भारत में जाति-व्यवस्था के रूप में सामाजिक स्तरीकरण दुनिया
की सबसे जटिल और अनूठी व्यवस्था है। जाति व्यवस्था का अस्तित्व हजारों सालों से
है। चाहे हिन्दू हो या गैर-हिन्दू सभी भारतीयों को जन्म से ही एक जाति मिल जाती
है। यह जाति सामाजिक अंतःक्रिया या व्यवहार के लिए उनकी पहचान बन जाती है। लेकिन
हिंदुओं और गैर-हिंदुओं के लिए जाति का मतलब एक जैसा नहीं हैं गैर-हिंदुओं के लिए
जाति धार्मिक बाध्यता के रूप में नहीं होती हैं, यह केवल उस समाज में उनके स्तर को बताती है, जिसके वे भाग होते
हैं। सामान्य तौर पर हिंदुओं में यह विश्वास किया जाता है। कि किसी व्यक्ति की
जाति उसके पूर्व जन्म के कमों की सजा या इनाम हैं।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब भारत उदारतावादी लोकतांत्रिक
राज्य द्वारा शासित अखिल भारतीय राजनीतिक इकाई बन गया, तो प्रशासन द्वारा
प्रयोग में लाये जाने वाले शब्द-समूहों ने नयी सामाजिक संरचनाओं को प्रमुखता से
उभारा। यह प्रक्रिया अंग्रेजों के शासन में जनगणना के वर्गीकरण के दौरान ही शुरू
हो चुकी थी। आजादी के बाद संवैधानिक और कानूनी मान्यता मिलने से इनकी वैधता और बढ़
गयी। आरक्षण की नीति के कार्यान्वयन के लिए बनाए गए सरकारी वर्गीकरण से इन
समुदायों ने अपने-अपने नाम प्राप्त किए। इस रूप में अगडे़ अर्थात सामान्य (जेनरल), पिछड़े अर्थात
ओ.बी.सी., दलित
अर्थात अनुसूचित जातियाँ और आदिवासी अर्थात अनुसूचित जनजातियाँ जैसे गैर-पारंपरिक
शब्द महत्त्वपूर्ण हो गये।
मंडल आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद से लेकर अक्टूबर-नवम्बर 2005 के चुनावों तक की
कालावधि में पिछड़ों के उभार, उनके लोकतांत्रिक
निहितार्थों और उनकी गतिशीलता की दास्तान है। 1990 के बाद की उत्तर प्रदेश की राजनीति, इसमें जाति की
भूमिका, प्रभावों
और इसके फलिताथों को निम्न बिनदुओं में समझा जा सकता है।
आज उत्तर प्रदेश के राजनीति के स्वरूप को आप पिछड़ा वर्ग और
दलित के रूप में उभरकर सामने आया है, इस राजनीति हस्तक्षेप के रूप में निषाद समाज बहुल जननसंख्या
होने के बावजूद भी प्रदेश में राजनीति हस्तक्षेप का कोई रूप नजर नहीं आ रहा है यह
केवल बसपा और सपा के राजनीति हस्तक्षेप के रूप में ही नजर आ रहा है, उत्तर प्रदेश में निषाद समाज के पार्टी
लगभग बीस के आस पास है वह किस आधार पर राजनीति हस्तेक्षेप करेगा उदाहरण के रूप में
–बलिया जिला के निषदों को लेना चहुगा जो लगभग तीन लाख की जनसंख्या है। उसमें से बाँसडीह
बिधान सभा में लगभग 60000 हजार के आस पास है । आज तक एक इस बिधान सभा में एक
बिधायक नहीं बना पाये इसका राजनीति हस्तक्षेप में आज तक जिला पंचायत में एक बार
निर्मला देवी को बसपा से चुन कर जानी वाली महिला है जो सुरेंदर निषाद की पत्नी है
वह बसपा में है. इस तथ्य को समझने की जरूरत है. की आखिर कहा है. हमारी पहचान कहा है
हमारा समाज सामाजिक जीवन से लेकर शिक्षा तक का हस्तक्षेप कहीं भी नजर नहीं आ रहा
है क्यों –आप हम सब को मिल कर तलसने की जरूरत है । जय निषाद –जय समाज
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