आरक्षण के नाम पर मछुआ समाज वोट बैक
भारत का इतिहास आरक्षण पर संघर्ष का इतिहास है
.कारण जिन प्रमुख शक्ति के स्रोतों-आर्थिक,राजनीतिक और धार्मिक-पर
आधिपत्य ज़माने को लेकर पूरी दुनिया में मानव-मानव के मध्य
संघर्ष होता रहा है ,वे सारे स्रोत उस वर्ण-व्यवस्था
में आरक्षित रहे जिसके द्वारा भारत समाज सदियों से ही परिचालित होता रहा है.वर्ण
व्यवस्था में शक्ति के सारे स्रोत चिर-स्थाई तौर पर ब्राह्मण,क्षत्रिय और वैश्यों से युक्त सवर्णों के लिए आरक्षित रहे,जबकि शुद्रातिशूद्रों के रूप गण्य बहुसंख्य आबादी इससे पूरी तरह वंचित रही
.उसपर तुर्रा यह कि उसके ऊपर शक्तिसंपन्न तीन उच्च वर्णों की सेवा का भार भी थोप
दिया गया ,वह भी पारश्रमिक रहित.अगर मार्क्स के अनुसार
दुनिया का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है तो भारत में वह संघर्ष वर्ण-व्यवस्था
के संपन्न तथा वंचित वर्गों के मध्य होता रहा है.
सर्वप्रथम हम भारतीय समाज की बनावट को समझे. भारतीय समाज श्रेणीबद्ध
समाज है, जो छह हजार जातियों में बंटा है. और यह छह हजार जातियां लगभग ढ़ाई हजार
वर्षों से मौजूद है.इस श्रेणीबद्ध सामाजिक व्यवस्था के कारण अनेक समूहों जैसे दलित,
आदिवासी एवं पिछड़े समाज को सत्ता एवं संसाधनों से दूर रखा गया और
इसको धार्मिक व्यवस्था घोषित कर स्थायित्व प्रदान किया गया. इस हजारों वर्ष पुरानी
श्रेणीबद्ध सामाजिक व्यवस्था को तोड़ने के लिए एवं सभी समाजों को बराबर-बराबर
प्रतिनिधित्व प्रदान करने हेतु संविधान की धारा 16 (4) के
तहत तथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 330, 332 एवं 335
के तहत कुछ जाति विशेष को प्रतिनिधित्व दिया गया. इस प्रतिनिधित्व
से यह सुनिश्चित करने की चेष्टा की गई कि वह अपने हक की लड़ाई एवं अपने समाज की
भलाई एवं बनने वाली नीतियों को सुनिश्चित करा सके. अतः यह बात साफ हो जाती है कि
जातियां एवं जातिवाद भारतीय समाज में आज से ढ़ाई हजार साल पहले से ही विद्यमान था.
प्रतिनिधित्व (आरक्षण) इस व्यवस्था को तोड़ने के लिए लाया गया, न की इसने जाति और जातिवाद को जन्म दिया है. तो जाति पहले से विद्यमान थी
और आरक्षण बाद में आया.
सामाजिक-आर्थिक आधार पर हमारे भारतीय
समाज के भूत,वर्तमान और भविष्य पर
चर्चा जरुरी है, जिससे कि आरक्षण भविष्य में देश के तरक्की
का आलंबन बने, न कि
सामाजिक मज़बूरी रूपी अपंगता की वैशाखी | सनातन शब्द
निरंतरता का प्रतिक है जिसमें कोई ठहराव भी नहीं है और कोई हठधर्मिता भी नहीं |
इसीलिए सनातन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में परिवर्तन सहज है |
भारत की सांस्कृतिक धारा का पहचान वही है किन्तु समयानुरूप इसके
सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक प्रवाह
में कई मोड़ भी दिखता है
अभी
आप देखे की सपा सरकार उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की सेवाओं में जिस तरह सरकार ने
सवर्ण जातियों के हित में आरक्षण के नियम को बदला, वह बिल्कुल हीं ऐसी
सरकार से अपेक्षित नहीं था, जो समाजवादी भी है लहियावादी हे
और ओबीसी-हितैषी भी मानी जाती है। सबसे विद्रूप तो यह है कि समाजवादी पार्टी के
किसी भी विधायक और सांसद ने इसके विरुद्ध कोई आवाज नहीं उठायी। यह किस तरह का
प्रतिनिधित्व है, जो अपने ही वर्ग के न्यायोचित मुद्दे की
अनदेखी करता है? आखिर ये सांसद और विधायक सामाजिक न्याय की
उसी धारा से तो आते हैं, जिसे स्थापित करने के लिये
दलित-ओबीसी ने अपनी कुरबानियॉं दी थीं। फिर सवाल उठता है कि या पिछड़े वर्ग के 17 जातियों ओबीसी /दलित/ओबीसी
वर्ग के ये प्रतिनिधि किनका प्रतिनिधित्व करते हैं? क्या
इनका एकमात्र ध्येय अपना निजी भला करना ही है
समाजवादी
पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव पीसीएस परीक्षा में आरक्षण का मामले में उत्तर
प्रदेश लोक सेवा आयोग के फैसले से काफी चिन्तित हैं। उन्होंने कहा कि यह मामला
कोर्ट में है इसलिए वह कुछ कहेंगे नहीं लेकिन कोई भी सरकार से ऊपर तो नहीं हो
सकता। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने कल छात्रों से कहा कि वह पुरानी आरक्षण
व्यवस्था के पक्षधर हैं।उप्र राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा नई आरक्षण व्यवस्था में
प्राथमिक से लेकर मुख्य परीक्षा एवं साक्षात्कार तीनों रूपों में आरक्षण और
ओवरलैपिंग कर कटआफ सूचि जारी की गई ,जिससे
आरक्षित वर्ग के 76 प्रतिशत से ज्यादा लोगो का चयन
सूचि में नाम आ गया.सामान्य श्रेणी के अभ्यार्थियों ने इस मामले का यह कहकर
विरोध शुरू किया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार 50 प्रतिशत
से अधिक आरक्षण नहीं लागू होना चाहिए.उन्होंने आयोग के निर्णय के खिलाफ
इलाहबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दी जिस पर आयोग तथा राज्य सरकार को
नोटिस भी जारी की गई.कितु आरक्षण विरोधी छात्र यहीं नहीं रुके.उन्होंने दबाव
बनाने के लिए मंडल-1 और 2 की भांति तोड़ फोड़ तो शुरू की ही किन्तु इस बार उनके हमले का नया
पक्ष यह रहा कि उन्होंने एक जाति विशेष से जुड़े पेशे, पशुओं
और भगवान तक को निशाना बना डाला .इस बीच याचिका पर कोर्ट का निर्णय भी
आ गया पर, उसे जनसमक्ष लाने के बजाय कोर्ट ने सुरक्षित
रखा.उधर जहा आरक्षण विरोधियों का तांडव जारी था ,
मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद देश और सभी राज्यों में
सरकारी नौकरियों व शिक्षा संस्थाओं के दाखिलों सहित स्थानीय निकाय चुनाव में भी
पिछड़ी जातियों के लिए 27 फीसद आरक्षण लागू है।
सपा ने पिछले तीन चुनाव आरक्षण के नाम पर अनसूचित जाति आरक्षण की सूची
में शामिल की जा रही 17 जातियों -सबकुछ एक ही बात को ध्यान में रखकर
किया जा रहा है- वोट बैंक, जिसके लिए अच्छा संकेत देने की आवश्यकता है। सपा
ने सत्ता में आने से पहले वादा किया था की अगर हम सत्ता में आते है तो मात्र एक
माह में आरक्षण देने का काम करगे । सपा सत्ता में आ गई लेकिन अभी तक आरक्षण का कोई
आता पता नहीं है ।
जिस आधार पर सपा सरकार 2007 में आरक्षण दिया था क्या केंद्र सरकार को ज्ञापन दे कर किया गया था । इस
आधार पर पहले राज्य सरकार आरक्षण देने का काम करे उसके आधार पर केंद्र सरकार से
माँग करे लेकिन उस आधार पर नहीं करेगी मात्र कहने के लिए मछुआरों को अनुसूचित जाति
का आरक्षण देगे, कहने के लिए आरक्षण है। ये सभी पार्टी जब तक सत्ता में नहीं आई रहती है तब
तक केवल आरक्षण के बात करती है। सत्ता में आने के बाद (भूल गए तेरा वादे गाने ) के
आधार पर हो जाता है
हमारा राजनीतिक वर्ग किसी समूह या
समुदाय विशेष को छूट देता है,किसी समस्या या क्षेत्र के लिए धन उपलब्ध कराता है - और बस, वह गरीबों, दलितों, वंचितों
का समर्थक होने का दावा करने लगता है
मछुआ समाज के सभी उपजातियों को आज
समझने की जरूरत है की एक तरफ सपा उत्तर प्रदेश के संघ लोक सेवा आयोग में आगड़ी
जातियों ( संवर्ण ) के समर्थन करते हूँ नजर आती है ,तो दूसरी तरफ पिछड़ी जातियों के 17 जातियों बिंद, मल्लाह, निषाद , तुरहा भर, साहनी , केवट आदि को अनुसूचित जाति में सामील
करने के नाम पर वोट के राजनीत करते हुएँ नजर आ रही है , एक
तरफ आगड़ी जाति को समर्थन कर रही है तो दूसरी तरफ आरक्षण के नाम पर खेल खेल रही है ।
जो आप भी जानते बिना संबैधानिक नियम के बदलाव से संभव हो सकता है लगता है आरक्षण
के नाम पर सपा इन जातियों के बैदिक संस्कृति में दलित ,शूद्र बनाकर
शोषण किया गया है । आज आरक्षण नाम
पर बहुत से पार्टी 17 जातियों के आरक्षण के नाम पर शोषण करते हुएँ नजर आ रही है ।
लेखक
बलराम बिंद
Aaapka lekha samaj ke swasthya ke liye achchha hai. Iske liye bahut bahut dhanyavad.
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