निषादों के गांधी – चौधरी लौटन राम निषाद
लेखक
बलराम बिंद
सारांश –
पिछड़ों, दलितों, आदिवासियों, निषाद, आदि के सामाजिक बदलाव के अग्रदूत,हैं। शिक्षित बनों, संघर्ष करों, और आगे बढ़ों, के
आधार पर लौटन राम निषाद नें मछुआ समाज के विकास के लिए वह दिन को दिन और रात को रात
नहीं समझते समाज के विकास के लिए देश के हर कोने में आए दिन वह अपने मशाल को लेकर घूमने
के काम करते है। यह दीपक हर दिन देश के कोई
ना कोई जिले में हर दिन दीप से समाज को रोशनी देने का काम कर है।
प्रस्तावना-
देश के आजादी दिलाने में महात्मा गांधी का बहुमूल्य योगदान है। उसी तरह
पिछड़ों,
दलितों, आदिवासियों के प्रेरणा श्रोत, में लौटन राम निषाद का संघर्ष योगदान ने दलित,पिछड़ों, आदिवासी, समाज को आवाज देने के काम किए। अति पिछड़ी जातियों या
निषाद-मछुआरा समाज के साथ कांग्रेस, सपा व बसपा ने भी छलने का प्रयास किया था। अब निषाद-मछुआरा
समाज की मल्लाह, केवट, बिंद, धीवर, धीमर, कश्यप, कहार, गोड़िया, मांझी, रायकवार आदि सहित कुम्हार प्रजापति राजभर आदि जातियों का इन
दलों से मोहभंग हो चुका है। भाजपा सपा-बसपा व कांग्रेस की बातों पर विश्वास नहीं
किया जा सकता क्योंकि ये वादा खिलाफी करने वाले दल हैं। 2007 के चुनाव घोषणा पत्र
में कांग्रेस ने अन्य राज्यों की भांति निषाद-मछुआ समुदाय की जातियों को अनुसूचित
जाति में शामिल करने का वादा किया था। राहुल गांधी ने भी निषाद-मछुआरा समाज की
जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल कराने का संकल्प किया था। लेकिन उन्होंने अपने
वादे पूरे नहीं किए। यही नहीं 27 जनवरी, 2009 को सोनिया गांधी ने एनटीपीसी गेस्ट हाउस ऊचाहार, रायबरेली में राष्ट्रीय निषाद संघ के प्रतिनिधियों से कहा
था कि इस बार तो नहीं अगली सरकार बनने पर निषाद-मछुआरा समाज की जातियों को निश्चित
रूप से अनुसूचित जाति का आरक्षण दिलवाऊंगी। आप लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की मदद
करिए। निषाद-मछुआरा समाज ने 2009 के लोकसभा चुनाव में खुलकर कांग्रेस की मदद की।
लेकिन कांग्रेस ने वादा पूरा नहीं किया।
मझवार, तुरैहा, गोड़, खरवार, बेलदार, खोरोट आदि मछुआरा वर्ग की जातियां 1950 से अनुसूचित जाति
में शामिल हैं। लेकिन चमार, वाल्मीकि आदि जातियों की तरह इनकी उपजातियों को परिभाषित न करने के कारण यह
समाज आरक्षण के लाभ से वंचित हो रहा है। 1961 की जनगणना के मुताबिक, माझी, मल्लाह, राजगौड़, गोड़ मझवार आदि को मझवार की पर्यायवाची जाति मान्य किया गया
है। इसी तरह गोड़िया, धुरिया, कहार, राजी, रायकवार, बाथम, सोरैहिया, पठारी, राजगौड़ आदि को गोड़ और धीवर, धीमर को तुरैहा का समकक्षी व पर्यायवाची उप जाति माने जाने
के बाद भी अधिकारी प्रमाणपत्र जारी नहीं कर रहे हैं।
सामाजिक गतिशीलता –
हर समाज आधुनिकता में तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है। और आधुनिक का हिस्सा
बन रहा है। मछुआरा या दलित, आदिवासी, पिछड़ा
आदि में मछुआरा समाज में शिक्षित ना होने के कारण बहू जनसंख्या होने के बाद भी
निषाद समाज में शिक्षा या अन्य क्षेत्रों में कुछ खास बदलाव देखने को नहीं मिल रहा
है। वह आए दिन अपने मजदूरी के हिस्सा में से वह शराब,का सेवन कर जाता है जिसका कारण है की वह आर्थिक रूप से कमजोर
होता जाता है मुख्य धारा शामिल नहीं हो पाता है। चौधरी लौटन राम निषाद ने समाज के
वीच में इन सामाजिक समस्या और बुराई से समाज को आगाह और सचेत रहने को प्रेरणा देने
का काम किया जो आज इन सामाजिक समस्या और सामाजिक बुराई से धीरे-धीरे दूर होता नजर
आ रहा हैं।
हवा और मांझी
मांझी हवा का पहचान तो करना जनता है लेकिन वह पानी को देखने के बाद हीं बात
सकता है की कौन से हवा आने वाली है। यह समाज शिक्षित ना होने के कारण वह आधुनिकता
के साथ कंधे से कंधे नहीं मिला पा रहा है। जिसका विकास और बदलाव हो सके लौंटन राम
निषाद ने आरक्षण के लिए आए दिन संघर्ष करते रहते है। समाज में जब कोई बिंद निषाद
या मछुआरा के नाम लेने से लोग घबराते थे उस समय लौटन राम निषाद ने आए दिन लखनऊ में
आंदोलन खड़ा करने के काम किया और आम जन से मुख्य धारा में लाने के प्रयास किए । मांझी
बदल रहा है अपनी आवाज को बुलंद कर रहा है।
राजनीतिक संघर्ष –
सत्ता पाने के लिए राजनीतिक हिस्सा बहुत हीं जरूरी हैं। वह इस आवाज से युवाओं
को आए दिन संघर्ष के हिस्सा बनने की प्रेरणा देते रहते हैं। वह कई राजनीतिक पार्टी
के हिस्सा तो बने लेकिन अपने समाज के विकास के लिए वह पार्टी को छोड़ने में कोई कसर
नहीं छोडते है। हर पार्टी उनके ईमानदारी के कायल है। हर पार्टी लौटन राम निषाद को
अपने पार्टी के हिस्सा देखना चाहती है। वह पार्टी के होने के बाद भी समाज के विकास
के हीं बाते रखते है सत्ता के पार्टी से भी मुखर होकर अपनी बात रखने में कोई संकोच
नहीं रखते हैं,जो यह बात युवाओं को
प्रेरणा देती है।
व्यक्तित्व और छबी
निषाद समाज के कितने नेता बने और कितने बिगड़ गए लेकिन वह आज भी नाव की पतवार
के समान खड़े होकर नाव को धीरे-धीरे आगे बढ़ा रहे है। यह वह छ्बी है जो मिथक और
अन्धविश्वास से समाज को बहुत दूर ले जाने के प्रयास करते है । वह समाज के कुछ नेता
अन्धविश्वास को और मजबूत कर रहे है। बदलाव के लहर फिर से समाज मजधर में खड़ा नजर आ
रहा है। यह वह छबी है तो तुझे बदलना ही होगा के तर्ज पर मिट्टी के घड़े से पत्थर में
भी चिन्ह बना देता है। संघर्ष जारी है तुझे बदलना हीं होगा।
निष्कर्ष –
निषाद समाज आज अपने हक और अधिकार के लिए आए दिन संघर्ष करता हुआ नजर आता है वह
चाहे वह राजनीतिक मंच हो या सामाजिक बदलाव की उसमें सबसे पहला नाम लौटन राम निषाद के
योगदान और संघर्ष को यह समाज याद करता रहेगा ।
Samaj ko sangharshsheel banayen samaj labhanvit hoga yeah kaam Lautanram Nishad Ji kar rahe hain samaj unaka aabhari hai. Jai Nishad Raj.
ReplyDeleteSamaj ko sangharshsheel banayen samaj labhanvit hoga yeah kaam Lautanram Nishad Ji kar rahe hain samaj unaka aabhari hai. Jai Nishad Raj.
ReplyDeleteकाका श्री जिन्दाबाद ✊
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