Sunday, March 17, 2013

मछुआ समाज यानि निषाद समाज के संस्कृति कहाँ है।


मछुआ समाज यानि निषाद समाज के संस्कृति कहाँ है।
निषाद के तमाम उप जतियों को इस तरह से बाट दिया गया है की ये कभी भी एक नहीं हो सकते है। आप समझ सकते है (कल्चर हिजमोनी ) का मतलब होता है संस्कृति प्रभुत्त्व होता है, जो जतियों में ये बताने का काम किया जाता है। तुरहा से बड़ा मल्लाह है, मल्लाह से बड़ा बिन्द, है बिन्द से बड़ा कहरा है, केवट से बड़ा कोली है, इस तरह से (कल्चर हिजमोनी ) को बनया गए है। इस कल्चर हिजमोनी ने इस समाज को एक होने नहीं देगा,और जब ये एक नहीं होगा तो आप देख सकते है। इस भारतीय वर्ण वेवस्था में शुरू से इस समाज को नोच नोच कर खाने का काम किया गया है। जब तक एक नहीं होगा तब तक हर प्रकार का अभीजत वर्ग अपने हिसाब से इसे नोच-नोच खाने और आपने प्रयोगशाला में टेस्ट करने के लिए प्रयोग में लाने का काम करेगा। कारण है की ये जातीय अशिक्षित होने के कारण ये जातीय भारतीय परंपरा वेवस्था को मानती है जैसे कलयुग,द्रपर त्रिता, की परंपरा को जीवित रखने का काम करती है, इस समाज को आज समझने की जरूरत है,की हम लोकतन्त्र मे जी रहे है। ये समाज अशिक्षित होने सामाजिक बदलाव को समझ नहीं पा रहा है। यहीं कारण है की जो  भारतीय समाज के सामाजिक संरचना को नहीं जानेगा। वह समाज दूसरे समाज के आगे पीछे घूमने का काम करेगा और उसकी परंपरा को जीवित रखेगा और अपने समाज के जीवन का अंत करने या बनाए रखने कोशिश करेगा जैसे आप हर क्षेत्र में देख सकते है चाहे वह राजनीत हो या शिक्षा आप इस कल्चर हिजमोनी को आप देख सकते है ।
इतना ही नहीं हमारे देश के नेता लोग भी इस समाज को मनोविज्ञान के स्थिति में देखा जाय तो हमारे समाज के लोगो के मनोस्थिति समझने बड़ी आसानी से समझा जा सकता है कारण है की गरीव,अशिक्षा, आदि से लैस है दूसरे समाज के लोगो ने हमारे समाज किस तरह से मोनो स्थिति को किस तरह से समझे है जैसे आप देख सकते है चुनाव आने पर नेता लोग आते है कहते है हम आप के समाज के वोट दीजिये,पहला चरण दूसरा चरण कैन से लोग पैसा पर आपना वोट दे सकते है और कितने लोग साड़ी,मुर्गा,और दारू पर आपना वोट दे सकते है इस तरह से हमारे समाज के मनोस्थिति को समझते है आप लोग बताए अपने समाज के दूसरे लोग इस तरह से समझते है अब हम लोगो को सोचना होगा की किस तरह से अपने समाज की मनोस्थिति को बदलने में परिवर्तन लाया जा सकता है- जय समाज- जय निषाद

आज आप देख सकते है की मीडिया में निषाद समाज या मछुआ समाज के बहुत बड़े स्तर पर कभी-कभी खबर देखने को मिल जाती है। आप देख सकते है प्रत्येक दिन का समाचार पत्र को पलटने के बाद पूरी की पूरी मीडिया मात्र बड़े लोगों के गुडगान से भार पड़ा होगा और कभी निषाद समाज की मीडिया में खबर बनेगी तो सावर्णों द्रारा छेड़खानी या रेप की खवर बनती है हमारे समाज के और भी बहुत से पहलू है जैसे गरिवी शिक्षा, रहन सहन भेस-भूसा शोषण का शिकार आदि कभी इन पर विचार नहीं नहीं करता है। कभी-कभार आप देख सकते है हमारे समाज का सम्मेलन होने पर फोटो को सादे पृष्ठ पर डाल दिया जाता है उसको हाइलाइट नहीं किया जाता है ।इसके पीछे की मनसिकता को समझ सकते है। आखिर हमारे समाज को मीडिया में प्रस्तुति को लेकर और सामाजिक बदलाव के पहल नहीं करता है क्योकि साइनिक इंडिया के नारा ठंडे बस्ते मे पड़ जाएगा और GDP के नारे मेन समस्या आ जाएगी की हमारे देश में इस तरह दे भी जी रहे है लोग इस तरह से मीडिया ऐसी न्यूज बनाने मे सरमाती है ।

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