Saturday, June 15, 2013

मछुआरा समाज के स्वरूप के तलास –


मछुआरा जब जाल को लेकर घर से निकलता है तो जैसे ही नदी, तालाब, के किनारे से अपनी नाव मछली को पहचान करने की लिए अपनी नाव को एक जगह से दूसरे जगह पर घूमने का काम करता है। मछली को पहचान कर लेता है की कैन से मछली कहाँ है। उसी के अनुरूप अपनी जाल डालने का काम करता है और मछली मार लेता है। जब यह मछुआरा पानी के अंदर मछली को पहचान कर लेता है या जान लेता है। समाजीक रूप जीवन में दिखने वाले समाज को पहचान नहीं कर पा रहा है। यह मछुआरों के लिए बड़ी दुर्भाग्य है।और सोचनीय विषय है। की सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक पहचान से कितना दूर है और यह कब तक रहेगा..................
मछुआरा के पास संस्थान (सिस्टम ) के रूप
1- मछली मारना 
2- दूसरे के सहारे खड़ा होना 
3- हर कोई सुबह शुद्ध होता है मछुआरा शाम को शुद्ध (शराब ) से शुद्ध होता है।
4- मछुआरो के लिए पास बहुत से संस्थान लेकिन किसी काम के नहीं 
5- सब हम बड़े तो हम बड़े के रूप में जीना

6-     किसी संस्कृति को नष्ट करना हो तो जाति बना दो अपने आप मीट जाएगी ...यहीं निषाद संस्कृति के साथ हुआ जो निषाद संस्कृति में आज बहुत से उप जाति है , सब एक दूसरे से बड़े है यही कारण हुआ की निषाद संस्कृति को लोग भूल गए अपने अपने डफली पीटना शुरू कर दिये लेकिन आज जरूरत है निषाद संस्कृति को फिर से एक करने की जरूरत है। निषाद संस्कृति को निर्माण करेगा ........
7-     मछुआरों आज नदी और तालाब के जल कुंभी के समान हो गया है। जब हवा बहती है तो जल कुंभी (बसराज) हवा के आधार पर नदी नाले, तालाब, में इधर उधर होता रहता है । उसी तरह आज हमारे पास जीतने संस्थान (सिस्टम ) है बस इधर-उधर वाले ही है चाहे वह हमारे नेता लोग हो या अखिल भारतीय महा संघ हो यह सबमछुआरों के बेचने के लिए जलखुंभी की तरह इधर- उधर होते रहते है। और नदी के गहराई को नापने से बंचीत रह जाता है। जिसके कारण हसिए का शिकार हो जाता है । वही हाल मछुआ समाज का है ।
                                लेखक
                             बलराम बिंद




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