Monday, January 4, 2016

Recruitment of Constables (आरक्षी) in UP Police

UP Police Recruitment and Promotion BoardGovernment of Uttar Pradesh (UP)
Uttar Pradesh Police Recruitment and Promotion Board (UPPRPB)
19-C, Tulsi Ganga Complex, Vidhan Sabha Marg, Lucknow - 226001 (UP)
Published At http://www.SarkariNaukriBlog.com 

Recruitment of Constables (आरक्षी) in UP Police

Online applications are invited for the following 34716 posts of Constables (आरक्षी) in UP Police :

    UP Police
  • Constables (Male) :  23200 posts
  • Constables (Female) :  5800 posts
  • Constables in PAC :  5716 posts
Pay Scale : Rs. PB-1  Rs. 5200-20200 Grade Pay Rs. 2000/-


How to Apply : Candidates can apply Online at UP Police website from from 25/01/2016 to 24/02/2016 for female constable posts and from 18/01/2016 to 17/02/2016 for male constable posts.  

Please visit http://uppbpb.gov.in for more details and online submission of application.

Friday, May 8, 2015

फूलन देवी विश्वविद्यालय अभियान

                                      फूलन देवी विश्वविद्यालय अभियान

                                                                                                                                                                                  

                                                                      लेखक  
   जितेंद्र सोनकर


21वी सदी क्रांति का दौर चल रहा हैविश्व के अलग अलग हिस्सों में क्रांति हो रही हैभारत भी इससे अछूता नहीं रहा हैआजादी के बाद से ही तमाम आंदोलन में भारत की भूमिका रही हैअन्ना के आंदोलन को लोग भूल भी नहीं पाये है। अब इसी श्रंखला में तमाम सामाजिकराजनीतिक आंदोलन हो रहे है लेकिन सबसे अधिक राजनीतिक आंदोलन को ही बाल मिल रहा हैसामाजिक आंदोलन में छोटे मोटे सामाजिक संगठन को महत्व मिला है ।लेकिन कुछ हो पाना नामुमकिन लग रहा हैतमाम अध्ययनो ने साबित किया है कि शिक्षित वर्ग ही देश में क्रांति कर रहा हैशिक्षित और बुद्धिजीवी वर्ग में मामूली सा अन्तर नहीं पर एक दूसरे के विपरीत है और सशक्त रूप से मजबूत भी है । जरूरी नहीं कि शिक्षित वर्ग बुद्धिजीवी वर्ग में तब्दील हो जायपरंतु बुद्धिजीवियों का शिक्षित होना ना होना कोई बड़ी बात नहीं है । सामाजिक ध्रुवीकरण का केंद्र हर समाज रहा हैं
जिसने समाज के बदलने को कल्पना भी की है , इसी कल्पनाशीलता को हकीकत में बदलने कुछ नौजवान ने सामाजिक पटकथा भी लिखी है।जिसमें से एक नाम बलराम बिंद का भी है जो मछुआ समाज के उभरता नेतृत्व है,कश्मीर से कन्या कुमारी तक अपने सामाजिक उत्तरदायित्व का डंका बाजा रहा है । इस युवा कि उम्र तीस साल है और इसकी उपलब्धियों को नजरअंदाज करना सामाजिक बदलाव से मुँह मोड़ने जैसा है । यह युवा सोशल मीडिया पर यानी फेसबूक पर निषाद मीडिया नामक ब्लॉग लिखना शुरू किया उस पर जाल में फाँसी मछली के फोटो डाला तो उसे जुड़े लोगों के हंसी के पात्र बना लेकिन वह अपने लक्ष्य से भटका नहीं देखते ही देखते इस युवा के हजारों फ्लोवर हो गए कई सामाजिक संगठन के प्रतिनिधित्व करने लगा वह जहाँ भी जाता उसे फूल मालाओं से स्वागत करने लगे लोग वह मछुआ समाज के प्रतिनिधित्व भी करने लगा बुद्धिजीवीयों के बीच हंसी के पात्र बनने वाले इस शक्स ने इस बार फिर एक नाया आंदोलन छेड़ दिया है 7 दिसंबर 2014 को फूलन देवी विश्वविद्यालय अभियान के आवाज दे दिया एक हफ्ते में इस अभियान इसे अभियान प्रतिवाद मिलने लगा दो दिन के अन्दर सोशल साइट पर और सामाजिक संगठनों में इस अभियान की चर्चा होने लगी ।
फूलन देवी के चिंगारी फिर से कैसे भड़क गई आखिर मछुआ समाज से फूलन देवी के नामांकरण से क्या संबंध तमाम सवालों के के जबाब महिला सशक्तिकरण और महिला मुक्ति से जुड़ा है । फूलन देवी को मछुआ समाज में मल्लाहनिषाद तुरहा,केवट बिंद मांझी राइकावर गौरआदि के रूप में जाने जाते है । फूलन देवी के जन्म इसी जाति में एक जाति मल्लाह में हुआ था जिसका व्ययवसाय मछली पकड़नाऔर नाव चलना रहा है । फूलन देवी के जन्म उत्तर प्रदेश के पूरवा में 10 अगस्त 1963 को मल्लाह परिवार में हुआ था । उस क्षेत्र में इस जाति हो उंच नीच की रृष्टि देखा जाता था । भारतीय नारियों को जहां कोमलता का पर्याय समझा जाता है वहीं अगर वह अपने रौंद्र रुप में आ जाएं तो दुर्गा जैसी हो जाती हैं. 1963 में जालौन जिले के कालपी क्षेत्र के शेखपुर गुढ़ा गांव में जन्मी फूलन देवी पर बचपन से ही अत्याचार होते रहे लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।  11 साल की उम्र में फूलन देवी का विवाह कर दिया गयाउसके बाद कुछ दबंगों ने बेहमई गांव में फूलन देवी को निर्वस्त्र कर सबके सामने घुमाया और उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया
इसके बाद संघर्ष के दास्तान यही ख़त्म नहीं हुई । मालिक ने जब मजदूरी करने गई फूलन देवी के गाँव के मुख्य के लड़का के छेड़छाड़ करने के विरोध करने के बाद उस पर खुद गाँव के पंचायत में कुलटा साबित कर दिया गया । उसके बाद गाँव के गाँव के दंबंगों के द्वारा उसकी इज्जत लूट ली गई फिर फूलन देवी के अपहरण करवा लिया। अनोखी दास्तां हैं। प्रतिरोध की संभावनाओं की तलाश की जा सकती है। उस दमन के खिलाफ छोटे स्तर पर ही सही आंदोलन की जमीन तैयार की जा सकती है। शोषितों-पीडि़तों को लामबंद किया जा सकता है। इतना तो माना ही जा सकता है कि चारों ओर के दरवाजे बंद हो जाने के बाद तात्कालिक आवेग में फूलन देवी को बंदूक के अलावा कोई चारा नजर नहीं आया। किंतु विरोधियों से बदला लेने के बाद भी उस कृत्य से चिपके रहना किस मनोदशा का परिचायक हैविशेष परिस्थिति में आत्मसमर्पण हार या पराजय नहीं होती बल्कि कई बार वह प्रतिरोध का रचनात्मक रूपांतरण भी होती हैं।
जब फूलन इस अत्याचार और घिनौने कृत्य के बाद फूलन देवी ने चंबल का रास्ता पकड़ लिया और बदले की आग में झुलसते हुए 1981 में अपने साथी डकैतों की मदद से ऊंची जातियों के गांव में 20 से अधिक लोगों की हत्या कर दी. 12 फरवरी 1983 को फूलन ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के चरणों में बंदूक रखकर हजारों की भीड़ में अपने साथियों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया। फूलन 11 साल तक जेल में रहीं । 1994 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने उनका मुकदमा वापस लेकर उन्हें रिहा कर दिया. फूलन देवी अत्याचार,प्रतिशोध और विद्रोह की एक फिर शुरू हुआ शुरू हुआ राजनीति के की शुरुआत हुई रिहा होने के बाद समाजवादी पार्टी से सांसद चुनी गई 1996 में सांसद बनाने के बाद महिलाओं के प्रति भेदभाव फल-फूल रहा है और धर्म,जातिअमीरगरीबशहरी-ग्रामीण विभाजकों में समान रूप से मौजूद थे।
इस सब से हताश निराश मध्यवर्ग के लोगों को जगाने का काम किया और महिला सशक्तीकरण इतिहास रचने के काम किया महिलयों के शोषण और हाशिये के समाज के आवाज बनाने लगी । फूलन देवी को इंसाफ की देवी और गरीबों के हितों के लिए संघर्ष करने वाली बता कर टाइम मैगजीन “फूलन को इस आधुनिक राष्ट्र के सबसे दूर्दांत अपराधियों के रूप में याद किया जाएगा.जब फूलन देवी के राजनीतिक और सामाजिक तेजी से समाज में हो रहे बदलाव ने हांशिये के समाज के आवाज बनने लगी की राजनीतिक गलियारों में उसे देख का लोग जलाने लगे कि जिसे हम शोषण किए आज हमारे ही सिने पर ताल ठोक रही है । अंत एक साजिश के तहत उसे 25 जुलाई2001 को आशोक रोड स्थित हत्या कर दिया गई ।
जिस समाज से यह है उस समाज के लोगो ने संगठन के माध्यम से आवाज उठाने के काम किया लेकिन मीडिया और सरकार के कान पर जु रेगने के समान था क्योकि जनसंख्या तो बहुत जनसंख्या में थी लेकिन आर्थिक रूप से हंशिए के समाज थी अंत इस समाज के आवाज ना सरकार तक पहुँचने में आसमार्थ थी आज भी यह संगठन सी॰बी॰आई से जाँच के माँगा करता रहता है । लेकिन सत्ता की नजर उस तरफ नहीं जाती है । फिर भी फूलन देवी के संगर्षों पर शेखर कपूर ने बैडिट क्वीन फिल्म बना कर प्रदर्शित किया 1994 में बैडिट क्वीन बनी तो लोगों ने फूलन देवी को बहुत करीबी से जानने के कोशिश भी कि उसका संघर्ष गाँव के यथार्थ को चित्रण करता है । उसके संघर्षों को सामाजिक संगठन और महिला संगठन तेजी से बढ़ते रहते है । जब भी कभी किसी महिला और लड़की हिंसा के शिकार होती है तो फूलन देवी हर किसी के जुबान पर होती है ।


फूलन से संघर्षों को देखते हुए बलराम ने फूलन विश्व विघालय अभियान को बढ़ाया है । बलराम के प्रयास को सलाम किया जाना चाहिए । जिस समय युवा अपने रोजगार की ओर मुँह तक कर खड़े रहते है की रोजगार मिले और हंसी खुसी से जीवन व्यतीत हो ऐसे में निषाद समाज का उभरता नेतृत्व बलराम बिंदनिषाद समाज को एक सम्मान जनक स्थिति पर पहुँचना चाहता है । तमाम राजनीति मंच इस समाज के वोट से अपनी सीट बढ़ा रहे है । अकेले उत्तर प्रदेश में अगर निषाद संस्कृति के जातियों संगठित हो जाय तो उत्तर प्रदेश की राजनीति भी मछली की तरह जाल में फस सकती है । जिस समाज में फूलन जैसे नेतृत्व युवाओं का मार्ग दर्शक कर रही है ऐसे समय में बलराम जैसे साथी के लिए बड़ी बात नहीं है जब फूलन देवी विश्व विघालय की स्थापना समाज शास्त्रीय रूप में हो जिसे समाज के के स्वरूप को गहराई से से समझा जा सके जो महिला और हाशिए के समाज के प्रस्थितिकी को समझा जा सके इस फूलन देवी विश्व विघालय की स्थापना का उद्देश्य है । जिससे कि दलित SC/OBC/ST/के बदलते आयाम को समझा जा सके वा राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे सके । सास्कृतिक रूप से भी भारत को एक नई दिशा देगी .................

Saturday, May 2, 2015

निषादों के गांधी – चौधरी लौटन राम निषाद

                        निषादों के गांधी चौधरी लौटन राम निषाद
                                                                                      लेखक
                                                                                    बलराम बिंद
सारांश
पिछड़ों, दलितों, आदिवासियों, निषाद, आदि के सामाजिक बदलाव के अग्रदूत,हैं। शिक्षित बनों, संघर्ष करों, और आगे बढ़ों, के आधार पर लौटन राम निषाद नें मछुआ समाज के विकास के लिए वह दिन को दिन और रात को रात नहीं समझते समाज के विकास के लिए देश के हर कोने में आए दिन वह अपने मशाल को लेकर घूमने के काम करते है। यह  दीपक हर दिन देश के कोई ना कोई जिले में हर दिन दीप से समाज को रोशनी देने का काम कर है।  
प्रस्तावना-
देश के आजादी दिलाने में महात्मा गांधी का बहुमूल्य योगदान है। उसी तरह पिछड़ों, दलितों, आदिवासियों के प्रेरणा श्रोत, में लौटन राम निषाद का संघर्ष योगदान ने दलित,पिछड़ों, आदिवासी, समाज को आवाज देने के काम किए। अति पिछड़ी जातियों या निषाद-मछुआरा समाज के साथ कांग्रेस, सपा व बसपा ने भी छलने का प्रयास किया था। अब निषाद-मछुआरा समाज की मल्लाह, केवट, बिंद, धीवर, धीमर, कश्यप, कहार, गोड़िया, मांझी, रायकवार आदि सहित कुम्हार प्रजापति राजभर आदि जातियों का इन दलों से मोहभंग हो चुका है। भाजपा सपा-बसपा व कांग्रेस की बातों पर विश्वास नहीं किया जा सकता क्योंकि ये वादा खिलाफी करने वाले दल हैं। 2007 के चुनाव घोषणा पत्र में कांग्रेस ने अन्य राज्यों की भांति निषाद-मछुआ समुदाय की जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का वादा किया था। राहुल गांधी ने भी निषाद-मछुआरा समाज की जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल कराने का संकल्प किया था। लेकिन उन्होंने अपने वादे पूरे नहीं किए। यही नहीं 27 जनवरी, 2009 को सोनिया गांधी ने एनटीपीसी गेस्ट हाउस ऊचाहार, रायबरेली में राष्ट्रीय निषाद संघ के प्रतिनिधियों से कहा था कि इस बार तो नहीं अगली सरकार बनने पर निषाद-मछुआरा समाज की जातियों को निश्चित रूप से अनुसूचित जाति का आरक्षण दिलवाऊंगी। आप लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की मदद करिए। निषाद-मछुआरा समाज ने 2009 के लोकसभा चुनाव में खुलकर कांग्रेस की मदद की। लेकिन कांग्रेस ने वादा पूरा नहीं किया।
मझवार, तुरैहा, गोड़, खरवार, बेलदार, खोरोट आदि मछुआरा वर्ग की जातियां 1950 से अनुसूचित जाति में शामिल हैं। लेकिन चमार, वाल्मीकि आदि जातियों की तरह इनकी उपजातियों को परिभाषित न करने के कारण यह समाज आरक्षण के लाभ से वंचित हो रहा है। 1961 की जनगणना के मुताबिक, माझी, मल्लाह, राजगौड़, गोड़ मझवार आदि को मझवार की पर्यायवाची जाति मान्य किया गया है। इसी तरह गोड़िया, धुरिया, कहार, राजी, रायकवार, बाथम, सोरैहिया, पठारी, राजगौड़ आदि को गोड़ और धीवर, धीमर को तुरैहा का समकक्षी व पर्यायवाची उप जाति माने जाने के बाद भी अधिकारी प्रमाणपत्र जारी नहीं कर रहे हैं।
सामाजिक गतिशीलता
हर समाज आधुनिकता में तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है। और आधुनिक का हिस्सा बन रहा है। मछुआरा या दलित, आदिवासी, पिछड़ा आदि में मछुआरा समाज में शिक्षित ना होने के कारण बहू जनसंख्या होने के बाद भी निषाद समाज में शिक्षा या अन्य क्षेत्रों में कुछ खास बदलाव देखने को नहीं मिल रहा है। वह आए दिन अपने मजदूरी के हिस्सा में से वह शराब,का सेवन कर जाता है जिसका कारण है की वह आर्थिक रूप से कमजोर होता जाता है मुख्य धारा शामिल नहीं हो पाता है। चौधरी लौटन राम निषाद ने समाज के वीच में इन सामाजिक समस्या और बुराई से समाज को आगाह और सचेत रहने को प्रेरणा देने का काम किया जो आज इन सामाजिक समस्या और सामाजिक बुराई से धीरे-धीरे दूर होता नजर आ रहा हैं।
हवा और मांझी
मांझी हवा का पहचान तो करना जनता है लेकिन वह पानी को देखने के बाद हीं बात सकता है की कौन से हवा आने वाली है। यह समाज शिक्षित ना होने के कारण वह आधुनिकता के साथ कंधे से कंधे नहीं मिला पा रहा है। जिसका विकास और बदलाव हो सके लौंटन राम निषाद ने आरक्षण के लिए आए दिन संघर्ष करते रहते है। समाज में जब कोई बिंद निषाद या मछुआरा के नाम लेने से लोग घबराते थे उस समय लौटन राम निषाद ने आए दिन लखनऊ में आंदोलन खड़ा करने के काम किया और आम जन से मुख्य धारा में लाने के प्रयास किए । मांझी बदल रहा है अपनी आवाज को बुलंद कर रहा है।
राजनीतिक संघर्ष
सत्ता पाने के लिए राजनीतिक हिस्सा बहुत हीं जरूरी हैं। वह इस आवाज से युवाओं को आए दिन संघर्ष के हिस्सा बनने की प्रेरणा देते रहते हैं। वह कई राजनीतिक पार्टी के हिस्सा तो बने लेकिन अपने समाज के विकास के लिए वह पार्टी को छोड़ने में कोई कसर नहीं छोडते है। हर पार्टी उनके ईमानदारी के कायल है। हर पार्टी लौटन राम निषाद को अपने पार्टी के हिस्सा देखना चाहती है। वह पार्टी के होने के बाद भी समाज के विकास के हीं बाते रखते है सत्ता के पार्टी से भी मुखर होकर अपनी बात रखने में कोई संकोच नहीं रखते हैं,जो यह बात युवाओं को प्रेरणा देती है।
व्यक्तित्व और छबी
निषाद समाज के कितने नेता बने और कितने बिगड़ गए लेकिन वह आज भी नाव की पतवार के समान खड़े होकर नाव को धीरे-धीरे आगे बढ़ा रहे है। यह वह छ्बी है जो मिथक और अन्धविश्वास से समाज को बहुत दूर ले जाने के प्रयास करते है । वह समाज के कुछ नेता अन्धविश्वास को और मजबूत कर रहे है। बदलाव के लहर फिर से समाज मजधर में खड़ा नजर आ रहा है। यह वह छबी है तो तुझे बदलना ही होगा के तर्ज पर मिट्टी के घड़े से पत्थर में भी चिन्ह बना देता है। संघर्ष जारी है तुझे बदलना हीं होगा।
निष्कर्ष –
निषाद समाज आज अपने हक और अधिकार के लिए आए दिन संघर्ष करता हुआ नजर आता है वह चाहे वह राजनीतिक मंच हो या सामाजिक बदलाव की उसमें सबसे पहला नाम लौटन राम निषाद के योगदान और संघर्ष को यह समाज याद करता रहेगा ।


Thursday, October 16, 2014

                                    निषाद : मुक्ति का सपना
                                                                                                                           लेखक
                                                                                 बलराम बिन्द
                                                                                                                संचार एवं मीडिया अध्ययन केंद्र,
                                                                                                               सत्र -2012-13म.गां.अं.हिं.वि.                                                                                                                              वर्धा  
                                                                                        मोबाईल – 7709623388


सोशल मीडिया की बेबाकी और पारदर्शिता की चाह ने निषादों को सिर्फ राजनीति और आर्थिक, बल्कि सामाजिक, साहित्य का भी नए ढंग से मूल्यांकन किया है। अब इस नए कलेवर में बढ़ती हुई अपेक्षाओं के विस्फोट से सब विधाओं के मठाधीश असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।  विकास गौर कहते है कि “सोशल मीडिया आने के बाद निषद समाज के दूसरी आजादी के रूप में देखते है, कहते है कि जो कभी हमारे समाज के समाचार पत्रों में कभी कभार एक खबर देखने को मिल जाती थी आज सोशल मीडिया के माध्यम से देश के हर कोने या विदेशों में रहने वाले निषदों से संवाद और समाचार तुरंत मिल जाती है”
 सोशल मीडिया ने निषादों के इतिहास में एक नया अध्यया जोड़ने के काम कर रहा है एवं साहित्य के रूप में हाशिये के समाज को आवाज बनती जा रही है। अरुण कुमार तुरहा कहते है कि “सोशल मीडिया ने निषदों के इतिहास को आवाज देने के काम कर रही है जो निषदों के इतिहास को  हजारों वर्षो से भर्मित कर के रखा गया था वह दूर कर रही है” आज सोशल मीडिया एक उभरती हुई सच्चाई है और बहुत तरह के नए संघर्षों को जन्म दे रही है। शोषक विचारधारा के व्यवस्था से आज सोशल मीडिया से चुनौती मिल रही है, उसी तरह सामन्ती मठाधीशों को भी सोशल मीडिया से कष्ट हो रहा है। क्योकि केवल सीमित लोगो तक लेखन के साहित्य उपलब्ध था। हर दिन सोशल मीडिया के माध्यम से साहित्य को देश के किसी कोने में समाज के हर विंदु पर जानकारी आसानी से उपलब्ध हो जा रहा है। उस पर क्रिया-प्रतिक्रिया संवाद स्थापित कर साहित्य का एक नया निष्कर्ष पर पहुँच जा रहा है। जो कभी समाचार पत्र को देखने या खोलने के बाद कही एक संवाद देखने को नहीं मिलता था। इस सोशल मीडिया पर  समाचार पत्र के रूप में अपना ग्रुप बना के जैसे  निषाद मीडिया, निषाद नमन, आल इंडिया फिशर मैन, बना के संवाद स्थापित कर ले रहा है। जिनसे मिलने या बात करने का सौभाग्य या दुर्भाग्य आमजन को कभी कभार ही मिल पाता था, आज सोशल मीडिया ने उन्हें भी सुलभ बना दिया है।
 राम प्रसाद राइकावर कहते है कि “सोशल मीडिया से निषदों के राजनीतिक भागीदारी अहम भूमिका निभा रही है, संघर्ष के नये प्रतिमान स्थापित कर रही है”अब निषादों के अंतर-संघर्ष, विचारधाराओं के कलह और गुटबंदियों ने एक नए किस्म का आयाम खोला है। राजनतिक पार्टीयों और सामंतवादी विचार के मठाधीशों को सोशल मीडिया के मजबूत होने से कष्ट हो रहा है, इसके मजबूत होने के निहितार्थ इतने विराट हैं कि किसी भी तरह की संस्थागत गुलामी करने वालों को इससे कष्ट होगा जैसे कि निषदों के विकास,आरक्षण के नाम सभी पार्टी सपा, बसपा, भाजपा, काग्रेस,आदि पार्टीयों ने आरक्षण के नाम पर निषदों के ठगना, आज सोशल मीडिया ने इन सब पार्टी के सच्चाई से रूब –रूब करा रही है ।
देखा जाय तो संस्थागत धर्म के गुलामों को स्वतंत्र और स्वच्छंद लोगों, विचारधारा से भय होता है, उसी तरह निषाद लेखकों ने आजादी के नई इबारत लिख रहे है। सोशल मीडिया की बेबाकी और निषादों के इतिहास में धर्म, जनजातीय बोली, सामाजिक पहचान पारदर्शिता की चाह ने न सिर्फ राजनीति और विकास, बल्कि निषादों के मुद्दों का भी नए ढंग से मूल्यांकन किया है। अब इस नए कलेवर में बढ़ती हुई अपेक्षाओं के विस्फोट से सब विधाओं के मठाधीश असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
अनिल कश्यप कहते है कि “सोशल मीडिया ने निषदों के मिथिकीय कहानी से दूर ले जा रही है। और हर दिन निषदों के इतिहास के कहानी कर रही है” जैसे धर्मों के सर्वमान्य शास्त्र और पारंपरिक मान्यताएं अब नए समय का मुकाबला नहीं कर पा रही हैं - ठीक उसी तरह निषादों के साहित्यिक योगदान में सामाजिक दृष्टिकोण में तेज़ी से सब कुछ नया होता जा रहा है उसका मुकाबला कोई सामंतवादी विचारधारा या परम्परा नहीं कर पा रही है। जिस तरह की आजादी और वैयक्तिक स्वतन्त्रता के स्वप्न सदा से देखे गए हैं, उन स्वप्नों का विवरण देने वालों की व्याख्यायें ही नए कारागार निर्मित कर रही हैं। सोशल मीडिया से निषादों को अपनी अभिव्यक्ति की नई पहचान मिली है ।
रामसूरत बिंद” कहते है कि “सोशल मीडिया ने निषाद समाज को के साहित्य के मजबूती प्रदान कि है जो कभी इस समाज के लेखक और विचारक का संवाद और साहित्य सभी के पास नहीं पहुँच पा रही थी आज देश के हर कोने  से विचार और विचारधारा खुल कर सामने आ रही है” इस तेजी से हो रहे परिवर्तन को प्रतिबिंबित करने वाली निषादों के प्रतिमान में बदलाव के हो रहा है। निषादों की लेखन साहित्य में आज के समय की पहली जरुरत बनता जा रहा है और सोशल मीडिया उस जरूरत को पूरा करने की कोशिश कर रहा है। 
निषदों के सामाजिक गतिशीलता जिस तेजी से विकसित हो रही है। निषादों के सामाजिक परिवर्तन में नई तकनीक संवाद को मजबूती प्रदान कर रही है। इस तकनीकी इस समाज के जीवन के बहुत सारे मुद्दों की व्याख्याएं बहुत तरह से बदल रही हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि निषादों नई तकनीकी से जुड़े है। निषादों के साहित्य आज की पीढ़ी की समस्याओं के साथ विकसित हो पा रही है। जिस युग में बहुत धीमे- धीमे परिवर्तन होते थे, उस युग में भी साहित्य बहुत थोड़े संभ्रांतों के वाक् विलास का विषय था, सोशल मीडिया आज हर हाथ में मोबाइल दे दिया, हर टेबल पर लेपटॉप है, हर घर में टीवी है जिसमे राजनीति, खेल और धर्मों के पाखंडों के रोज रोज नए खुलासे होते हैं।
मनु साहित्य में निषादों को अछूत बताना तथा जातीय खेल में निषादों को उपजाति में विभाजन कर सामंतवादी या ब्रम्हानवादी विचारों से सोशल मीडिया ने आज अवगत करा रही है इस खिचडी मानसिकता का परिणाम सब तरफ से उभरकर नज़र आ रहा है।  ये सब जान गए हैं. ऐसे हालात में कोई भी इन सामंतवादी या ब्रम्हानवादी पर भरोसा नहीं करना चाहता है। मनु साहित्य, रामायण, महाभारत, में बहुत लम्बे समय से प्रचलित साहित्य की विश्वसनीयता खोती जा रही है । निषाद के सभी उपजातियों, बिन्द, मल्लाह, केवट,माझी, मझवार,वेलदार, तुरहा, आदि सभी जातियों ने चले समझ रही है किस तरह से अलग- अलग जाति बना के मुख्य धारा से अलग रखा गया है। अब नयी पीढी इन राजों को समझ चुकी है।
निषदों ने अपने साहित्य को लिखा जा रहा है वो नयी पीढी ने  निषाद आदिवासी अपने नए ढग से समाज के प्रतिमान स्थापित कर रहा है। सर्वस्पर्शी साहित्य को ढूँढना या परिभाषित करना लगभग असंभव काम, को सोशल मीडिया के माध्यम से निषाद लेखकों साहित्यिक बाम्बियों को लिख रहा है । ये सब नए समय की अनिवार्य हकीकतें हैं और ये संघर्ष के नए प्रतिमान स्थापित कर रहे है।  
सोशल मीडिया ने एक तरह से निषाद आदिवासी की आँखें खोल दी हैं।  राजनीति और सामंतवादी तो इससे परेशान है ही, अब साहित्य के कबीलों ने भी इस हलचल को स्वीकारना शुरू कर दिया है। निषदों के युवा पीढ़ी ने शिक्षित होने से अपने साहित्य को रचना कर रहा है। जो किसी ने सांस्कृतिक रूप से कुपोषित कर के रख दिया गया था अपनी संस्कृति, लोकजीवन, मुहावरों, विश्वासों और यहाँ तक की आदिवासी भाषाओं से भी वंचित रखा गया था ।
किसी समाज का बौद्धिक अभिजात वर्ग ने निषदों के साहित्य और भाषा और संस्कृति को ही पूरी तरह गलत प्रस्तुति कर कर हाशिये के शिकार बना दिया गया था ।  ऐसे में सोशल मीडिया से निषदों ने अपने  भाषा, बोली आदि को फिर से मजबूत करने का काम कर रही है । दुर्भाग्य इससे जुडा है, कि सामंतवादी के साहित्य रचना ने अर्थहीन प्रतिमान स्थापित करने के कारण  ठीक से जड़ नहीं जम पायी है।  जिसका कारण है कि साहित्य की बराबरी नहीं कर पाई है।  ये दोहरे दुर्भाग्य हैं, जो हम एक वर्णसंकर संस्कृति की संतानों की तरह झेल रहे हैं।

सोशल मीडिया ने निषदों के संघर्ष और भागीदारी को नये आयाम गढ़ने के काम कर रही है। निषदों के आवाज  देश के हर कोने से आ रही है अब हम लिखेगे इतिहास दूसरे के प्रतिमानो पर कब तक भरोस करगे । कहानी अब हम कहेगे, विचार-विमर्श करना अब तुम्हारी मजबूरी है । 

Tuesday, June 3, 2014

प्रणाम करूँ में उस वीरांगना को .

                                                                                      लेखक / रचनाकार :
                                                                                     रामप्रसाद रैकवार … 
!! बुंदेली कविता समर्पित इस वीरांगना को कोटि - कोटि नमन जय हो !! 

मत - मत भूलों झलकारी बाई को .!
उसने वतन की कसम जो खाई थी !!

छोड़के चूड़ियाँ महंगे साधनो को .!
तलवार की झलक दिखाई थी ....!!

मर्द - मर्दानी और सबपे भारी .!
वो तो झलकारी बाई थी ........!!

उसकी तलवार से भौच्चके अंग्रेज थे .!
वो भी कालका माँई थी ................!!

बुंदेलखंड की वो तप्ती - तपो भूमि थी .!
ताप - तपन से फौज घबराई थी ........!!

करे थे खट्टे दाँत दुश्मन के .!
अंग्रेज फौजें थर्राई थी ......!!

बनाके मुण्डों की वर माला .!
बुंदेलों की शान बड़ाई थी ...!!

छल न चला था तब उसके ऊपर .!
जब खड़क की चमक दिखाई थी ..!!

टप- टप टापों सवार घोड़े पर .!
मर्द मर्दानी कहलाई थी .......!!

छोड़के घूँघट का ओढ़ना फिर .....!
देश के मान की लड़ी - लड़ाई थी .!!

दिया संदेश हे पूरे भारत को .....!
गजब ही बुंदेली गाथा गाई थी ...!! 

जिस उम्र में चूड़ियाँ खनके हे .!
उसने तलवार उठाई थी ........!! 

प्रणाम करूँ में उस वीरांगना को .!
लोह रानी बनकर वो आई थी ...!!

धन्य - धन्य हे यह भारत धरती .!
हर बुंदेली ने कथा सुनाई थी ......!!

वो आई थी लोह रानी बनकर .!
पताका बुंदेली लहराई थी ......!!

जय बुंदेलखंड जय समाज जय भारत 

लेखक / रचनाकार : रामप्रसाद रैकवार … 

दिनांक : 03.06.2014 ...

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Friday, May 30, 2014

मुस्कारहट के पीछे डिप्लोमेसी

                                                                                                        लेखक/रचनाकार:
                                                                                                        रामप्रसाद रैकवार
मुस्कारहट के पीछे डिप्लोमेसी ''
आम भारतीय हमेशा यही सोचता रहता हे की,वो क्या ऐसी बात हे जिसके कारण राजनीतिक और नोकरशाहों की मिली सुर की जुगल बंदी पर अभी तक कोई भी लगाम नहीं लगा सका ? उसका एक ही कारण हे,वो मुस्कराहट 
भरी हँसी मे रहस्य डिप्लोमेसी का छुपा हुआ हे ? जिसमे ऐसे व्यक्ति अपना रंग कभी भी बदल लेते हे,और एक जोर का टहाका और ताली बजाकर हँसते हे की देखा मेने उन सभी को केसे मुर्ख बनाया ? यही एक ऐसा अस्त्र जिसका निशाना अचूक और सटीक हे की इसमे सामने वाले की विचार धारा और मानसिकता बगेर किसी जोर जब्रदस्ती के जान लिया जाता हे,वो शांत चित -
मनं से और इसी विचार धारा का अवलोकन किया जाता हे,तभी किसी भावी योजना को एक मूर्त रूप देकर अपने फायदे -नुकशान के अनुरूप बना लिया जाता हे,देखा किसी को पता भी नहीं चला और सारा काम भी निपटा लिया जाता हे,और 
इसी उहा-पोह मे की वो तो मेरा हे,मे तो उसका हूँ,ऐसा कभी हो ही नहीं सकता की वो मेरी नहीं सुने ? इस तरह की बातों की दुहाई दी जाती रही हे और आम अवाम सीधा और ठगा सा अपने आप को पाता चला आया हे,और सालो से ऐसा ही होता आया हे ? लेकिन अब तो समझदार हो ही जाओ और एक अच्छा भारत बनाने में जुट जाओ ?
हम सभी भारतवासीयों को और यांगिस्तानियों को जरूर इस विषय पर विचार करना चाहिए,वक्त की मांग के अनुरूप अगर इस तरह की क्षमता हमने हासिल नहीं कि जो हमें तुर्रंत करनी चाहिय नहीं तो हमेशा ही उन रास्तों मे यह मुस्कराहट और डिप्लोमेसी स्पीड ब्रेकर बनकर सदेव उन रास्तो पर मिलेगा जहाँ आपको सही न्याय की उम्मीद होगी और तभी आपको अहसास होगा कि हम कहाँ सही थे और कहाँ गलत ? मे आपके साथ हूँ,और हमेशा आपको अपने विचारो से अवगत कराता रहूँगा, सब गातिविधियों पर पेनी नजर रखो उन लोगो को शिकस्त देने का गुरु मंतर आपके सामने हे जो यह सोचते हे की इस संसार के विद्वान हमी हे और उनके बाद कोई और विद्वान् पैदा ही नहीं हुआ ध्यान रखो जो लुपड़ी-चुपड़ी बाते करते हे समझ लो की शंशय और प्रश्न आपके दिमाग में जरूर कोंद्ना चहिय ? अगर अब भी आप इस नीति में विफल हो गये तो आप खुद ही समझ लीजिए की बीते इन सालो में क्या हुआ होगा और भविष्य में क्या होगा ? बाकि तो आप खुदी समझदार हे ...

आपको यह विचार और प्रस्ताव केसा लगा जरूर कोमेंनट्स करे ?
आपका सहयोगी ... जय समाज - जय भारत


Tuesday, May 20, 2014

मिशन मछुआ मुख्यमंत्री-2017

मछुआ समाज को उत्तर प्रदेश में अपने मिशन “ MMM”-2017 (मिशन मछुआ मुख्यमंत्री-2017) के तहत अभी से तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। क्योकि भाइयों- बहनों ये समय नहीं है सोने का, एक भी क्षण खोने का ...उठो जागो और लक्ष्य प्राप्त करने में जुट जाओ....