मुख्यमंत्री एक अभियान: सत्रह से ख़तरा
लेखक
बलराम बिंद
देश की आजादी के बाद देश के राजनेताओं ने आजादी पूर्व सामंती
शासन में कथित जातिय भेदभाव व असमानता को दूर कर देश के सभी नागरिकों को समान
अधिकार व अवसर देने हेतु लोकतांत्रिक शासन प्रणाली अपनाई| साथ ही पूर्व शासन काल में जातिय
भेदभाव के शिकार दलित /पिछड़े लोगों को आगे बढ़ने के अवसर देने
के लिए देश में आरक्षण व्यवस्था की| जो निसंदेह तारीफे काबिल
थी (यदि समय के साथ उसमें बदलाव किये जाते या वह एक यह व्यवस्था एक निश्चित समय के
लिए की जाती)| आखिर दलित /पिछड़े को
आरक्षण दे आर्थिक रूप से सुदृढ़ कर ही समानता का अवसर दिया जा सकता था। शिक्षा,शासन और
व्यापार में जाति एवं वर्ण आधारित शत प्रतिशत आरक्षण सदियों से कुछेक सवर्ण
जातियों का रहा है, जिसके चलते बहुतायद का हक मारा जाता रहा
और वे शैक्षणिक,सामाजिक,आर्थिक व
राजनैतिक रूप से पिछड़ गए, सबसे ज्र्यादा गरीब यही लोग हैं,भारत में शिक्षा अमीरों/गरीबों के लिए अलग-अलग है। आज भी जाति-व्यवस्था
कायम है
..मेरे
विचार से ऐसी हालत में आरक्षण जाति आधारित ही उचित है। जाति खत्म होने पर आरक्षण
स्वतः आर्थिक आधार पर हो जाएगा.। आरक्षण का
एक सामाजिक आधार है। जब यह लागू किया गया तो उसका मतलब यह था कि भारत के जातिगत, सामाजिक विकासक्रम में निचली जातियां सामाजिक,
आर्थिक, राजनीतिक तौर पर पिछड़ गयी हैं,
इसलिए इनको मुख्यधारा में लाने के लिए आरक्षण लागू किया गया था।
इस
आरक्षण के आधार पर कुछ जातियों शिक्षा मिला और आरक्षण के माध्यम से अपनी आर्थिक, सामाजिक स्वरूप के स्वर बदल गए लेकिन आरक्षण
में कुछ जातीय भोजन के तलास करती रह गई जिसका कारण यह हुआ कि वह आरक्षण के मतलब ही
नहीं समझ पाई कि, क्या है यह ,जब यह इन
जातियों को महसूस हुआ कि बिना बिना आरक्षण हमारे समाज का विकास नहीं होगा तब कुछ
राजनीतिक पार्टी ने उसे फैदा उठाने के लिए आरक्षण देने के नाम पर यूपी में 17
पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल किया जायेगा। ये जातियां
हैं - कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार,
प्रजापति, धीवर, बिन्द,
भर, राजभर, धींमर,
बाथम, तुरहा, गौड़,
मांझी और मछुआ। उत्तर प्रदेश के राज्य मंत्रिपरिषद की बैठक में इस
प्रस्ताव का मंजूरी दी गयी। जैसे ही प्रस्ताव को लागू हुआ कि कुछ ही दिन के बाद हाई कोर्ट से लोगो ने
इस आरक्षण से स्टे लेने का काम किया ।
पार्टियों के राजनीतिक
आधार मिला इस आधार पर कोई कहता है फला पार्टी तुम्हारा आरक्षण को मिलने से रोकी है
। इस समाज को यह नहीं बताता है कि इस आरक्षण के लिए संवैधानिक नियम और कानून के
तहत आप को अगर आरक्षण चाहिए तो यह प्रक्रिया है । जो संविधान के नियम कानून के तहत
17 अतिपिछड़ी
जातियों का आरक्षण मामला ही विधान चुनाव में प्रभावी भूमिका निभाता है । उन्होंने
कहा कि 54 प्रतिशत पिछड़े वर्ग की आबादी में 17 अतिपिछड़ी जाति की आबादी 18.30 प्रतिशत है । इस आधार
पर उत्तर प्रदेश के 17 जातियों को एक होकर अपना मुख्यमंत्री बनाए क्योकि पूरे
प्रदेश में 160 विधान सभा के सीट पर यह जातिय बहुल संख्या
में और कई जगह कुछ समर्थन के बाद और सीट जीत जाने की संभावना है । जिसमें इन
जातियों के नेता बड़े विशंभर प्रसाद निषाद ,समाजवादी पार्टी से
है । ओमप्रकाश राजभर , पार्टी (भासपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष
है। प्रेमचन्द्र बिंद यह (मानव प्रगतीशील
समाज पार्टी ) के अध्यक्ष है, और साथ ही डॉ संजय निषाद
(निषाद एकता मंच) के राष्ट्रीय अध्यक्ष है,बसपा से राम अंचल राजभर
है। भाजपा के मछुआरा प्रकोष्ठ के महासचिव चौधरी लौटन राम निषाद है आदि अभी वर्तमान
में मछुआरों के विधायक 16 है, साथ ही राजभर समाज से कई विधायक
है । सभी 17 सत्तर जातियों के प्रदेश स्तर पर बड़े-बड़े नाम है । 17 जातियों के नेताओं को मिलकर अपना मुख्यमंत्री
घोषणा करना चाहिए क्योकि सब पार्टी सपा, भाजपा, काग्रेस, बसपा सभी पार्टी इन जातियों के आरक्षण के
नाम पर इन जातियों वोट लेने के काम कर रही है। 17 जातियों के समाज लगातार अपना वोट
देने के काम कर रही है। जिसका प्रभाव न के बराबर लग रहा है। हर पार्टी आरक्षण देने
काम कर रही है । और देती रहेगी इन जातियों को आज सोचने और समझने कि जरूरत है ।
जरूरत है कि पिछड़े जातियो के मछुआरो को मिलकर एक तिसरा मोर्च (आरक्षण पार्टी ) नाम घोषित करके
आरक्षण के नाम पर मुख्यमंत्री की घोषणा करके ।अगली विधान सभा के चुनाव लड़े समाज के
विकास चाहते है तो समाज आप के इत्तजर कर रहा है । अब आप सभी नेताओं के ऊपर है कि समाज
को मुख्यमंत्री देना चाहते है या लाली पाप । आप के चाहने वाला समाज ----आप के राही आप
के इत्तजर में –आप के राय
जय निषाद - जय भारत
Sabse badi samasya kewal Nishad Vansh ke logon me hai. Ye apane hit ko kahan dekh rahe hain samajh se pare hai. Yadi in 17 jatiyon me kewal Nishad samuday ki jatiyan hi ek ho jayen to agala Mukhya Mantri apane samaj se ho sakta hai.
ReplyDeleteआरक्छण कोई नयी व्यवस्था नहीं हैं ये वर्ण व्यवस्था का ही एक रूप हैं / वर्ण व्यवस्था में भी तीन जातियो में १०० % आरक्छण किया गया था/ इसे पालन नहीं करने पर दंड व्यवस्था कि तहत उसकी सजा मिलती थी उसका रूप आज भी दिखती हैं /
ReplyDeleteरही बात १७ जातियो को मिलकर सरकार बनाने कि तो सासन केवल संख्या बल से ही नहीं किया जा सकता हैं उसके लिए मनोबल चरण उत्कर्ष पर होना चाहिए इन जातियो के १०० लोगो के बिच में दूसरी जाती कि २-३ दहाड़ लगा दे तो सब घर में घुस जाते हैं / कुछ मूल भुत चीजे ऐसी हैं कि उसके बदलाव किये नहीं हो सकता हैं / sc के रिजर्वेशन मिलने से केवल सरकारी पदो पर कुछ लोगो कि संख्या बढ़ जायेगी/ समाज कि दिसा नहीं बदलेगा /
समाज कि दिस कुछ दूसरे चीजो से ही बदलेगा/ हमे इस दिशा में प्रयाश करने कि जरुरत हैं/
Nice
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