Tuesday, February 5, 2013

स्वदेश फिल्म की समीक्षा


सिनेमा मनोरंजन के साथ समाज का यथार्थ चित्रण करती है। स्वदेश फिल्म भारतीय समाज को एक आईना के रूप में चित्रण करती है। उदारीकरण के बाद ग्लोबलाइज़ेशन के साथ दुनिया आज गाँव बनता जा रहा है। भारत अब मात्र बाजार न होकर पूरा विश्व बाजार बन गया है। इस बाजार में भारतीय समाज स्वदेश फिल्म में गांवों का यर्थाथ की झलक देखने को मिलती है। मोहन एक प्रवशी भारतीय के साथ होती है जो वह अपने देश में न होकर विदेश में रहता है। वह बार बार अपने बचपन के दाई को बार-बार सोचता है उसे अपने पास रखना चाहता है। वह अपनी माता के रूप में देखता है। कावेरी ने ही पाल पोस कर लॉरी गा कर बाँड़ा करती है। वह अपने दाई कावेरी माता को लेने के लिए भारत आता है  
बुढ़ापे की समस्या –
आज भारतीय परिवेश में हर कोई बूढ़ा हो रहा है। बचपन से जवानी और जवानी से बुढ़ापे तक का सफर है। माता-पिता बूढ़े होने पर आज उसको संभालने वाला उसके बच्चे भी मूड कर देखना तक पसंद नहीं कर रहे है। शहर में तो आज बुढ़ापे या विप्र को रहने के लिए विप्र आश्रम बना है। विप्र आश्रम में जीवन में जी कर विता दे रहे है। लेकिन आज गांवों में विप्र की स्थिति क्या है, यह एक शोचनीय है । इस फिल्म में तो विप्र को आश्रम में कावेरी रहती है। कावेरी को ले जाने के लिए तो एक लड़की आई थी आज आप कावेरी बहुत ही खुशनसीब थी जो कई लोगों उसे लेने लिए आते है। एक संवाद है, विप्र महिला कहती है कावेरी बहुत हीं नसीब वाली है जो उसे लेने के लिए कई लोग आए वरना इस जमाने में विप्र को कैन पूछने वाला है ।

कावेरी (माता) आश्रम नहीं मिलती है। फिर  उसकी तलास के लिए गाँव चरणपुर जाता है। गांवों में जब कोई शहरी जाता है तो उसको सेवा और घर में जाने से पहले उसकी आरती आदि से स्वागत किया जाता है, भारतीय संस्कृति की झलक देखने को मिलती है ।
महिलावों का बदलता स्वरूप –
इस फिल्म में आज बदलते समाज में महिलावों को किस तरह से रीति रिवाज को जोड़ कर  या बाँध कर रखा गया इस फिल्म मे उसे तोड़ती हुई नजर आती है। गीता के एक स्कूल की अध्यापिका है । जो अपने माता पिता के सपनों को पूरा करने और स्कूल को संभालती है । वह बड़ी हो गई है।  शादी के लिए लड़के वाले देखने के लिए आते है । देखने के बाद शादी के बात में लड़के के पिता कहता है की शादी के वाद आप को अपना अध्यापक वाली नैकरी को छोड़नी पड़ेगी । लड़की कहती है की अगर वहीं काम आप के लड़के से कहूँ की नौकरी छोड़ने के लिए कहूँ तो क्या छोड़ देगे । यह नहीं हो सकता है फिर लड़की गीता कहती है की मै शादी नहीं करुगी ।और शादी नहीं होती है । इसे भारतीय रुदीवादीता परंपरा से जकड़ा हुआ है। समाज जो अभी भी भारतीय परिवार महिलावों को रीति रिवाज परंपरा आज भी इस तमाम प्रकार के समस्यावों से जकड़ा हुआ है। लेकिन इस समस्याओं को समय के साथ धीरे-धीरे परिवर्तन हो रहा है आज महिलाएं पुरुषाओं के साथ कंधे में कंधा मिलकर चलने लगी है ।

दलित परिवारों में शिक्षा –
 फिल्म में गाँव के स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ाने के लिए मोहन नामक नायक जब गाँव में जाता है तो ब्रामहन कहता है, तुम कौन ठाकुर हो तो वह बताता है।  कि मै ठाकुर नहीं मै तो ब्रामहन कहता तुम तो दलीत के छुआ हुआ भोजन करते तो तुम तो हमारा धर्म भ्रष्ट कर रहे हो। इस तरह से भारतीय समाज के समस्योंवों को इगीत करती है।  आज भी भारतीय समाज में किस तरह से दलीतों के साथ व्यहार किया जाता है । जब वह दलित परिवार के लोगों से शिक्षा के लिए मिलता है तो वह कहता है अपने बच्चों को स्कूल भेजों तो वह दलित परिवार का मुखिया कहता है की अब तो इन लड़की के तो गंवाना आने वाला है । अब ये पढ़ेगी गंवान के बाद तो वह चली जाएगी जो बाल विवाह को देखने का काम किया है।  गाँव में जब सिनेमा स्कोप आता तो स्थान(भूमि) में सवर्ण परिवार और दलित परिवार को अलग अलग बैठने का स्थान को इगीत करती है इस भारतीय सामाजिक संरचना में दलीत परिवार को क्या स्थान है । किस तरह से इस भारतीय सामाजिक परिवेश को प्रस्तुति कर रही है। आज भी दलित परिवार के बच्चों को आज हर स्थान पर संघर्ष करना पड़ रहा जो देश को आगे बढ़ाने के लिए मेहनत करना चाहिए था। वह आज सामाजिक बराबरी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है ।

समाज से वेदखल(कुजात )-
भारतीय समाज के ग्रामीण में समाज से बेदखल (कुजात)की एक प्रथा है। समाज के वीरुध कुछ गलती कर देने पर उसे समाज से वेदखल कर देते है । जब कावेरी माता मोहन को पैसा मांगने के लिए भेजती है। जब वह उस किसान के स्थिति को देखता है और उसकी समस्या को सुनता है तब वह उसकी आत्मा को बैचेन कर देती है । वह परिवार किस तरह की समस्यों का सामना कर रहा है। परिवार को बच्चों मुख्या को कितनी समस्या को झेलना पड़ता है। समाज को वेदखल कर देने के बाद परिवार तो मर-मर कर जीता है । प्रस्थितियों का दास बना हुआ है।  जब वह इस परिवार से मिल कर लौटता तो जिस रेलगाड़ी दे लैटता तो मात्र कुछ पैसे के लिए जो बच्चा स्कूल में पढ़ना चाहिए था। वह मात्र कुछ पैसा और जीने के लिए पानी बेचता है और संघर्ष करता है । उसकी आत्मा को झकझोर कर रख देती है ।

गाँव की संस्कृति –
जब मोहन गाँव से जाने लगता है तो गाँव के पूरे सदस्य उसको विदाई के लिए सामील होते है । और विदाई करते है। लड़की उसे रास्ते मे मिलती है अपने प्यार को बताने के साथ उसकी दुबिधा को स्वीकार करती है फिर भी अपने प्यार को पाने के लिए कहती है लौट कर आ जा लेकिन वह चला जाता है जाने के बाद   समूहिक समाज का प्यार और लड़की के प्यार को भूल नहीं पाता है या कैन भूलना चाहेगा उस संस्कृति कैन भूल पाएंगा जो एक समूहिक प्यार देखने को मिलती है। गाँव में जो सामाजिक सदभावन देखने को बहुत ही कम मिलती है । मिलती है तो शोषण की संस्कृति देखने को ज्यादा मिल जाती है ।

अन्य समस्या –
भारतीय गांवों में विजली समस्या लेकर गरीवी के यथार्थ चित्रण को करती है कहाँ-कहाँ पारा दलित परिवारवों को समस्यों को सामना करना पड़ता है। यर्थाथ चित्रण देखने को मिलती है देश और समाज को आगे बढ़ाना है तो सब एक साथ मिलकर काम करे लेकिन इस फिल्म में जब शहरी वाला(मोहन) जाकर काम करने को चाहता है तो किस प्रकार से उसे जातीय वेवस्था को समाझने की कोशिश किया जाता है, ब्रामहन द्रारा उसे न करने का संकेत को प्रस्तुत को करती है। न मानने पर बहुत से समस्यावों से लड़ता हुआ आगे बढ़ता है । सामाजिक संरचना मे अगर बदलाव की किरण को लौटना है। तो आप अपने हिसाब से सामाजिक बदलाव में काम करते रहे बदलाव की किरण आप के कुछ दिनो के बाद आप के सामने होगी
प्रवाशी भारतीय को अपनो की तलास –
आज भारत के बहुत से परिवार विदेशों में है। वह भारतीय परिवार की अपनी एक अलग पहचान है । आज अपना देश उसे बुला रहा है । जो अपने भाइयों तमाम समस्याओं से गुजारा कर रहे है। उसे समाधान करने में मद्दत करे जिसे देश की प्रगती हो सके।  उसी तरह से  निषाद समाज के जितने शिक्षित लोग है आज अपना गाँव समाज बुला रहा है आप को याद कर रहा है उसे मद्दत कारों जिसे वह भी समाज के साथ कंधे से कंधा मिलकर चल सके समाज के संस्कृति की स्थापना में भागीदारी कर सके ये समाज बुला रहा है एक किरण देख रहा है।



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