Sunday, April 7, 2013

निषाद(मछुआ समाज) की आशाएँ


    
                                  निषाद समाज के गांवों में घूम घूम कर आस पास के लोगों से यह जानने का कोशिश किया की नेता और सामाजिक लोग कब कब आने का काम कराते है, और कब कब साथ देने का काम करते है। लोगों का एक ही जबाब था जब चुनाव आता है तो हमारे समाज के नेता हर पार्टी से आते है। और कहते है। की आप हमारे पार्टी को आप वोट देकर उसे आगे बढ़ाने का काम करे । और समय आने पर हम आप के साथ देगे  जब ये आपना वोट दे कर भेज देते है। तब वह फिर कभी भी उनसे मिलने और कहने नहीं आता है की आप के साथ है। जरूरत पड़ने पड़ आप के साथ देगे फिर चुनाव के समय आने के समय आते है और गीले सिकवा बताने का काम करते है। और फिर से साथ देने को कहते है। आम जनता को अपने समाज के नेताओं के साथ तो मोह स्थापित तो कर रहे है। लेकिन चुनाव के समय तक ही नेता लगभग  सभी पार्टी में है। क्योंकि फिर से ये पूछने वाले नहीं है। तुमहार क्या हाल है।  जनता तो चाह रही है की कोई अपना हो लेकिन नेता अपना स्वरूप तो बदले।
                                  निषाद समाज सभी उपजातियों को आज समझने की जरूरत है की अपने समाज लोगों से और अपने समाज से तादात्म्य (मोह ) नहीं कर पा रहे है। जो अपने के प्रति होता है, या जैसे भगवान (god) के साथ होता है। आज इस समाज को नेता लगभग कितना भी कहे की हम आप के भाई है। मगर ये मानने को तैयार नहीं है। मुझे लगता है, की हो सकता है की जब हमारा भाई ही हमें मानने को तैयार नहीं है तो वह या तो किसी पार्टी के साथ जुडने का काम करता है। या तो किसी और के साथ अपना सहभागीता निभाने का काम करता है।
                             इसलिए इस समाज के निषाद समाज (मछुआ समाज) सभी जतियों को हर कोई का देखने का तरीका अलग अलग रूप है। इसका समाजिक स्वरूप को देखने पर तो यही  लगता है। हर कोई अपने अपने हिसाब से इस समाज के सामाजिक जीवन को गढ़ने का कोशिश करता है। चुनाव के समय आते ही आम जनता है । कारण है। इसलिए आम जनता है कि इसके पास सोचने और समझने कि क्षमता नहीं होती है। जहाँ कहिए ये सभा और रैलियों मे सबसे ज्यादा सामील होते हुए नजर आएगे । कारण है कि ये पूर्ण रूप से जिस गाँव में रहते है। गरीबी के कारण गाँव के सामंत लोगों पर आसरित होते है। वह जहाँ कहेगे वहा जाने के लिए तैयार रहते है। उसे मजबूरी कहे या सामाजिक स्थिति कहे ।इस समाज के मछुआ समाज के सभी  जतियों को कभी मानव बनने ही नहीं दिया गया मानव वह है जो अपने बारे में बुद्धी विवेक से काम करता है उसे मानव कहते है । इसका अगला रूप मनुष्य होता होता है । जो अपना तो काम करता है पर समाज को और देश दुनिया को समझने को कोशिश करता है साथ ही समाज को दिशा देने का काम करता है ।
                                    लेकिन आज हमारे समाज को इस कदर तोड़ कर रखा है कि इस समाज के सामाजिक जीवन का अंतिम पड़ाव पर खड़ा है। हमारा समाज कहा है। ये क्यों हो रहा है। हम अपने को भुला कर दूसरे के सहारे चलते हुएँ नजर आ रहे है । ये क्यों  हो रहा है ।क्या ऐसा होना चाहिए आज इस स्थिति को समझने की जरूरत है ।  जय निषाद –जय भारत                  
                                                                                                                                              लेखक
                                                                                                                                 बलराम बिन्द 

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