इस देश की पूरी व्यवस्था पूरी तरह से हिन्दू वादी हे,वर्षो से चली आ रही हे,इसका सपूर्ण यथार्थ जाति वर्ण व्यवस्था पर टिका हुआ हे ...?
कोन सा वर्ग क्या करेगा,इस पूरी व्यवस्था का सही अर्थ हे,की आदमी द्वारा आम आदमी का ही शोसन और वो भी कही दुसरे देश नहीं आई यह व्यवस्था यह तो मनु ऋषि की बनाई हुई परम्परा हे ...?
इसकी जड़े अब इतनी गहरी हो चुकी हे,की दलित और पिछड़ा वर्ग चाहे कितनी ही तरक्की करले यह व्यवस्था उन सभी को मूंह चिड़ाती रहती हे,इस वर्ग को वो सब देखना और सुनना पड़ा हे और आज भी हम सुनते आ रहे हे ...कोई सामने खुलकर नहीं बोलता ...?
सब हिडन पालिसी ( दिल में छुपी नीतियाँ ) घात-अघात प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष रूप से डिप्लोमेसी खेलते हे सामने वो हँसते हुए चेहरे
पर वो आपके सामने कुछ और पीछे कुछ और मन में तो हमेशा ही इस वर्ग के लिए छल कपट भरा पड़ा हे ...?
इस पूरी व्यवस्था पर अपनी इतनी चलाकी से पकड़ बना रखी हे,की किसी को भी आंकलन करते -२ कई वर्षो बीत गये पर गणना
का योग अभी भी सही तरह से आँक नहीं पाए हे ...इसमें हमारे लोगो का भी अहम् शामिल हे ...? जिस पर कुछ लोग तो समझ गये हे पर उनकी तादात अभी कमतर हे उन सभी उच्च जाति की तुलना मे…?
हमारी कुल आबादी निषादों/कश्यपों की पुरे भारत में बी .जे .पी .के एक सर्वे के अनुसार १८ करोड़ के करीब हे,फिर भी सत्ता से यह वर्ग बहार क्यु…किसी ने भी गंभीरता से नहीं सोचा अगर सोचा भी हे,तो केवल में और मेरे तक ही सिमित रहा हे जिसका ज्वलंत उदारण आपके सामने समस्या के रूप में मुँह बाए खड़ा हे ...?
अगर यह समाज सर्व सम्मति से धर्म परिवर्तन कर लेता हे तो जाति और उप जाति का भेद ही ख़तम हो जाएगा और हमारी गिनती की मान्यता एक बडे वर्ग के रूप में जानी जाएगी और तब सभी भिन्न-भिन्न प्रकार और छोटे और बड़े की इस लड़ाई में
सभी एक नाम और बड़ी ताकत के रूप में जाने जायँगे ...?
अगर यह पूरी व्यवस्था खुद ही इस समाज के बारे में सोच के निर्णय ले ले जो की बड़ा ही मुस्किल प्रश्न का उत्तर हे जिस पर इन
हिंदूवादी शंकिर्ण सोच से उम्मीद कम हे ...? जो उपरी तो पर तो बड़ा ही अच्छा दिखता हे पर वास्तविकता में धरातल पर ऐसा हे नहीं ...?
समाज के पास यह ही आखरी विकल्प मज़बूरी में बचता हे ...? की यह वर्ग धर्म परिवर्तन कर ले ?...मेरी तो देश के उदारवादियो हिन्दू संगठनो बुद्धिजीवीयों से विन्रम अनुरोध हे की इस गंभीर विषय पर सोचे और कुछ करे नहीं तो कहीं ऐसा न हो की स्थिति आपे से बहार हो जाए ...?
आवाज दो हम एक हे ...आपके विचार इस गंभीर मुददे पर सदर आमंत्रित हे ...?
त्रुटी होने पर क्षमा प्रार्थी हूँ …!
निषाद/कश्यप एकता जिन्दाबाद -जिन्दाबाद
लेखक/रचनाकार: रामप्रसाद रैकवार ...
दिनांक: 28.06.2013...
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