Tuesday, April 2, 2013

गरीब के लिए यह समाज ही नहीं



आज ही घर से वर्धा पहुचा, लेकिन आज मै एक महिला को भीख मागते हुआ देखा,वह अपने थाली में भगवान, शंकर जी, दुर्गा जी, और देवी देवता का फोटो था, वह अपने भगवान के नाम पर भीख मांग रहीं थी, वह हर ट्रेन के डब्बा मे एक-एक रो कालम में जा- जा कर भीख माँग रहीं थी लेकिन ट्रेन में बैठे लोग यह कह रहे थे, की भगवान के नाम पर ढोग करके भीख माँग रही है। और उसको पैसा लोग नहीं दे रहे थे, यहीं मानवा जब मंदिर में जाता है तो पड़ित जी को कम से कम 1000 रुपया का चड़वा देकर आता है। वाह पर पड़ित जी को देने के बाद उसकों यह नहीं लगता की पड़ित जी को चढ़ाव रुपया उसकों ढोग नहीं लगता हैं।
इस आधार पर मछुआ समाज के लोग गरीव होने के वावजूद वह जब चुनाव के मैदान में कदम रखते है, तो समाज के लोगों सवर्ण परिवार उसकों कहता है, की ये तो वोटो कटवा कहते है, इतना हीं नहीं समाज के तमाम पार्टी है, जैसे सपा,बसपा,काग्रेस, भाजपा ,आदि अगर इन पार्टी से आप को टिकट नहीं मिलने के बाद आप चुनाव के जंग में आने का ऐलान करने पर इस पार्टी के लोग जब प्रचार करने के लिए जाते है, तो यह भी यही बताने का काम कराते है की वह तो केवल वोटो को काटने के लिए खड़ा किया गया है, वह जीतने के लिए नहीं खड़ा है, वह केवल वोटो के काटने के लिए खड़ा है, मुझे तो यही लगता है की जिसके पास सब कुछ है उसी के लिए सिस्टम बना है, कहने के लिए है की हर आम आदमी को उतना ही अधिकार है जितना बड़े लोगों।
 आखिर में गरीब भी उसी भगवान के अभिव्यति के के माध्यम से जीने का सहारा ढुढ़ रहा है तो वह गलत है, और बड़े लोग उसी भगवान के अभीव्यक्ति के माध्यम  से जीना चाहे तो सहीं है, ये कहाँ तक प्रासंगिकता है इस समाज में गरीवा कुछ भी करे तो लगता है की वह तो गलत कर रहा है, गरीव परिवार के अभिव्यक्ति के माध्यम में कैन सा अधिकार दिया गया है की वह भी अपना जीवन अच्छा से गुजर-बसर कर सके  क्या उसके अधिकार में केवल मजदूरी करने का अधिकार है, या अन्य भी अभिव्यक्ति करने का अधिकार दिया गया है  

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