निषाद समाज उपजातियों के पास विचार
न होना-
निषाद समाज के तममा उप जतियों में बांटा
होना विचार विहीन को प्रस्तुत कर रहा है इतिहास पर नजर डाले तो सिन्धु सभ्यता के
जनक कहे जाने वाले,
निषाद समाज अपनी सभ्यता को भूल दूसरे के सहारे और विचारों पर चलते हुए नजर आ रहे
है। आज ऐसा लागत है, की इनकी जो संस्कृति थी,सामाजिक योगदान था आज इनके विचारों का
अंत हो गया है। विचार से ही धर्म बनता न की धर्म से विचार बनता है। जो समाज अपने
समाज के संस्कृति को भूल जाता है। लगभग वह समाज हाशिये पर होता है। और सामाजिक संस्कृति जीवन
का अंत हो हो जाना है। आप आप सुना होगा की
दूसरे के दुल्हन देखने में सुंदर लगती है वही हाल हमारे समाज का है। हम अपनी
संस्कृति को भूल दूसरे के साथ व पूजते और मानने का काम करते आ रहे है। आज के
संदर्भ में देखा जाय तो हमारे समाज के तमाम नेता है। लेकिन वह अपने समाज के
संस्कृति को आगे बढ़ाने के वजय आज भी दूसरे के सहारे चलने के काम कर रहे है। इससे
तो लगता है की या तो ये अपनी संस्कृति को जानते ही नहीं है या उसे स्वीकार करना ही
नहीं चाहते ही नहीं इतना हीं नहीं अपने
समाज के लोगों ने पार्टी बनाए जैसे- मानव प्रगतीशील समाज पार्टी ,जय हिन्द समाज पार्टी
,एकलभ्य समाज पार्टी, युवा निषाद मंच,लगभग उत्तर प्रदेश में बीस से ऊपर अपने समाज के
पार्टी है इन पार्टी को देखने से तो ऐसा
लगता है की इनके पास भी विचारो को कमी
होना है या अपने समाज के संस्कृति को जानते ही नहीं है, इस तरह से हमारे समाज में
विचारों का अभाव की प्रस्तुति हो रहा है
आप सेख रहे है की हमारे
पास बहुत बड़ा आम जनता है, जो आज वह समझ नहीं पा रही है, की हम क्या करे -दूसरे पार्टी से जुड़े लोग कहते है हम
आप के समाज के है, वोट हमे आप को आरक्षण से लेकर
गरीवी को दूर करने में आप के साथ देगे और
सहयोग करेगे। अपने समाज के पार्टी
के लोग आते है, तो कहते है हम आप के समाज
के है आप हमें अपना वोट दे आप के हाथ
मेरा हाथ है,अब आम जनता समाज नहीं पा
रही है, की आखिर क्या करे जो बीस
से ज्यादा पार्टी बनाए है। उसका साथ दे या दूसरे समाज के पार्टी
से आएं अपने समाज के लोग
के साथ दे इस अभाव को देखते हुएँ विचारों
को का अभाव होना ही हमारे
समाज को आज सही दिशा
नहीं मिल पा रहा है, की आखिर करे तो क्या करे
हमारे समाज के लोग अपनी संस्कृति
के डफली
पीटने को तो काम कर रहे है लेकिन
इतने अलग-अलग तरह से पीट रहे है की जो आवाज बन कर एक
निकलनी चाहिए थी
वह आवाज के की सुर ही बदल जा रहा है। जिसे हम अपनी संस्कृति
को सहीं तरीके से प्रस्तुत नहीं कर पा रहे
है आवो अपने
बिचारो को एक कर के समझने की कोशिश
करे और अपनी संस्कृति को मजबूत करे और
अपने समाज को एक नई दिशा दे सके आज समझने की जरूरत है की दुनिया
बदल रही है
लोग बदल
रहे और हमारा समाज कहा और हम कहा है-जय
निषाद –जय समाज
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