Thursday, January 31, 2013

निषाद समाज अपनी कैम को बर्बाद होने से बचा लो –



निषाद समाज को पारंपरिक कार्यों में जी तोड़ मेहनत करने और गरीवी की जीवन को संभालने में आज वह समझ नहीं पा रहा है की ब्रांहाड़ में इस समाज को भी घड़ी के सुई के साथ 24 घंट्टे  का  समान अवसर दिया है। इस घड़ी के सुई के अनुसार 24 घंटे में इस समाज को तलाशने की जरूरत है, की किस सुई के और की घंट्टे  के अंदर है। इस तरह से भारतीय समाज में हमारे समाज को या हमारे कैम के पारंपरिक कार्यों मछली मारने का काम करना था । और गंगा पुत्र से पुकारने का काम किया जाता था। लेकिन देश आजादी के बाद धीरे-धीरे सामाजिक परिवर्तन होने लगा लेकिन साथ पारंपरिक कार्यों को करता रहा। आज नदी नाले सूखने लगे और सरकार उस नदी-नालों को ठेकेदारों के द्रारा टेंडर नोटिस प्रकाशित कर  के फिर से सावर्णो(ठेकेदारों ) के हाथ में देने का काम किया।
 यह समाज तो यह भी नहीं जनता की आखिर कर टेंडर नोटिस क्या होता है, और कैसा होता है। इसके लिए कहा जाना पड़ता है। क्या करना पड़ता है। जिस तरह से आदिवासी समाज को यह पता नहीं था की जंगल को तो वह समझता था की हमारा है। हजारों बर्षो से उसके पूर्वज रहा करते थे।  उसको यह पता नहीं था की आखीर कर जमीन के पट्टे क्या होते है।  कहा जाना पड़ता है। क्या करना पड़ता है। आज उसके जंगल को बड़े-बड़े उधोगपतियों के हाथों में उसकी जमीनो को दिया जाने लगा है, और आज आदिवासी आशाहाय हो गया है। निषाद समाज (मछुआरा)के उप जतियों के साथ ही सरकार वहीं काम कर रही है जो हजारों वर्षों से सावर्णों और पूजी पतियों ने किया आज इस दोनों में अंतर क्या है तलाशने की जरूरत है। आखिरकार मछुआरा समाज अपने आने वाला पीढ़ी को विरासत में क्या दे रहा है, और क्या देकर जाएगा ।
  आज इस आधुनिक समाज में पारंपरिक कार्यों को तो हक और अधिकार तो छीना ही जा रहा है। साथ हीं इस समुदाय के पास रहने के लिए गांवों में जमीने नहीं है। किसी तरह से पिता जी के जमीने रहने के लिए घर था उसी में तीन-चार लड़के गुजार कर रहे है। उसे उसकी जमीने दी जाय जिसे वह गर्व से कहे की हम भारतीय है ।
 मेरा एक सर्वे रिपोर्ट –निषाद सामज के उप जातियों जैसे- बिन्द,मल्लाह, साहनी,तुरहा जाति पर किया था। बच्चों,महिला,पुरुष पर किया था। शराब क्यों पिते है –जिसमें सबसे ज्यादा खुशी की बात थी की महिला मात्र न के बराबर थी वहीं पुरुषो की संख्या 98% प्रतिशत की संख्या में थी।  वहीं बच्चों की संख्या में बढ़ती उम्र 15-20 वर्षों के उम्र में धीरे-धीरे शराब की का सेवन शुरू कर देते है । इसमें महिलावों को न पीने का कारण मुझे यहीं मिला की सोशल पुलिसिया कल्चर का महत्व पूर्ण योगदान रहा वहीं बच्चों पर उम्र के बढ़ते पुलिसिया कल्चर का प्रभाव न के बराबर होने लगा और शराव का सेवन की शुरुआत होती है। आगे चलकर पुरुषों के श्रेणी में मिल जाते है यह एक शोचनीय विषय है। एक स्वस्थ समाज का निर्माण करने के लिए हम सब मिल कर तलाश करे की आने वाले हमारे पीढ़ी को  एक अच्छा समाज दे सके। जय निषाद –जय समाज

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