जल्दी से जल्दी इस सूचना अपने आका तक दे दी जाए ...? और यह खबर उस समंधित मुग़ल दूत को दे दी गई ...? बस फिर क्या था उस मुग़ल दूत ने सोचा की अब तो 

महल पर हमला हो ही जाएगा किसी भी वक़्त इस मुग़ल दूत को समझ नहीं आया की करने तो आये थे कर वसूली पर युद्ध होगा वो भी एक हिन्दू रजा के साथ पर इतनी सेना के साथ कभी उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था क्युकी जासूसों द्वारा,खबरों द्वारा तो इस मुग़ल दूत को पता था की यह राज्य अब सुर वीरों से कमजोर हो चूका हे इनके पास अब गिनती -चुनती की ही सेना होगी पर हुआ और जो देखा ...

बिलकुल उलटा ही ...? तब क्या था यह खबर तुर्रंत फेसला लेने के लिए दिल्ली के सम्राट को भेजी गई और दिल्ली के सम्राट ने एक फेसला लिया और खबर भिजवाई की युद्ध न किया जाए और केवल शान्ति से ही हल निकला जाए ताकि आम अवाम में मुगलों का जज्बा और विश्वास बना रहे की वो अमन - पेसामंद इंसान भी हे ...? लेकिन इसके पीछे की कुटिल चाल जो की मुग़ल चाहते थे की वो हिस्सा राज्य का कही बगावत की वजहों से कहीं हाँथ से न निकल जाए,इसलिए शांति वार्ता की जाए ...?

जबकि मुग़ल दूत की भी सेना करीब एक लाख के आस-पास थी जिसमे वो सारे लड़ाके शामिल थे जिसमे हांथी -घोड़े -ऊँठ टोपे और पेदल सेना भी जो की खूंखार सेना मानी जाती थी और काफी नीर्दई थी ...?

इधर वीर शिवाजी की पूरी सेना जेसा की अभी मेने कहा अपनी सेना को लेकर और उस मुग़ल दूत के महल का चक्कर लगाकर 
वापिस अपने पड़ाव पर आ गई की क्या संदेशा आता हे देखते हे और क्या होता हे ...जेसा की वीर शिवाजी सोच रहे थे और वेसा ही हुआ खबर आई की मुग़ल दूत के महल से वीर शिवाजी को बड़ी ही इज्ज़त के साथ बुलाया गया अपना पक्ष रखने के लिए और वार्ता शुरू हुई जिसमे विजय आम अवाम मजदूर किसान की और वीर शिवाजी की हुई सारे लगान माफ़ कर दिए गये जो कर के रूप में लिए जाते थे और तय किया गया और शांति संधि की गई और मुगलों को वो सारी बातें माननी पड़ी जो वो कभी नहीं चाहते थे ...?

धन्य हे यह भारत की धरती जिसने ऐसे सपूतों को जन्म देकर एक इतिहासिक निर्णय लिया और गलत सोचो को सीधा सन्देश भी दिया और अवाम की रक्षा करने से कभी पीछे नहीं हटे - डटे रहे आवाम अवाम के अधिकारों के लिए की अगर सही तरह से कोई भी लड़ाई लड़ी जाए तो जीत निश्चित हे इसलिए इतिहास खलिश पड़ने के लिए नहीं हे कुछ उससे सीखने के लिए भी हे ...?

नोट: अगर कोई त्रुटी हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ केवल आँकलन करने और अदभुत शिक्षा की लेने के लिए केवल नहीं तो इसे केवल कोरी गप्प मानते हुए पड़े छोड़ दे ...!

जय हिन्द ...जय समाज ... जय भारत ...

लेखक/रचनाकार: रामप्रसाद रैकवार ...

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