Saturday, May 4, 2013

खामबाबा और भीम बैठका पर्यटन का भ्रमण



मनुष्य का सृजनात्मक प्राकृतिक सौंदर्य के साथ अस्तित्व में आता है। मनुष्य ने आदिम युग से ही प्रकृति के सानिध्य में रहते हुये तमाम तरह के कलात्मक सौंदर्य निर्मित किए, चाहे वह भवन निर्माण की कला हो या चित्रकारी, नक्काशी, कविता, संगीत ये सारी कलाएँ, प्रकृति के साथ हुए मानव ने अर्जित किए । हम जब भी 


अपने अतीत की बात करते है तो हम अपने इतिहास के तमाम श्रेष्ठ सौंदर्य आते है। साथ ही साथ उनके विभिन्न स्वरूप में इतिहास झरोखे से देखते हैं। मनुष्य ने अपने लिए अतीत जीते हुए अपने आने वाली नस्लों के लिए जो अतिरिक्त सृजित किया, वहीं आज हमारे लिए जानने, समझने और अतीत की सभ्यता संस्कृति की सही व्याख्या करने का माध्यम है। 
खामबाबा परिसर में इमली पेड़ के पास ऐतिहासिक मूर्तियाँ रखे हुए मिली। इन मूर्तियों को लेकर कोई सुरक्षा व प्रबंध इन विभाग द्वारा देखने को नहीं मिला। यहाँ इस स्तम्भ व अन्य ऐतिहासिक परिपेक्ष्य को बताने वाला पर्यटन विभाग से कोई नहीं मिला। साथ ही बिना सुरक्षा प्रबंध के यहाँ मूर्तियों व (खामबाबा) हेलिओदोरस स्तम्भ हमें मिला। यहाँ आस-पास स्वल्पाहार, चाय-नाश्ता यहाँ तक पीने के पानी का भी व्यवस्था प्रशासन द्वारा नहीं किया गया है, इस तरह प्रशासनिक उदानसीनता यहाँ नजर आता है। 

मध्य प्रदेश की विदिशा की बाते करे तो, यहाँ का गौरवशाली प्राचीन इतिहास रहा है, यहाँ बौद्ध,जैन एवं हिंदू धर्म की मूर्तियों, स्तूप व स्मारक बौद्ध, जैन, हिंदू धर्म एवं संस्कृति की एक साथ दर्शन कराते है। विदिशा जिला पुरातत्व संग्रहालय में इससे प्राप्त सभी जैन व हिंदू मूर्तियों का संग्रह देखना काफी सुखद रहा, साथ ही जैन व हिंदू धर्म कालीन अतीत से हमें रूबरू होने का मौका भी मिला। हेलियोदोरस (खामबाबा) का स्तम्भ में लिखी प्राकृत भाषा व ब्राह्मी लिपि में अंकित लेख भारत में यूनानी राजदूत का आगमन को दर्शाता है। गरुड़ स्तम्भ की महत्ता एवं मंदिर निर्माण का इतिहास को दर्शाता है। यह हेलिओदोरस के आगमन (विष्णु) धर्म की अनुयायी होने व प्रचार को दर्शाता है। उदयगिरि की प्राचीनतम गुफा का अध्ययन करना काफी रोमांचकारी रहा, यहाँ मानव निर्मित पहाड़ी को काटकर बनाई गई गुफाएँ साथ ही प्रकृतिक गुफाएँ भी हमें काफी प्रभावित किया यहाँ अलग-अलग गुफाओं में शैव, विष्णु की शेषायी की विशाल मूर्ति साथ ही साथ ही नृवराह की विशाल मूर्ति यहाँ हमें देखने को मिला।

यहाँ गुप्तकालीन शिला लेख व जैन मूर्तियाँ भी काफी प्रभावशाली अतीत की याद दिलाती है। सभी गुफाएँ शिल्पशात्र की दृष्टि से काफी उत्कृष्ट है। यहाँ की पहाड़ी पर सपाट स्थल ऊपर महल आदि का होने का अहसास करती है, सम्राट अशोक कालीन इतिहास भी यहाँ से जुड़े होने का प्रमाण भी देती है। सांची की विश्वविख्यात स्तूप सम्राट अशोक द्वारा निर्मित तीसरी सदीं ई. पू. से बारहवीं ई. शदी तक में निरंतर निर्मार्ण प्रक्रिया को दर्शाता है।

सम्राट अशोक द्वारा निर्मित बौद्ध मूर्तियाँ स्तूप, विहार, तलाब व व्यवस्थित अन्य भवन व स्मारक और यहाँ विहार के बाद गार्डेन का उन्नत मार्डल अशोक कालीन सभ्यता एवं उन्नत तकनीक कारीगर का प्रमाण हमें देती है, यहाँ स्थित पुरातत्व संग्रहालय खुदाई व मूर्ति कला स्थापना को बताती है। होस्त मोहम्मद खाँ द्वारा निर्मित व मध्य प्रदेश की पुरानी राजधानी इस्लाम नगर का भ्रमण  भी काफी रोमांचकारी रहा।

यहाँ मुगल कालीन महल व्यवस्थित स्नानागार, ठंडा व गरम पानी करने की तकनीक अन्य भंडारण गृह, सुरक्षा के लिए निर्मित मीनार भी मुगल कला स्थापत्य एवं सभ्यता की गुणवत्ता को दर्शाता है।भोजपुर का प्राचीन शिव मंदिर का भ्रमण राजा भोज कालीन शिव पुजा को बताता है।


 यहाँ निर्मित विश्वविख्यात शिवलिंग एवं मंदिर निर्माण की प्रक्रिया मंदिर के गुंबद में व खंभे में किए गए नक्काशी अनायास सभी पर्यटकों को आश्चर्य चकित कर देता है। राजा भोज कालीन कारीगरों की मेहनत, साथ ही साथ विशाल का पत्थरों पर सुंदर कलाकारी उस समय की कला प्रतिभा को दर्शाता है। यहाँ बेतवा नदी पर पर्यटकों का नौका विहार का आनंद देखते ही बनता है, यह स्थान आसपास गेहूं के हरियाली के बीच काफी रमणीय रहा है ।
 भीम बैठका हमें प्रागैतिहासिक काल में हमें लेते चला गया। यहाँ की चमचमाती चट्टानें लगातार बारिश धूप व हवा की मार से कटे-फटें ये चट्टाने हमें रोमांचित कराती रही। पाषाण कालीन मानव का गुफा में रहना इस तरह पाषणा जीवन-शैली का हमें अहसास कराया। इन पाषाण कालीन मानवों की अवश्यता, आकांक्षाएं, अभिव्यक्ति एवं सम्प्रेषण कला यहाँ निर्मित गुफाओं में हमें मिला। यह प्रागैतिहासिक कालीन मानव की सृजनशीलता का हमें अहसास कराया। भारत का सबसे प्राचीन मानव निर्मित यह चित्रकारी हमें झकझोरता भी है, यहाँ मानव ने पहली बार खनिज रगों की उपयोग को दर्शाता है। यह चित्रों में पशुओं, इंसानों व अन्य जीव-जन्तु का चित्र हमें मानव प्रकृति व पशुओं के बीच संबंध व मिलाप का भी बोध करता है। साथ ही मनुष्य के कठिन जीवनशैली को बाँय कर रहा है।


नवपाषाण कालीन खनिज रंग से निर्मित प्रागैतिहासिक चित्रकारी को सहजने का अब तक कार्य नहीं हो पाया है। सभी पर्यटक इन चीजों को छूकर नजदीक जाकर फोटो आदि खिचवा रहे है। इससे लगातार इन चित्रकार पर प्रतिकूल असर पड रहे है। यह चित्रकारी धूप, बरिश के पानी व तेज हवाओं से लगातार मिटता जा रहा है। इसे शीशों से पैक करवाने की जरूरत है। पंद्रह गुफाओं के आलवा और भी गुफाओं में कलर युक्त चित्रकारी नवपाषाण कालीन लोगों द्वारा बनाई गई है। वहाँ तक जाने का मार्ग अब तक नहीं बन पाया है। यहाँ प्राचीन गुफाओं का लगातार कटाव हो रहा है, साथ ही चित्र मिटता जा रहा है, जो की प्राचीन भारतीय इतिहास का जीवंत साक्ष्य है। यहाँ पर्यटकों के लिए टहरने हेतु एक भी होटल या चाय-नाश्ता भोजन हेतु एक भी दुकाने नहीं है । यह पर्यटन एवं पुरातत्व विभाग की सुस्त नीति को दर्शाता है। इनको लेकर पर्यटकों में भी जमकर नाराजगी देखने को मिला।
 भ्रमण के दौरान भोपाल में ठहरने हेतु किये गए उतम आवासीय व्यवस्था से सभी पर्यटक उत्साहित थे। होटल शिखा द्वारा सभी को रुकने के व्यापक स्वच्छ एवं वहाँ के कर्मचारियों के विशेष सहयोग कर्मचारियों के व्यवहार को लेकर सभी पर्यटक काफी खुश थे। साथ ही होटल में अन्य और सुविधाएँ भी हमारी समय पर सफल एवं आनंद पूर्ण यात्रा में योगदान दिया


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