Tuesday, December 24, 2013

सिर्फ एक होना चाहते हैं मगर एक होते नहीं !!!

सिर्फ एक होना चाहते हैं मगर एक होते नहीं !!!     
                                                                                                   लेखक
                                                                                  सुरेश कुमार एकलभ्य

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यह बड़ी सरलता से कह दिया जाता है कि हमे एकजुट होना चाहिए। सभी मछुआ जातियों को एक धवज ,एक शीर्षक और एक विचारधारा से जुड़ जाना चाहिए। विद्वान से लेकर अज्ञानी तक ऐसे सुर में बोलेंगे। मगर जब विषय एकजुटता का आएगा तो उसमे दोष निकालने और विश्लेषण की परवर्ती की मानो बाढ़ आ जायेगी। यही वह दुर्भागयपूर्ण क्षण होते है जहाँ सभी प्रयास धरे रह जाते हैं।

मेरी जाति धींवर है मगर मेरा परिवार कश्यप लिखता आया। कश्यप क्यों लिखा उन्हें आज तक नहीं पता। कुछ लोग कश्यप को एक जाति कहते हैं कुछ एक शीर्षक। मलाह जाति के लोग निषाद लिखते हैं। कहीं केवट तो कहीं मांझी। सारा खेल उलझम उलझा सरकार तो क्या खुद ये जातियां भी चक्कर काट जाए कि कौन क्या है। 

ब्राह्मण एक जाति है। जिसमे गोत्र के रूप में तिवारी,वशिष्ठ , भारद्वाज आदि हैं मगर उनका बोध 'शर्मा' है। एक शीर्षक उनके ब्राह्मण होने का बोध करा देता है। यादवों में कितनी जातियां हैं, मगर 'यादव' शब्द उन्हें एक मंच पर ले आता है। चमारो में भी अनेक जातियां हैं मगर इनका एक ही शब्द उनकी एकजुटता और संस्कृति को परिलक्षित करता है। 

'एकलव्य' एक ऐसा नाम है जिसे कोई भी मछुआरा जाति झुटला नहीं सकती। निषाद, कश्यप ,केवट, कहार आदि पर मतभेद हो सकते हैं मगर एकलव्य हमारे वह गौरव है जिस पर सभी एकमत दिखाई देते हैं। हम अपनी जातियों और धर्म में बने रहकर इस नाम का बड़ा लाभ उठा सकते हैं। यह हमारे मान -सम्मान का प्र्शन नहीं है अपितु हमारी आने वाली पीढ़ियों को इसकी दरकरार है। ऐसा करने से आपका सिर नीचा नहीं होता है अपितु आपका सीना फख्र से चौड़ा हो जाता है, क्योंकि एकलव्य को केवल आप नहीं पूरी दुनिया सम्मान देती है। 

मेरे इस अभियान में मुझे दो महानुभाव मिले जिन्होंने अपने को एकलव्य कहने में गर्व महसूस किया। एक अमित एकलव्य और दूसरे जसवंत सिंह एकलव्य जी। मुझे इस प्रोत्साहन से लगता है कि मै एक विचारधारा के साथ उचित दिशा में बढ़ रहा हूँ। मुझे अपनी नहीं अपने समुदाय की चिंता है। जनवरी माह से आप लोगो के लिए निकलूंगा तो जिस प्रकार दो निषादों और एक कश्यप ने एकलव्य शीर्षक चुना मांझी , केवट आदि भी एकलव्य बनने की ओर अगरसर होंगे। 

जिन्हे क्रांति का अर्थ मालूम नहीं उन्हें पता लग जाना चाहिए कि क्रांति की शुरुआत यहीं से होती है। बिगुल बज चूका है। जिन्हे मेरे साथ आना है आइये अन्यथा घर में बैठकर तमाशा देखिये।

                 

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