आज हर समाज तेजी से विकास
कर रहा है। वहीं गांवों में मछुआ समाज के महिलावों के बारे में जानना के कोशिश किया
की आप पूर्ण रूप से भूमहीन है। और भूमहीन परिवार
के लिए कोई योजना है, आप के
जीवन जीने का और विकास जा स्वरूप क्या है, और हमारे समाज के संस्थान
का आप के पास तक कितना भागीदारी करते है। महिलावों
के बताने और उसके दर्द को सुनने के बाद आसू के धार आखों से आने की कोशिश कर रहा था
लेकिन अपने हाथों के आखों के सामने ले जाकर उसे रोकने की कोशिश किया उसके दर्द की कहानी
के रूप अलग –अलग पात्रों के रूप में देखे जा सकता है। घर के कहानी में पति अशिक्षिति
होने के कारण काम तो करता है। लेकिन शाम होते
ही वह शराब के बोतलों के साथ जाम को उड़ाने से नहीं हिचकता है। जब वह पीकर आता है तो
वह किसी न किसी बहाने मारने के काम करता है। और आएं दिन उसके हिंसा का शिकार होना पड़ता
है
वह जो बोल दिया वहीं करना
पड़ता है, नहीं तो बिना लात-घुसा के विना बात नहीं
बनती है, वह बता तो रहीं थी की काम तो हम भी करते है, कहीं उसे ज्यादा क्योकीं काम पर से आने के बाद घर के वर्तन और बच्चों के देख-भाल
करना लेकिन उसकी अहमियत ना के बराबर रहती है। बता रहीं थी की हम लोग के काम लगभग मैसम पर आधारित होता है।कारण है की भूमहीन होने
के कारण किसी दूसरे के खेतों में काम करना पड़ता है, जैसे अभी
मार्च से अप्रैल महीने को देख सकते है। जिसके पास जमीन है, उसके
खेतों में कटाई के लिए काम करना और उसके एवंज में काटने के बाद उसके घर तक पहुचने का
काम करते है, तब जा कर उसके बदले में कुछ अनाज मिल जाता है ।
पूरे महीने मेहनत करने के बाद तब जाकर भोजन के लिए अनाजों के वेवस्था हो पाता है।

आर्थिक रूप से इस समाज
के कमर को तोड़ कर रखा गया है। ये आर्थिक रूप से पूर्ण रूप से यह दूसरे पर केंद्रित है। इसके
आर्थिक के आधार केवल मैसम पर ही आधारित है। इतना ही नहीं जब संस्थान के बारे में जानने
की कोशिश में किया बताया गया की मात्र कहने के लिए है। आज तक तो कोई लगभग हमारे समाज
के और नहीं गैर संस्थान यह पूछने के लिए आएं की आप जीते कैसे हो और जीने के आधार क्या
है। मछुआरों के संस्थान मात्र कभी-कभी सुनने के मिलता है की वोटो के लिए मछुआरा समुदाय
के लोग आए है और किसी पार्टी के वोटो देने को कह रहे है। यह मात्र पुरुषों तक ही सीमित
रहता है। और जब वोट देना होता है तो जो पुरुष बताता है, उसी को वोट देने का काम करना पड़ता है। या
पुरुष जो कुछ चालक होता है। नेता जी से कुछ पैसा लेकर वोटो को विक्री कर देता है ।
अब दलित पिछड़ा (मछुआ समाज
)को आज यह समझने की जरूरत है की हम इस बाजार में अपने आप को कितना पहुंचा पाये है।
समाज के लिए काम कितना कर रहे। हर कोई कह रहा
है की समाज के लिए काम कर रहे है। लेकिन किस प्रकार के काम कर रहे है।
समाज को सूचना के समाज कहे जाने लगा है। जो हाशिये के समाज थे। आज उसके घरों में मोबाइल हर
घर में देखा जा रहा है। आखिरकार क्या कारण
हुआ की हर घर में मुबाईल के जरूरते महसूस किया जाने लगा और गरीबी को झेलने के वावजूद
भी वह मोबाइल खरीदने का काम किया । आप इस फोटो को देखा जा सकता है ।

आज हर घर में मोबाइल है
। और अपनी बातों को आसानी से एक दूसरे के साथ सेयर कर रहा है। मछुआरा समुदाय के संस्थान
की जो पहुँच है। आम जानता तक नहीं पहुँच पा रहीं । जो इसके पास एक बहुत बड़ा समाज है।
इन संस्थानो को पहचानने की जरूरत है की दलित पिछड़ा (मछुआ समाज ) को क्या चाहिए और हम
इन संस्थानों के माध्यम से क्या देने जा रहे है। नहीं तो , अपने आप को बड़े बता कर अपनी कहानी के गीत
गाते रहेगे और समाज का विकास पर विकास करते
रहेगे । जय निषाद –जय भारत
लेखक
बलराम बिन्द
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