सामाजिक जीवन के तलास
किया जाय तो जब बच्चा जन्म लेता है तो उसे माँ दूध पिलाने का काम करती है और
धीरे-धीरे जब वह बड़ा होने लगता है तो उसे धीरे–धीरे यह बताए जाने का
काम किया जाता है. की यह
माता-पिता है,ये बहन है आदि की यह जानकारी देने का काम किया जाता है।
और बड़ा होने पर वह अपने परिवार के हिस्सा बन जाता है और परिवार
के लोग उसके हर गतिबिधियों से लेकर परिवार के लोग जानकारी रखते है
।इसी
आधार पर देखा जाय तो निषाद समाज के लगभग
जतियों यह नहीं समझ पा रही है। की आखिर माता-पिता के पूर्वज कैन है। आज तक
समझ नहीं पाया की हम किस के संतान है और हमारे समाज के
विचार क्या था निषाद समाज के लोगो के ईश्वर
कैन है, आदि हर कोई इस समाज को आपने अपने तरीका
से बताने का काम करते है जैसे- हिन्दू धर्म वाले कश्यप मुनि से जोड़
कर बताते तो है कोई गुह राज निषाद से जोड़ कर
बाताने का काम किया जाता है। हर जाति के
पूर्वज को हिन्दू देव ब्रम्हा के साथ
जोड़ दिया गया है,इस संदर्भ में समझने की जरूरत है की
धर्म में चरित्रों को जोड़े कर
अपने पूर्वजो को नहीं देखा जाना चाहिए। विचार से धर्म बनता है न की धर्म
से बिचार बनता है। हर समाज के इतिहास ही उसका आधार होता है न की धर्म आधार होता
है ।
निषाद
समाज के भारतीय संदर्भ में बात किया जाय तो न हिन्दू धर्म से निकला है
न अन्य धर्म से निकाला है। भारतीय इतिहास के नीव रखने वाले इतिहास 10050 ई0 पू0 और हम सात हजार वर्ष
पीछे जाते है जो निषाद, किरात जाति के लोग भारत के जंगलो में
जहां-तहां मिलते है इसकी माँत्रसत्तात्मक
व्यास्था थी और समूहिक श्रम के रूप में
काम करते थे। बाद में सिन्धु सभ्यता के जनक के
रूप में जाने जाते है। अब निषाद समाज को समझने की जरूरत है। की कश्यप मुनि से इसका इतिहास है या रामायण
के रचयिता
बाल्मीकी जो निषाद गुह राज को मानना है। अब आप के
सामने प्रश्न
के रूप में है की आप किसे स्वीकार करेगे इतिहास जो बताता है। वह मानेगे
या जो हिन्दू धर्म में लिखित साहित्यों को स्वीकार करना चहेगे । जो भारत के नीव रखने
वाले को आज कहे जाने लगा है। की वह फलाना मुनि से बना
है तो चिलाना
मुनि से बना है। हर कोई निषाद समाज से बाहर निकाला
है उसी समाज को मनु जैसे लोगों ने गलत तरीके से प्रस्तुत किया जो आज यह समाज हसिए
पर खड़ा है, जब तक यह समाज नहीं
जान लेता की हम कैन है हमारे पूर्वज कैन है तब तक हर कोई इसे अपने अपने तरीके से
बताने का काम कराते रहेगे और शोषण का शिकार होते रहेगे दूसरी के संस्कृति को छोड़
जो शोषण पर आधारीत है उस नीत नियम को छोड़ो आवो अपनी
संस्कृति को मजबूत करे फिर से समाज को मजबूत करे –जय निषाद –जय समाज
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