Monday, May 6, 2013

मछुआरों के देवी के नाम पर मुंबई



मछुआरों के देवी के नाम पर  ही मुंबई का नाम है। मुंबा देवी  के नाम पर ही मुंबई रखा गया है। जिसे देश के आर्थिक राजधानी के नाम से जाना जाता है। और इस स्वपन का शहर भी कहा जाता है।
मुंबा देवी मंदिर मुंबई के भूलेश्वर में स्थित है। मुंबई का नाम ही मराठी में मुंबा आई यानि मुंबा माता के नाम से निकला है। यहां इनकी बहुत मान्यता है। यह मंदिर लगभग ४०० वर्ष पुराना है।
मुंबई आरंभ में मछुआरों की बस्ती थी। जो निषाद समाज के एक उप जाति है ,जो कोली लोग रहते थे कोली लोगों यहां बोरी बंदर में तब मुंबा देवी के मंदिर की स्थापना की। इन देवी की कृपा से उन्हें कभी सागर ने नुकसान नहीं पहुंचाया।

 यह मंदिर अपने मूल स्थान पर १७३७ में बना था, ठीक उस स्थान पर जहां आज विक्टोरिया टर्मिनस इमारत है। बाद में अंग्रेजों के शासन में मंदिर को मैरीन लाइन्स-पूर्व क्षेत्र में बाजार के बीच स्थापित किया। तब मंदिर के तीन ओर एक बड़ा तालाब था, जो अब पाट दिया गया है। इस मंदिर की भूमि पांडु सेठ ने दान में दी थी, व मंदिर की देखरेख भी उन्हीं का परिवार करता था। बाद में मुंबई उच्च न्यायालय के आदेशा्नुसार मंदिर के न्यास की स्थापना की गई। अब भी वही मंदिर न्यास यहां की देखरेख करता है। 
यहां मुंबा देवी की नारंगी चेहरे वाली रजत मुकुट से सुशोभित मूर्ति स्थापित हई। इस न्यास ने यहां अन्नपूर्णा एवं जगदंबा मां की मूर्तियां भी मुंबा देवी के अगल बगल स्थापित करवायीं थीं। मंदिर में प्रतिदिन छः बार आरती की जाती है। मंगलवार का दिन यहां शुभ माना जाता है। यहां मन्नत मांगने के लिए यहां रखे कठवा (लकड़ी) पर सिक्कों को कीलों से ठोका जाता है। श्रद्धालुओं की भीड़ बहुत रहती है। यह मंदिर लगभग ५० लाख रु. सालाना मंदिर के अनुरक्षण कार्य एवं उत्सव आयोजनों में व्यय करता है।
मछुआरों ने जो भी अपने देवी-देवता की स्थापना किया है  वह आज यह नहीं जान पा रहा है,कि हमारे पूर्वजों ने संस्कृति रूप से अपने समाज को एक रखने के लिए अपने देवी,देवता का स्थापना किए और आज यह मछुआरा नहीं समझ पा रहा है कि  हम संस्कृति रूप से कितना मजबूत थे।  आज निषाद समाज को अपने संस्कृति को मजबूत करने के लिए आज तलाशने की जरूरत है कि  इस समाज के संस्कृति कितनी समृद्ध थी। 

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