सामाजिक बदलाव अपने आप आता है,
या
समय के साथ बदलाव आता है, यह प्रश्न मछुआ समाज के सामने यक्ष बन कर खड़ा है।
आज भी निषाद समाज में बुद्धजीव है, बहुत से पार्टी
में सपा,बसपा,काग्रेसऔर
भाजपा ये लोग बड़ी ज़ोर सोर से कहते है की हम निषाद समाज के आगे बढ़ाने का काम कर रहे
है,जैसे आरक्षण के नाम पर,
केवल
वोटो के लिए ही आरक्षण के आधार विकाश मान लिया गया है या परिवर्तन हो जाएगा। ये सायद
गाँव तक हमको नहीं लगता है, ये पहुचते
होगे। गांवों में निषाद समाज के जो तस्वीर उभर कर आ रही है हमकों लागत है सायद अपने
समाज के नेता अनिभिज्ञ है, क्योकि गांवों
में निषाद समाज के परिवारों के जो तसबीर है, अशिक्षित
होने के कारण एक परिवार के पास चार से पाँच लड़के है। आज हालत यह है की जो पिता जी के
पास जो रहने के लिए जो घर था वह आज उसी को बाँट कर किसी तरह से अपना जीवन गुजर और वसर
कर रहे है, ये हालत है की उनके पास रहने के लिए
घर नहीं है। खड़ा होने के लिए जमीने नहीं है यह समाज कैसे अपना गुजर बशार कर रहा है
यह तो भगवान ही जान रहे है। नेता लोगों तो विकाश पर विकाश कर रहे है,
समाज
में सामाजिक क्रांति पर क्रांति ला रहे यह कभी नहीं कह रहे की अगर विकास कर रहे है
तो हम अपना विकाश कर रहे है पार्टी के माध्यम से जो पार्टीय सुख सुविधा दे रही है उस
आधार पर अपने समाज के पास जा कर उल जलूल के विचारों के ड्रारा समाज को दिग्भरमित करने
का काम कर के अपना विकास का रूप रेखा ही बादल लिए है।
इतना ही नहीं है समाज में और हमारे पास सामाजिक क्रांति
लाने का काम कर रहे है जैसे निषाद समाज मे पास पूरे देश में मछुआ समाज को विकास के
लिए लगभग 1000 संगठन इस संगठन के माध्यम से निषाद समाज के कागजो पर विकाश पर विकाश
कर रहे है, और सामाजिक बदलाव पर पहल पर कदम कदम
आगे बढ़ रहे है और मछुआ समाज विकाश पर विकाश कर रहा है इस सामाजिक संगठनो को देखने के
पर लगता है की समाज आगे बढ़ रहा है लेकिन जैसे ही पास से देखने के बाद वास्तविक अनुभूति
होती है की ये तो केवल अपना सुख स्वार्थ को पूर्ति कर रहे है। ये संगठन अपने आप को
देश में सबसे ज्यादा काम करने वाला बताने का काम करते है, कोई
किसी से छोटो नहीं है सब अपने आप में बड़ा है, और
समाज को सब आगे बढ़ाने का काम कर रहे है और समाज आगे बढ़ रहा है।
इतना ही नहीं है हमारे समाज के पास तो देशभर में कई
पत्रिका आति है, कोई निषाद ज्योति,
के
मधायम से तो कोई मछुआ दर्शन के माध्यम से तो को कश्यप के माध्यम से इन पत्रिकावों को
देखने के माध्यम से तो यहीं लगता है, की कोई कश्यप
जी के संस्कृति को आगे बढ़ा रहा है तो कोई निषाद संस्कृति को आगे बढ़ाने का काम कर रहा
है तो मछुआ समाज के संस्कृति को आगे ले जा रहा है इन पत्रिकाओ को देखने से यही लग रहा
है की ये भी सु निश्चित नहीं कर पा रहे है की हमे किस संस्कृति को आगे बढ़ाना है,
और
ये भी चिल्ला रहे है की हम भी समाज मे सामाजिक बदलाव और सामाजिक क्रांती लाने का काम
कर रहे ये मात्र कागजो पर ये भी समाज में सामाजिक बदलाव ला रहे है,
ये
तो जो आज भी मछुआ समाज में गरीवो तक पहुच से लाखों कोशो दूर है,
और
ये भी समाज में बदलाव ला रहे है ,मछुआ समाज
या निषाद समाज को देखा जाय तो हर कोई अपने माध्यम से विकास कर रहा है लेकिन विकास का
मछुआ समाज में बदलता स्वरूप नहीं दिखाई दे रहा है। क्या समाज अपने आप बदल रहा है,
या
सामाजिक संगठन और नेता या पत्रिका बदलाव ला रही है - जय निषाद लेखक
बलराम विंद
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