सावधान
! कई राजनेतिक दलों की लॉबी के चक्रव्यूह से घिरे हैं हम
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जिस मछुआ समुदाय को सपा के पक्ष में खड़ा होने का ढिढोरा पीटा जा
रहा है, उसका तो इस पार्टी से कभी का मोह भंग हो गया है. न केवल मछुआ समुदाय अपितु
पुरे प्रदेश की जनता त्राहि -त्राहि कर रही है. जबकि सरकार है की मुस्लिम
तुस्टीकरण की राजनीती कर रही है. यह प्रदेश भगवान भरोसे चल रहा है. पुरे प्रदेश
में अपराधी बेलगाम हो चुके हैं. पुलिस तक पर निरंतर हमले हो रहें है तो हम जैसो की
क्या बिसात. परसों ही सहारनपुर में खुलेआम बदमाशों ने सिपाही की हत्या कर दी.
कुंडा में सी ओ को मार डाला गया. बिजली का अभूतपूर्व संकट है. सड़कें टूटी पड़ी है.
रिश्वत का बाजार गर्म है. उधोगपति बिना विधुत और असुरक्षा के कारण गुजरात पलायन कर
रहें हैं. जो जा नहीं सकते वह बंद हो गए हैं. चेतावनी कांग्रेस को ही नहीं
तुस्टीकरण की राजनीती करने वालो सभी दलों को देनी चाहिए. मगर इससे कोई फर्क नहीं
पड़ता. यहाँ इस मुल्क में उसी का झंडा बुलंद होता है जिसमे व्यवस्था से लड़ने की
एकजुटता होती है. वह हममे नहीं है . इसीलिए हंडिया में मेरा समुदाय हार गया. आप और
आपकी पार्टी जीत गई
समुदाय आज विवशता के भवरजाल में बुरी तरह फंस गया है. चारों तरफ अनिश्चता और अविश्वास का माहोल है. परिस्थितियां ऐसी कि ना निगलते बन रहा है और ना ही उगलते. जिसे हम विद्वता और इतिहास विश्लेषण का प्रदर्शन समझते हैं उसके पीछे की मानसिकता को भापने की छमता अब छीण हो गई है. यह विचारने की शक्ति अब शेष नहीं है कि इतिहासवेत्ता सही है अथवा समुदाय की वर्तमान परिस्थितियाँ इसके लिए उत्तदायी है. समुदाय स्वयं आंकलन नहीं करके उन इतिहासवेत्ताओं के सुर में सुर मिलाने को लाचार है जिनकी कभी कोई विश्वश्नियता समुदाय में नहीं रही. ये वही इतिहास विशेषग हैं जो स्वयं को समुदाय का शुभचिंतक कहने से नहीं थकते. मगर वास्तविकता कुछ और ही है.यह लोग राजनेतिक पार्टियों के चाटुकार हैं. जो समुदाय को इतिहास के नाम पर बरगलाकर,अधिकारों की प्राप्ति के सब्जबाग दिखाकर, अपनी राजनेतिक पार्टी को उनका उत्तराधिकारी सिद्द करके, समुदाय को दिग्भर्मित करने का अभियान चला रहे है.दुर्भाग्य यह कि ऐसे लोग हमारे ही समुदाय की पैदाइश है. दुखद है कि आज हम सत्यता का उपहास करके ऐसे लोगों का समर्थन कर रहे है.
इन राजनेतिक घुसपैठियों की लॉबी अत्यंत शक्तिशाली और अनुशाषित है. किसी एक व्यक्ति का विरोध इन लोगों के समक्ष धूमिल पड़ जाता है. जब समुदाय का एक इमानदार और जागरूक व्यक्ति इनके विरोध में आवाज उठाता है तो यह अनुशाषित समूह मिलकर उसका जबरदस्त प्रतिरोध करता है. उसकी आवाज को संगठित रूप से दबा दिया जाता है. यह समुदाय का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि वह ऐसे लोगों के मनसूबे नहीं भांपकर उन्हें अपना सर्वेसर्वा समझ बैठा है. ऐसे चाटुकार, समुदाय के किसी अन्य दिग्दर्शक और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति को कभी खड़ा नहीं होने देते. यह लोग सभी राजनेतिक पार्टियों में मौजूद है. ऐसे लोगों को इन पार्टियों ने मछुआ समुदाय को दिग्भर्मित कर अपनी और आकर्षित करने का जिम्मा इन चाटुकारों को सौंपा है. मगर समुदाय है कि वह वास्तविकता को समझता ही नहीं. जब तक वह इस उहापोह में रहेगा किसी परिवर्तन के विषय में सोचना संभव नहीं है. समुदाय को यदि आगे बढ़ना है तो पहले स्वयं को इस चक्रव्यूह से छुटकारा लेना आवश्यक है. अन्यथा गाडी जिस ढर्रे पर चल रही है वहां खाई ही खाई है. जिसे पाटना अत्यंत कठिन कार्य है.
समुदाय आज विवशता के भवरजाल में बुरी तरह फंस गया है. चारों तरफ अनिश्चता और अविश्वास का माहोल है. परिस्थितियां ऐसी कि ना निगलते बन रहा है और ना ही उगलते. जिसे हम विद्वता और इतिहास विश्लेषण का प्रदर्शन समझते हैं उसके पीछे की मानसिकता को भापने की छमता अब छीण हो गई है. यह विचारने की शक्ति अब शेष नहीं है कि इतिहासवेत्ता सही है अथवा समुदाय की वर्तमान परिस्थितियाँ इसके लिए उत्तदायी है. समुदाय स्वयं आंकलन नहीं करके उन इतिहासवेत्ताओं के सुर में सुर मिलाने को लाचार है जिनकी कभी कोई विश्वश्नियता समुदाय में नहीं रही. ये वही इतिहास विशेषग हैं जो स्वयं को समुदाय का शुभचिंतक कहने से नहीं थकते. मगर वास्तविकता कुछ और ही है.यह लोग राजनेतिक पार्टियों के चाटुकार हैं. जो समुदाय को इतिहास के नाम पर बरगलाकर,अधिकारों की प्राप्ति के सब्जबाग दिखाकर, अपनी राजनेतिक पार्टी को उनका उत्तराधिकारी सिद्द करके, समुदाय को दिग्भर्मित करने का अभियान चला रहे है.दुर्भाग्य यह कि ऐसे लोग हमारे ही समुदाय की पैदाइश है. दुखद है कि आज हम सत्यता का उपहास करके ऐसे लोगों का समर्थन कर रहे है.
इन राजनेतिक घुसपैठियों की लॉबी अत्यंत शक्तिशाली और अनुशाषित है. किसी एक व्यक्ति का विरोध इन लोगों के समक्ष धूमिल पड़ जाता है. जब समुदाय का एक इमानदार और जागरूक व्यक्ति इनके विरोध में आवाज उठाता है तो यह अनुशाषित समूह मिलकर उसका जबरदस्त प्रतिरोध करता है. उसकी आवाज को संगठित रूप से दबा दिया जाता है. यह समुदाय का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि वह ऐसे लोगों के मनसूबे नहीं भांपकर उन्हें अपना सर्वेसर्वा समझ बैठा है. ऐसे चाटुकार, समुदाय के किसी अन्य दिग्दर्शक और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति को कभी खड़ा नहीं होने देते. यह लोग सभी राजनेतिक पार्टियों में मौजूद है. ऐसे लोगों को इन पार्टियों ने मछुआ समुदाय को दिग्भर्मित कर अपनी और आकर्षित करने का जिम्मा इन चाटुकारों को सौंपा है. मगर समुदाय है कि वह वास्तविकता को समझता ही नहीं. जब तक वह इस उहापोह में रहेगा किसी परिवर्तन के विषय में सोचना संभव नहीं है. समुदाय को यदि आगे बढ़ना है तो पहले स्वयं को इस चक्रव्यूह से छुटकारा लेना आवश्यक है. अन्यथा गाडी जिस ढर्रे पर चल रही है वहां खाई ही खाई है. जिसे पाटना अत्यंत कठिन कार्य है.
आज एक पार्टी के एक नेता
का लेख पढ़ा. उन्होंने अपनी पार्टी का भरपूर गुणगान किया है. मगर मै उन्हें स्मरण
दिलाना चाहता हूँ कि जिस हंडिया उप चुनाव में वह सपा की उपलब्धि की बात कर रहे हैं
उसमे प्रशांत कुमार को उनके पिता की साहनुभूति के कारण जीत मिली. दुनिया में
अधिकांशत ऐसे चुनाव पीड़ित व्यक्ति के पक्ष में ही जाया करतें हैं. मगर गौर करने
वाली बात है कि प्रशांत कुमार पूर्व के मुकाबले कम वोटों से अपने प्रतिद्वंदी को हरा
पाए. ऐसा क्यों ?
लेखक
लेखक
सुरेश कश्यप
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