निषाद समाज के उप जतियों का
सामाजिक रूप में पहचान
निषाद समाज के तममा
उपजातियों के लोग समय(time) के साथ समझौता कर लेते है। अपने आसपास के वातावरण और प्रस्थितियों से समझौता
करते है। ये पूर्ण रूप मजदूर या गरीवी के स्थिति में है। इसलिए गरीवी होने के कारण
ये अपने बच्चों को पढ़ाने में असमर्थ होने का महसूस करते है। और बच्चों को पढ़ा नहीं
पाते है। और अपने साथ काम पर लगाने का काम करते है। अब बच्चों को काम के साथ
समझौता करना पड़ता है और फिर शुरू होता है, बच्चों को कामों के साथ
समझौता करना,आप इस समाज के बच्चों के जीवन का अंत आप समझ सकते है की जो नहीं पढ़ता है उसका
जीवन और उस समाज का जीवन का अंत कहा पर हो रहा है, जो बच्चों को पढ़ने
का उम्र है, उसे देश,समाज और साथ में अपने समाज को जानने की जरूरत है, वह न तो देश को समझ
पाता है, न ही समाज को जान
पाता है, वह जान पाता है,तो मात्र किसी के
नौकर के रूप में मजदूर के रूप में , आदि बनने का काम करता है,अब बताए जिस समाज के
लोगों नीव ही ऐसे बन पा रहीं है उसका घर और समाज की कल्पना किस रूप में करना चहेगे
और देखना चहेगे।अपने बच्चों,समाज को आगे बढ़ाना है तो इस पद्धती में हर हाल में आप को बदलाव लाने की जरूरत
है। तब फिर से निषाद को, देश में फिर से भारत का मूल निवासी रूप देखने को सपना पूरा हो सकता है। तो हमे
समय के साथ समझौता नहीं करने की जरूरत है आज तक हमारा समाज के आगे न बढ़ पाने का
कारण है, तो वह है समय के साथ
समझौता करना । आवो हम मिल कर आगे बढ़ते है और समय(time) के समझौता को रोकने
को कोशिश करते है.
निषाद समाज के उपजातियों
में सबसे ज्यादा दूसरे(सवर्ण) के बताये बाते को मानने को तैयार रहते है या मान
लेते है । जैसे ब्रामहन का लिखित साहित्य को ज्यादा से ज्यादा पढ़तेहै उसी पढ़ने को
कोशिश करते है। उस पर प्रश्न उठाने का कोशिश नहीं करते है। या संदेह नहीं करते है।अपने
समाज के लोगों बताये बातों को नहीं मानते है, आप समझ नहीं पाते है की
कारण क्या है । अपने समाज के लोगों का विश्वास दूसरे (सावर्णों )पर बना है न की
अपने समाज के लोगों पर विश्वास(fetha) पर बना है। अब आप को समझने की जरूरत है, की अपने समाज के लोगों को
अपनी बातों पर विश्वास के लिए संस्कृति को समझने की जरुरत है जो हमारे समाज अंदर
विश्वास और आस्था की आधार पर बाना है। पूर्ण रूप से सवर्णों की संस्कृति पर
केद्र्त है जब तक ये नहीं समझ सकेगे तब तक हमारा समाज दूसरे के सहारे चलता रहेगा
और हम सब असहाय महसूस करते रहेगे हम सब को समझने की जरूरत है हमारा समाज अशिक्षित
है उस आधार पर संस्कृति की आस्था समझने की जरूरत है उसी आधार पर हम सब अपने पथ को
आगे बढ़ाने की जरूरत है नहीं तो कोई आरक्षण के नाम पर, कोई आस्था के नाम पर, जिसको इस समाज को
जिस तरह से नोच नोच कर खाने का मन किया उसी आधार पर हमारे समाज के मनोविज्ञान के
आधार पर समझ कर विभक्त कर नोच नोच कर खाने का काम कर रहे है ये सब समझने की जरूरत
है। आखिर ये हो क्यों रहा है,आवों हम सब मिलकर टूटे हुए लोगों को जोड़ने का काम करते है।
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