Monday, November 11, 2013

कहाँ जाएँ रे ............

                                  कहाँ जाएँ  रे .......                              .लेखक

                                                                                    बलराम बिंद 

सुबह हवा तेज थी, गुलाबी ठंड दस्तक दे चुकी थी फिर भी मैं घूमना चाहा । चिड़िया एक स्थान से दूसरे स्थान पर अपने पंख के सहारे उड़ती हुई नजर आ रही थी।  उस उड़ना में ही आवाज आ रही थी । कैव,कैव, तो कभी कु ...कु कु हो कु फिर क्या देखना था। रास्ते में किसान अपनी कुदाल और हासिया लिए खेतों की तरफ बढ़ रहा था, अपनी खेत की फसल को देख कर कभी इस मेंड़ के कोने से, तो उस मेंड़ कोने जाता उसकी मुस्कान भी कभी-खुशी तो कभी गम वाली थी । फसल के रूप एक समान नहीं थी । उस किसान के ही तरह भगवान ने एक तरह के फसल लगाने की कोशिश तो किया। जिस फसल के डंठल मजबूत थी कमजोर फसल के ऊपर से गीर गई कमजोर फसल धीरे- धीरे अपना अस्तित्व मिटाने लगा दुनिया बनाने वाले तेरे मन में क्या समय कहे के दुनिया बनाया ....
मेरे पगडंडी लग रही थी की वह आगे बढ़ती ही जा रही थी, किसान घर के तरफ बढ़ाने लगा चिड़िया पड़े के डाल पर बैठने लगी थी, इस संकेत से लग रहा था की मुझे भी अपने घर चलना चाहिए...........
चिड़िया पेड़ पर बैठ कर आवाज देना शुरू कर दी, लग रहा था कि वह अपने साथी के साथ भोजन के तलास में आगे बढ़ने का संकेत दे रहा हो फिर क्या था साथी एक दूसरे के आवाज सुन कर एक होने लगे फिर से पथ के लिए आगे बढ़ने लगे ...............
फिर क्या था मै भी न आव देखा ताव देखा तालाब में कूदने के काम किया मेरे कपड़े गीले हो चुके थे रास्ते में लोग देख कर हंसना शुरू का दिये पूछने लगे अरे भाई गए थे घूमने और पूरे गीले हो के आ रहे हो मुझे लगा मुझे कुछ कहने से पहले चिड़िया के तरह अपना पथ  पर चलना चाहिए फिर मै वहीं किया, निकल पड़ा ..............
रास्ते में इस दुनिया के अबूझ पहेली को देखा रास्ते में गरीब परिवार के कुछ घर था गुलाबी ठंड ने उन गरीब परिवार को सतना शुरू कर दिया था फिर उस चिड़िया की तरह वह भी उड़ना चाह रहे थे इस समजा ने इतने मजबूर कर दिया था की वह सामन्ती लोग से आए दिन अपने चुगल से बाहर जाने चांह रहे थे बाहर जा नहीं पा थे, चिड़िया अपने भोजन के तलसा में उसे उस बहेलिया से बचने के लिए हमेसा सतर्क रहना पड़ता है कि काही भोजन के तलास में बहेलिया अपना शिकार न बना ले फिर भी भोजन तो करना ही था इस सब दिन दुनिया को देखते हूँए वह अपना भोजन को तलस करती ही है, फिर भी गरीव को जीने के लिए अपने को बचाए रखने के लिए  काम तो रहे थे, लिकिन वह उड़ नहीं पा रहे थे । ................
आप को बढ़िया लगे तो जरूर अपना विचार देना .....
अगली कड़ी ....लिखूगां
                              

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