Tuesday, April 30, 2013

भ्रम में फंसा निषाद समाज




        
टूटे हुएँ शिशे को जोड़ना उसमें दरार पड़ ही जाती है। जाति रूपी संरचना का वहीं हाल नजर आ रहा है। इस भारतीय परिवेश में जिस तरह से समाज को जाति आधारित रूपी  वेवस्था में निषाद समाज में बहुत से उपजाति है। जैसे- माझी, बिन्द,तुरहा, कश्यप,कहार रैकवार,साहनी, मल्लाह, गौंड, कोल्हि,बिन्द, आदि जाति के रूप में बिभाजित है । आज वह किस दिशा और किस संस्कृति को स्वीकार करे या माने उसके सामने बहुत बड़ा प्रश्न खड़ा है।  संस्कृति के रूप में देखने पर लगता है, की इसके मत में विभिन्नता है, जैसे हिन्दू धर्म के अनुसार वह अपने आप को कश्यप मुनि के अवतार और उनके द्रारा अपने को विकास के अंग मानते है 


                                              फोटो ग्राफर -बलराम बिन्द (सुरहा ताल बलिया )

हिन्दू धर्म को मानने वाले इस समुदाय के लोग अपने को कश्यप के संस्कृति को ही आगे बढ़ाने और उन्ही के विचार मतलब हिन्दू धर्म के ओत प्रेत अपने विचार को रखने की कोशिश करते है। और उसे बाहर निकालने का नाम ही नहीं ले रहे है । कारण है की  यह हिन्दू धर्म से बाहर निकल नहीं सकते कश्यप के संस्कृति को आगे बढ़ाने में लगे है। पूरा का पूरा हिन्दू धर्म के ओत-प्रेत घूमता है ।
                                      फोटो ग्राफर -बलराम बिन्द (सुरहा ताल बलिया )

दूसरा पक्ष यह नजर आ रहा है की यह कुछ लोगों के मत में बिभिन्नता है। जो मछुआ संस्कृति को आगे बढ़ाने में लगे है। वह मानते है की हम सब मछली मारने वाले समाज से  है। और हम सब एक है। मछुआ संस्कृति को अगर देखा जाय तो इस समाज में हिन्दू, मुसलिम,सिख, ईसाई सभी धर्मों में मिलते है। जो मुख्य रूप से उसका मछली मारना उसका धर्म और कर्म है। लेकिन यह समाज हर धर्म में होने के बावजूद अपने आप को एक दूसरे से अलग समझते है। और मानते है। मै बड़ा तो मै बड़ा के संस्कृति प्रभुत्व की बात आ जाति है।
                                                 फोटो ग्राफर -बलराम बिन्द (सुरहा ताल बलिया )
 इसके अगले क्रम में निषाद संस्कृति के रूप में देखा जाय तो भारत के मूल निवासी है। और आदिवासी है। जो मुख्य रूप से भारत के गौरव के रूप में स्थापित है जो हद्दपा सभ्यता के जनक है।  जो निषाद बसुरी नामक किताब में आप को जानकारी मिल सकती है। और बहुत से किताबों में उसका उल्लेख आप को मिलेगा इसके सौर गाथा को आप परचित है। जो निर्भीक और साहसी के रूप में जाना जाता है। और इनके संस्कृति और वेवस्था में मातृसत्ता के वेवस्था के साथ इनके लिपि भी थी सभी के समान अवसर थे ।  एक दूसरे के भागीदारी करते थे । यह प्रकृति धर्म को पुजा करते है । इस समाज के पास सब कुछ अपना था । आर्यों ने  उसे एक सिरे से कुचलने का काम किया और धीरे- धीरे-धीरे इसकी संस्कृति के वीनस कर दिये और आज इस समाज के ये हालत है की हसिए के समाज के रूप में स्थापित है। यह समाज आज भिन्न भिन्न धर्मो को मानने लगे और अपने संस्कृति को एक सिरे से अंत करने का काम किया ।

                                                फोटो ग्राफर -बलराम बिन्द (सुरहा ताल बलिया )
  यह समाज न घर-का न घाट का  वही हाल चलत मुसाफिर मुझे मोह लिया रे जो जिसको मिला जैसे, कश्यप, मछुआ समाज, आदि नामों से पुकारा जाने लगा है। और आपनी मूलतः संस्कृति, निषाद संस्कृति को भूलता चला गया और भिन्न-भिन्न संस्कृति के गीत गाने लगा है। और अपनों  के बीच में दरार देखने को मिलने लगी है।     
                                    जय निषाद –जय भारत
                                                 लेखक
                                              बलराम बिन्द 

1 comment:

  1. Bhai pahle toh ye bata Arya bahar se aay ishka jo proof diya jaa rha tha vo aaj jhut shaabit Hua...tum pahle ush proof ke baare me batao vo proof kya tha?dusra maa satyavati aur rishi parasar se Vedvyaas paida huye...baad me Shantanu se maa satyavati ka vivaah Hua...Maa Satyavati nisaad kanya thi...ab ye batao mahabharata ko vigyaan manta.. tum konsa yahan gyaan de rahe ho...

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