Wednesday, January 15, 2014

क्यों हूँ गुलाम सा नहीं दिखा इंसान सा

                                                                                   लेखक/रचनाकार:                   
                                                                                रामप्रसाद रैकवार


!! क्यों हूँ गुलाम सा नहीं दिखा इंसान सा !!

क्यों हूँ में गुलाम सा नहीं दिखा इंसान हे .!
क्यों हूँ में परेशान सा .......................!!

फोकी तुर्राटी हे सरो पे फिर,हुक्का केवल चोपाल में .!
रहो फिर ख्याल में,यह दिमाग हे इंसान सा .........!!

आजाद हे न मिले हवा,क्यों हे कोई अब गुमान सा .!
जो थे मूल निवासी यहाँ,क्यों हे वो अब गुलाम सा .!!

दिखते केवल सपने यहाँ,यह जीवन क्यों पहाड़ सा .!
जंगल भी अब अपने नहीं,नहीं कोई सम्मान सा ...!!

न हे नदी न तालाब अपना,वो हे केवल सपना सा .!
उजड़े यहाँ गाँव भी,शहर भी अब शमसान सा ......!!

खुली घटा क्यों दम घुटा,दबी सी हे जुबान भी .....!
खुले हे रास्ते वतन,क्यों बाजार भी सुनसान सा .!!

न खेत हे न खलियान अपना,मजबूर यहाँ किसान भी .!
फतवों के लगे जो दौर यहाँ,अब लगे फरमान सा ........!!

कब्जा लिए दिमाग भी,ज्ञान भी अवाम की शान भी ...!
टपके का डर्र हर किसी को क्यों,डरा हे अब अवाम सा .!!

रोकिटों आवाज में घुटी सी हे,हर जुबान क्यों ........!
छुपी हे वो तलवारे भी,मोके पे न हे कोई खंजर सा .!!

वो शिकार भी करे यहाँ,बैठके मचान पे ......!
दिखे न वो न दिखाई दें,खेल हे बेइमान सा .!!

डरा-डरा सा अवाम क्यों,हे वो क्यों परेशान सा .!
बेठा यहाँ इंसान सा,लगे हे क्यों, शेतान सा ....!!

जमीदारों की तरह ही दौर हे,और हर जगह हे शोर सा .!
मिला न कोई दम सा,नहीं कोई इंसान सा .............!!

व्यापार के इस नए दौर में,इंसान ही शेतान सा .!
पाठ पड़ाए ज्ञान का,लगे हे क्यों बेइमान सा ....!!

क्यों हूँ में गुलाम सा नहीं दिखा इंसान हे .!
क्यों हूँ में परेशान सा .......................!!

जय हिन्द ..जय समाज .. जय भारत 

लेखक/रचनाकार: रामप्रसाद रैकवार ...

दिनांक: 02.09.2013...

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