लेखक
बलराम
बिन्द
निषाद मीडिया –अभियान
निषाद मीडिया ब्लॉग की शुरुआत 01-09-2013से लिखना शुरू किया। भारतीय
इतिहास के मूल निवासी आदिवासी निषाद के इतिहास मछुआरों, आखेटक रूप में मिलता है । निषाद मछली मारने और नाव के पार उतरने के वजह से
वह कहीं केवट, तो कहीं मल्लाह,तो विंद के नाम से जाने लगा । इस तरह
से पूरे देश में 150 नाम से जाने लगा । देश के हर प्रदेश में इसे अलग-अलग नाम से जाने जाता है। महाराष्ट्र
में इसे कोली , भोई कहार, आदि के नाम से जाने जाता है । इतिहास के पन्नों में काम हर कोई (मछली)मारना था।आदिवासी समाज अपने अवश्कता के अनुसार नाम रखा जैसे- नाव लाने के लिए केवट कहा गया तो मल्लाह तो कही माझी लेकिन यह समाज समझ नहीं पाया की तक तक चालाकी से इसे जाति के रूप में बदलने के काम किया गया
है । एक दूसरे से बड़ा बताने का काम किया गया जिसका कारण यह हुआ की यह समाज हसिए का शिकार हो गया जो खुद शिकार करता था। आज वह हसिए पर
खड़ा है। इसके नाम पर राजनीतिक रोटी सेकने के काम कर रहे है इस समाज को आज के परिपेक्ष्य में दर-दर के ठोकर खा रहा है।इस आदिवासी समाज के विकास और बदलाव के पहल में उसकी आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक में परिवर्तन के लिए निषाद मीडिया की एक पहल ...आने वाले समय में एक दिशा देने के लिए पथ पर नजर आएगा ।
फेसबूक लिखे गए कुछ विचार -
1-
मित्रों ताली बजाने का वक्त नहीं ताली बजवाने का वक्त है। ताली बजाना छोड़
कर हवा में हाथ लहराना शुरू करों लोग खुद बख़ुद ताली बजाना शुरू कर देगे
2-
बदलाव के राह पर ग्राहक होना है......
गरीब और आम को बदलाव के बात करते है लेकिन नेताओं के कहने का मतलब है कि बदलाव ही ग्राहक है ।
जैसे आप देख सकते है। चुनाव आने पर खुद ही साड़ी,शराब,मुर्गा देने काम करते अब बन गए ग्राहक
गरीब और आम को बदलाव के बात करते है लेकिन नेताओं के कहने का मतलब है कि बदलाव ही ग्राहक है ।
जैसे आप देख सकते है। चुनाव आने पर खुद ही साड़ी,शराब,मुर्गा देने काम करते अब बन गए ग्राहक
3-
जो तेरी समस्या थी वह मेरी भी थी लेकिन तू कभी जाति के नाम पर अलग करता तो
कभी धर्म के नाम पर तू कभी ज्यादा जनता था तो मै कभी ...लेकिन तू भी अजीव है हर
बार तू अलग करके ही देखता है और शोषण के रूप को ढूढता है ...फिर शोषण करता है गज़ब
का नीति है आप की .....
4-
कहने के लिए करोड़ों में हो लेकिन प्रतिनिधित्व अपने को कर ही ना पावे फिर
वह किस काम के करोड़ के संख्या में होना ......
5-
स्वार्थ देखा तो पार्टी joins किया दलाल मत कह क्योकि नेता बना अपने भविष्य के लिए न कि समाज के भविष्य
के लिए .........मित्रों चुनाव आने वाला है सावधान –आगे
सामाजिक दलाल है जरा देख कर चले ...नहीं तो गढ़े में गीर जवोगे ...बच के ..........
6-
.काम करना है तो समाज का काम कर, नहीं कि पार्टीयों
के दलाल बन जा ...
7-
पैदा करना है तो खोजकरता पैदा कर न कि मजदुर पैदा कर .....
8-
समाज का काट रहे है – हाथ
गाँव में निषाद संस्कृति के जातियों ( बिंद, मल्लाह, साहनी, केवट,तुरहा) से पूछने के आधार पर हर गाँव में इस समाज के कुछ लोगो की आर्थिक रूप से मजबूत है, सही है, दस गाँव के राजनीत सर्वे के आधार पर आम जनता बताएँ की जो लोग बड़े लोगो के संपर्क में वह चुनाव आने के समय वह कुछ पैसा,शराब, साड़ी का यह लोग वितरण करते है, और जहाँ वोट देने के लिए कहते है वोट देना पड़ता है।
गाँव में निषाद संस्कृति के जातियों ( बिंद, मल्लाह, साहनी, केवट,तुरहा) से पूछने के आधार पर हर गाँव में इस समाज के कुछ लोगो की आर्थिक रूप से मजबूत है, सही है, दस गाँव के राजनीत सर्वे के आधार पर आम जनता बताएँ की जो लोग बड़े लोगो के संपर्क में वह चुनाव आने के समय वह कुछ पैसा,शराब, साड़ी का यह लोग वितरण करते है, और जहाँ वोट देने के लिए कहते है वोट देना पड़ता है।
9-
जब तक हसिए के समाज जातिय भवना से हटकर सामाजिक-संस्कृति के बात नहीं करेगी
.....तब तक हसिए के समाज का विकास नहीं होगा अब आप के ऊपर है ..............
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