Saturday, January 12, 2013

निषाद के तमाम उप जतियों केवल भीड़ के हिस्सा



भारतीय परिवेश को देखने से लगता है,की निषाद समाज के उप जतियों केवल ये भीड़ के हिस्सा है। इसकी ना मात्र की भागीदरी नहीं उभर कर नहीं आ पा रही है, यह केवल भीड़ के हिस्सा है। जब भी सवर्णों की अवशकता महसूस हुआ उसे भीड़ के रूप में सामील किया आप देख सकते है जैसे चुनाव आने पर हर पार्टी के लोगों ने अपने सभा को मजबूत दिखने के लिए टैक्टर के ट्राली पर बैठा कर लाने का काम करते है और नेता लोग अपनी अगुली को घूमा घूमा कर कहते है ये समाज के गरीवों लोगों अपने अधिकारो के लिए लड़ने की जरूरत है। और अपनी माँगो को रखो हम तुम्हारी आवाज को दिल्ली तक पहुचने का काम करेगे  लेकिन नेता ये वह नहीं कहता की हम दिल्ली के संसद में बैठेगे और तुमको हमेशा गरीव और आम जनता कहते रहेगे और अपनी अगुली देखा कर कहते रहेगे। ये नेता की जुबानी है जब हमारे समाज के लोग भीड़ में सामील होते है तो तो केवल दूसरे को मजबूत करने के लिए है इनकी तो खुद का जो पैर है लगता है की दूसरे का है इस तरह से ट्रीट किया जाता है। इसकी लाचारी कहे या मजबूरी कहे अपने को सुनने को आदत सी बना लिया है।  क्योकी वह कुछ कर नहीं सकता है हमारा समाज उस कपड़े के समान है जब जब समय आए उसका प्रयोग  किया जा सकता है ।  
नेतावों के लिए बस्तु और रत्न के समान है इसे बस्तु के रूप में कब करना है और रत्न के रूप कब कहना है इन सब की आदत में सामील है इस बात को समझने की जरूरत है की कब तक इन उपभोगतावादी संस्कृति के रूप में बन कर रहेगे जब निषाद समाज के पास अपनी संस्कृति है। फिर इसके साथ सा- क्यों है। अपनी संस्कृति को समझने की जरूरत न की बाम्हनों के बनाए संस्कृति जो कल्चर हिजमोनी पर आधारीत है समझने की जरूरत जैसे बिन्द मल्लाह से बड़ा है, मल्लाह से बड़ा केवट है, केवट से बड़ा धीवर है, धीवर से बड़ा तुरईया है, इस तरह से हमारे निषाद समाज के तममा उप जतियों में बाँट कर इसे सब को अलग अलग किए  गया है।  जो लगभग 134 उप जतियों के रूप  में बाँट कर रखा गया है। और सब को एक दूसरे को बड़ा बताने का काम किया गया है है। और ये समाज इस ब्रामहन विचारधारा को समझ नहीं पा रहा है इसका कारण यही हो रहा की निषाद समाज के तममा उप जातियो सवर्णों का केवल भीड़ के हिस्सा बन कर रह गया है और आए दिन सवर्णों शोषण के शिकार बनते रहते है। इस कल्चर हिजमोनी को बदलने की जरूरत है अपनी संस्कृति जानने की जरूरत है  आवो हम सब केवल भीड़ के हिस्सा न बने अपनी संस्कृति का निर्माण कर्रे - जय निषाद   

No comments:

Post a Comment