भारत को गाँव के देश कहते
है। भारत के एक गाँव मैरीटार सुरहताल के किनारे बसा हुआ है। सुरहा ताल को जय प्रकाश
पंछी विहार के नाम से जाना जाता है। सुरहा ताल के किनारे लगभग पच्चीस गाँव बसे हुएँ
है।सुरहाताल की
हसीन वादियों में जहां कभी अथाह जल से पूरा सुरहाताल भरा रहता है और उसमें विभिन्न प्रकार के हजारों-हजार की
संख्या में पशु पक्षियां विचरण करती है । सुबह-सुबह ही उनकी मनमोहक आवाजें सुनकर
लोग जग जाते है। नावों पर सवार मछुवारे अपनी जीविका के लिए सुबह ही मछली पकड़ने
निकल पड़ते है तथा सुरहाताल के किनारे-किनारे हरी हरी घास काटने व गाय भैंस चराने
क्षेत्र के सैकड़ों पशुपालक लाया करते है । इसे देख लगता मानों धरती पर अगर कहीं
स्वर्ग है तो यहीं है।
सुरहा ताल के किनारे गाँव में लगभग निषाद समाज के उप जाति बिन्द,मल्लाह,तुरहा,
साहनी,
लगभग
एक लाख इस समुदाय के लोग है जो मछली मार कर जीवन यापन करते है ।
निषाद समाज के लोग मछली
मारने के अधिकार, जमीन के लड़ाई लड़ते है। उसे सुरहाताल सुसाइटी के नाम से जाना जाता
है। सुसाइटी के लड़ाई पानी के जो जमीन है मछुआ समुदाय के नाम
कर दिया जाय । पानी के जमीन पर संवर्णों ने अपना नाम से अंकित कर लिया या लिखाव कर
रखे है । सुरहाताल से लगभग पाचीस गाँव का निषाद समुदाय के लोगों का भोजन इसी सुरहा
ताल पर केन्द्रित है। सुरहा ताल को पर्यटन के रूप में घोषित न किया जाय क्योकि की मछुआ
समुदाय के लोगों को मछली मारने से बंचीत कर दिया जाएगा। मछुआरा परिवार बेघर हो जाएगे।
इस तमाम समस्या को लेकर सुरहाताल सोसाइटी अपनी लड़ाई लड़ रही है। और मछुआ समुदाय के लोग
अपने अपने घर के उसे चंदा देने का काम करते है।
सुरहा ताल के के बनावट
को देखा जाय तो सुरहा ताल के वीच में खेती किया जाता है। दोनों तरफ से पानी सूखता
है इसके बीचो- बीच में अंग्रेजों द्रारा निर्मित एक गढ़ है निषाद समाज के लोग जब अपने खेतों
में काम करने के लिए जाते है। काम करके थक जाते है तो वह आराम करने के लिए गंढ़ में जाते है.
सुरहाताल में कमल के फूलो से भरा हुआ मिलता है और बहुत ही सुंदर लगता है।
मछुआरा
जब अपने जाल को पानी में डालने के बाद मछली फंस ही जाती है और उसके चित्रों के आप
देख सकते है
सुंदर और
विहंगम दृश्य के रूप में सुरहा ताल में बहुत से पंछी आप को देखने को मिल जाएंगी जो
आकाश को विचरण करती रहती है।
आप लगभग मेरे सुरहा ताल से परचित हो चुके होगे जो बहुत ही सुंदर है। और देखने के लिए आकर्षित करता है। यहीं है मेरा गाँव और मेरे शहर को याद करता रहता है
लेखक
बलराम बिन्द
यह तो बस्ती और खलीलाबाद के पास है । आपने अच्छा लिखा है । मैं कभी देखना चाहूँगा ।
ReplyDeleteBahut sunder lekh aur drishya hain. Balaram ji hum aapke bahut kareeb aana chahte hain aap jaisa samaj ka sachcha hitaishi bahut kam hain.
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