Thursday, December 5, 2013

सामाजिक न्याय से वंचित पिछड़ा वर्ग

सदियों सामाजिक न्याय से वंचित पिछड़ा वर्ग (SC ,ST,OBC ,CM ) के सामाजिक न्याय हेतु बाबा साहेब डॉ भीम राव आंबेडकर के तर्कपूर्ण दबाव में भारतीय संविधान में बहुत सारे प्राविधान बनाये गए . भारत का संविधान लागु हुए लगभग ६२ वर्ष बीत चुके है मगर इन प्राविधानो को अब तक लागू नहीं किया गया . उनको लागु करने में भी उपेक्षा बरती गयी मगर अब यह पिछड़ा वर्ग इस उपेक्षा को सहन करने के लिए तैयार नहीं है . यदि भारत सरकार, राज्य सरकारे आगे भी उपेक्षात्मक रवैया अपनाती रही तो यह पिछड़ा वर्ग इस देश में बहुत बड़ा जन आन्दोलन करने के लिए बाध्य होगा प्रशासनिक सेवाओ में वर्षो से रिक्त पड़े पदों को तत्काल भरा जाये और उनमे पिछड़ा वर्ग को उनकी आबादी के अनुसार समुचित प्रतिनिधित्व दिया जाये . पिछड़ा वर्ग को हाई कोर्ट एव सुप्रीम कोर्ट में भी उनकी आबादी के अनुसार समुचित प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए क्योकि न्यायपालिका में बैठे एक वर्ग विशेष के न्यायधिशो ने पिछड़ा वर्ग के सवैधानिक अधिकारों के साथ न्याय नहीं किया है और पिछड़ा वर्ग अब इनसे न्याय की उम्मीद नहीं कर सकता . संविधान के किसी भी अनुच्छेद में आरक्षण में ५०% का अवरोध लगाने का कोई प्राविधान नहीं है फिर भी न्यापालिका ने संविधान की भावनाओ की उपेक्षा करते हुए आरक्षण में ५०% का अवरोध लगा दिया .इसी प्रकार संविधान के किसी भी अनुच्छेद में क्रीमीलेयर लगाने का कोई प्राविधान नहीं है फिर भी न्यायपालिका ने क्रीमीलेयर लगा दिया . संविधान का अनुच्छेद १६(४) गरीबी उन्मूलन का अनुच्छेद नहीं है. गरीबी उन्मूलन का अनुच्छेद ४१ ४३ और 46 है जिसकी ६२ वर्षो से उपेक्षा की जा रही है . अनुच्छेद १६(४) सामाजिक न्याय के लिए प्रशासन और न्यायपालिका में समुचित भागीदारी का अनुच्छेद है जिसके अंतर्गत पदों और नियुक्तियों में आरक्षण की बात कही गयी है चाहे वे सीधी भर्ती से भरे जाये या पदोन्नति से या परामर्श की प्रक्रिया से .फिर भी न्यायपालिका ने १९९२ में इंदिरा सहनी बनाम भारत संघ के वाद में अनुसूचित जातियों के प्रमोशन में आरक्षण को समाप्त कर दिया इसलिए की कही अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग भी पदोन्नति में आरक्षण की मांग न करने लगे . इसके अतिरिक्त सुप्रीम कोर्ट के बहुत सारे ऐसे निर्णय है जिसके माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने पिछड़ा वर्ग के साथ न्याय नहीं किया है सेना में भी पिछड़ा वर्ग को उनकी आबादी के अनुसार कमांडिंग पदों पर नियुक्त किया जाये . इस देश का एक खास वर्ग ही देश नहीं है जिसके जिम्मे देश की रक्षा करने का तथा देश को आगे ले जाने का भार है .इस देश का ८५% पिछड़ा वर्ग (SC ,ST,OBC ,CM ) भी देश है और पिछड़ा वर्ग की उपेक्षा करना देश की उपेक्षा करना है उत्तर प्रदेश में १९७७ से पिछड़ा वर्ग के सरकारे बनने का क्रम जरी है मगर पिछड़ा वर्ग की इन सरकारों ने पिछड़ा वर्ग के लिए संविधान की भावनाओ के अनुरूप कोई कार्य नहीं किया क्योकि ये सरकारे उच्च वर्ग के नियंत्रण में कार्य करती रही है जिसका मुखिया पिछड़ा वर्ग का रहा है और नियंत्रण उच्च वर्ग का . पिछड़ा वर्ग की सरकारे ये जान ले की यदि पिछड़ा वर्ग को उनकी आबादी के अनुसार न्यायपालिका और प्रशासन में समुचित भागीदारी नहीं मिलती है तो यह पिछड़ा वर्ग इनके खिलाफ भी जनांदोलन तैयार करेगा पिछड़ा वर्ग के सामाजिक न्याय हेतु जनगरण करने के लिए समर्पित "पिछड़ा वर्ग की आवाज" हिंदी मासिक पत्रिका का विमोचन इलाहबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति माननीय आर ० सी ० दीपक ने किया है जिसका मै (डॉ जी सिंह कश्यप ) प्रधान संपादक हूँ ,और अखिल भारतीय पिछड़ा वर्ग एसोसिएसन का राष्ट्रीय अध्यक्ष हूँ .
                                       लेखक

                                डॉ जी सिंह कश्यप

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