राजनेतिक दलों
को कोसने से भला नहीं होने वाला !!!
****************************** ****
यह एक कमजोर और बड़बोले समुदाय की परणिति ही कही जायेगी जो अपनी परिस्थितियों से आतमसात नहीं होकर अपना दोषारोपण विभिन्न राजनेतिक दलों पर डाल देता है। यह उसी कामचोर व्यक्ति का गुण है जो काम से जी चुराने के लिए अलग -अलग बहाने गढ़ने में चतुर होता है। कुछ ऐसी ही धारणा पर अपना समुदाय चल रहा है। खुद के बलबूते तो पर्वत फतह कर नहीं सकते दोष उल्टा पर्वत का निकाल देने के हम मंझे खिलाडी है।
हमने फलां की सरकार बनाई। फलां सरकार हमारे बिना न बनेगी। हमें आरक्षण देना चाहिए। ढिमका सरकार हमारे विरुद्ध काम कर रही है। उसे देखो, हमारे अधिकारों पर अतिक्रमण कर रहा है। रोते हैं, हाय तौबा मचाते हैं मगर स्वयं अपनी अंतरात्मा से आतमसात नहीं होने का हम कभी प्रयत्न नहीं करते। हम कभी नहीं देखते कि हमारा अपना क्या वजूद हैं। यही हमारे पतन और पराजित होने का प्रमुख कारण है। नेताओं और राजनेतिक दलों पर दोषारोपण करने का यह विचित्र दौर है। जिसमे एक व्यक्ति नहीं अपितु उसकी संस्कृति, इतिहास और उसका अस्तित्व भी हाशिये पर जा रहा है। इस सभी को सुरक्षित और गौरवान्वित करने का एक ही मार्ग है, किसी अन्य पर दोषारोपण नहीं करके स्वयं के बलबूते कुछ करें। क्रांति का सूत्रपात करें। समुदाय में क्रांति लाये। सामाजिक क्रांति। अधिकारों की क्रांति। जागृत होने की क्रांति। जगाने की क्रांति। फिर विजय आपकी मुट्ठी में होगी और इस भारतवर्ष के नीतिनिर्धारक आप होंगे। चंद मुट्ठी भर लोग नहीं। जय कालू बाबा !!!
******************************
यह एक कमजोर और बड़बोले समुदाय की परणिति ही कही जायेगी जो अपनी परिस्थितियों से आतमसात नहीं होकर अपना दोषारोपण विभिन्न राजनेतिक दलों पर डाल देता है। यह उसी कामचोर व्यक्ति का गुण है जो काम से जी चुराने के लिए अलग -अलग बहाने गढ़ने में चतुर होता है। कुछ ऐसी ही धारणा पर अपना समुदाय चल रहा है। खुद के बलबूते तो पर्वत फतह कर नहीं सकते दोष उल्टा पर्वत का निकाल देने के हम मंझे खिलाडी है।
हमने फलां की सरकार बनाई। फलां सरकार हमारे बिना न बनेगी। हमें आरक्षण देना चाहिए। ढिमका सरकार हमारे विरुद्ध काम कर रही है। उसे देखो, हमारे अधिकारों पर अतिक्रमण कर रहा है। रोते हैं, हाय तौबा मचाते हैं मगर स्वयं अपनी अंतरात्मा से आतमसात नहीं होने का हम कभी प्रयत्न नहीं करते। हम कभी नहीं देखते कि हमारा अपना क्या वजूद हैं। यही हमारे पतन और पराजित होने का प्रमुख कारण है। नेताओं और राजनेतिक दलों पर दोषारोपण करने का यह विचित्र दौर है। जिसमे एक व्यक्ति नहीं अपितु उसकी संस्कृति, इतिहास और उसका अस्तित्व भी हाशिये पर जा रहा है। इस सभी को सुरक्षित और गौरवान्वित करने का एक ही मार्ग है, किसी अन्य पर दोषारोपण नहीं करके स्वयं के बलबूते कुछ करें। क्रांति का सूत्रपात करें। समुदाय में क्रांति लाये। सामाजिक क्रांति। अधिकारों की क्रांति। जागृत होने की क्रांति। जगाने की क्रांति। फिर विजय आपकी मुट्ठी में होगी और इस भारतवर्ष के नीतिनिर्धारक आप होंगे। चंद मुट्ठी भर लोग नहीं। जय कालू बाबा !!!
लेखक
सुरेश कश्यप
No comments:
Post a Comment