निषाद समाज तममा के उप जतियों का अवलोकन किया जाय तो समय के
साथ बाजार में इसका बदलाव किया है। जैसे गाँव में इस समाज के लोग ज्यादा से ज्यादा
निवास करते है और ये पूर्ण रूप से भूमहीन है। पूर्ण रूप से पूजीवादी लोग पर आसरित
है। पूजीवादी लोग इसे अपना बाजार मानते है जैसे हर बस्तु की कीमत अलग अलग
होती है उसी तरह से इस समाज के बच्चो से किस प्रकार के काम करना है, स्त्री से किस प्रकार का काम करना है, आवो देखते है
स्त्री का काम मैसम के बदलाव के
अनुरूप पर होता है। जैसे बरसात के दिनों में समातवादी लोगो के खेतो में बरसात के
दिनों में दिनभर पानी में भीग कर धान रोपने का काम करती है और साथ ही उसका पति मेड़
लगाने का काम करता है। पूजीवादी लोगों के घरों पर जब कभी शादी पड़ती है तो स्त्री
उसके घर पर लगभग पाँच दिन पहले से उसके घरों पर काम करनी पड़ती है। और उसका पति
पानी भरने से लेकर पत्तल फेकने का काम करता है जब धान गेहूं के कटाई और मड़ाई किया
जाता है तो उसका पति उसके भूषा को घर पर पाहुचाने का काम करता है उसके बदले में
कुछ अनाज मिल जाता है। इस प्रकार से आयें दिन पूजीवादी लोगों के घरो पर काम करना
पड़ता है। इसका अगला समातवादी लोगों के घर
बनाने के रूप में मजदूरी करना समय आने पर मजदूरी न मिलने पर रिक्सा के पौडिल मार
कर समतवादी लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुचने का काम करते उसके बदले में
जीने के लिए कुछ मजदूरी मिल जाती है, इतना ही नहीं जब चुनाव आने पर तमाम पार्टियों के उम्मदीवार ने
इस के गरीवी और मजदूरी के फैदा उठाते हुए गाँव के
सामंतवादी सवर्ण लोगों इसका वोटों का टीका ले लेते है और इसकी गरीवी के फैदा उठाते हूएँ इसके वोटों को
बेचने का काम करते -जैसे बेचने के स्वरूपों को देख सकते इस प्रकार है शराब,साड़ी और कुछ पैसे पर वोटा खरीदने का काम
किया जाता है।निषाद समाज के आम जनता की बाजार में इसकी कीमत इस तरह है। बाजार का
समीकरण के समझने कि जरूरत
और
सामाजिक बुनावट के समाज के आधार को समझने की जरूरत है आज के बाजार में हमारे समाज
की कीमत की बुनावट में बदलाव कैसे लाया जाया जा सकता है, इस सामंतवादी के साथ कंधे से कंधा
मिलकर किस तरह से चले की नियम कानून का हिस्सेदारी बने अधिकार की वो बात करते है
जिसके पास कुछ नहीं होता है, इसलिए वह अधिकार की
बात करता है हमें अधिकार चाहिए तो नियम कानून बनाने की और निषाद के संस्कृति के
बिरसत बनाने है कि हमारी बहुत बड़ी बिरसत है आवो हम बनाए और फिर से अपने
इतिहास को सवारने की कोशिश करे - जय निषाद
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