लेखक/रचनाकार:
रामप्रसाद रैकवार
मुस्कारहट के पीछे
डिप्लोमेसी ''
आम भारतीय हमेशा यही
सोचता रहता हे की,वो क्या ऐसी बात हे जिसके कारण राजनीतिक और नोकरशाहों की मिली सुर की जुगल
बंदी पर अभी तक कोई भी लगाम नहीं लगा सका ? उसका एक ही कारण हे,वो
मुस्कराहट
भरी हँसी मे रहस्य डिप्लोमेसी का छुपा हुआ हे ? जिसमे ऐसे व्यक्ति अपना रंग कभी भी बदल लेते हे,और एक जोर का टहाका और ताली बजाकर हँसते हे की देखा मेने उन सभी को केसे मुर्ख बनाया ? यही एक ऐसा अस्त्र जिसका निशाना अचूक और सटीक हे की इसमे सामने वाले की विचार धारा और मानसिकता बगेर किसी जोर जब्रदस्ती के जान लिया जाता हे,वो शांत चित -
मनं से और इसी विचार धारा का अवलोकन किया जाता हे,तभी किसी भावी योजना को एक मूर्त रूप देकर अपने फायदे -नुकशान के अनुरूप बना लिया जाता हे,देखा किसी को पता भी नहीं चला और सारा काम भी निपटा लिया जाता हे,और
इसी उहा-पोह मे की वो तो मेरा हे,मे तो उसका हूँ,ऐसा कभी हो ही नहीं सकता की वो मेरी नहीं सुने ? इस तरह की बातों की दुहाई दी जाती रही हे और आम अवाम सीधा और ठगा सा अपने आप को पाता चला आया हे,और सालो से ऐसा ही होता आया हे ? लेकिन अब तो समझदार हो ही जाओ और एक अच्छा भारत बनाने में जुट जाओ ?
भरी हँसी मे रहस्य डिप्लोमेसी का छुपा हुआ हे ? जिसमे ऐसे व्यक्ति अपना रंग कभी भी बदल लेते हे,और एक जोर का टहाका और ताली बजाकर हँसते हे की देखा मेने उन सभी को केसे मुर्ख बनाया ? यही एक ऐसा अस्त्र जिसका निशाना अचूक और सटीक हे की इसमे सामने वाले की विचार धारा और मानसिकता बगेर किसी जोर जब्रदस्ती के जान लिया जाता हे,वो शांत चित -
मनं से और इसी विचार धारा का अवलोकन किया जाता हे,तभी किसी भावी योजना को एक मूर्त रूप देकर अपने फायदे -नुकशान के अनुरूप बना लिया जाता हे,देखा किसी को पता भी नहीं चला और सारा काम भी निपटा लिया जाता हे,और
इसी उहा-पोह मे की वो तो मेरा हे,मे तो उसका हूँ,ऐसा कभी हो ही नहीं सकता की वो मेरी नहीं सुने ? इस तरह की बातों की दुहाई दी जाती रही हे और आम अवाम सीधा और ठगा सा अपने आप को पाता चला आया हे,और सालो से ऐसा ही होता आया हे ? लेकिन अब तो समझदार हो ही जाओ और एक अच्छा भारत बनाने में जुट जाओ ?
हम सभी भारतवासीयों
को और यांगिस्तानियों को जरूर इस विषय पर विचार करना चाहिए,वक्त
की मांग के अनुरूप अगर इस तरह की क्षमता हमने हासिल नहीं कि जो हमें तुर्रंत करनी
चाहिय नहीं तो हमेशा ही उन रास्तों मे यह मुस्कराहट और डिप्लोमेसी स्पीड ब्रेकर
बनकर सदेव उन रास्तो पर मिलेगा जहाँ आपको सही न्याय की उम्मीद होगी और तभी आपको
अहसास होगा कि हम कहाँ सही थे और कहाँ गलत ? मे आपके साथ हूँ,और हमेशा आपको अपने विचारो से अवगत कराता रहूँगा, सब
गातिविधियों पर पेनी नजर रखो उन लोगो को शिकस्त देने का गुरु मंतर आपके सामने हे
जो यह सोचते हे की इस संसार के विद्वान हमी हे और उनके बाद कोई और विद्वान् पैदा
ही नहीं हुआ ध्यान रखो जो लुपड़ी-चुपड़ी बाते करते हे समझ लो की शंशय और प्रश्न
आपके दिमाग में जरूर कोंद्ना चहिय ? अगर अब भी आप इस नीति
में विफल हो गये तो आप खुद ही समझ लीजिए की बीते इन सालो में क्या हुआ होगा और
भविष्य में क्या होगा ? बाकि तो आप खुदी समझदार हे ...
आपको यह विचार और
प्रस्ताव केसा लगा जरूर कोमेंनट्स करे ?
आपका सहयोगी ... जय
समाज - जय भारत
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