Wednesday, June 5, 2013

हवा के पहचान करने वाला - निषाद समाज


मछुआरा जब जल के केंद्र में या किनारे से बहुत दूर होता है तो वह जब पानी के धार से यह समझ जाता है की अभी पानी के धार में कितनी तेजी है। कितने समय बाद हवा या तूफान में तेजी होगी उसी के आधार पर वह नाव को किनारा करना शुरू कर देता है। आने वाले संकट से बाहर निकल आता है। लेकिन लगता है की आज के मछुआरा पानी के धार से हवा को पहचान कर लेने वाला समाज आज मछुआरा महुआ का पानी पी कर नाव को सूखे किनारे पर खड़ा कर दिया है। खुद संकट में आज खड़ा दिख रहा है।

निषाद समाज या मछुआरा समाज के प्रस्थितिया और स्थिति के स्वरूप को समझने की कोशिश किया तो यह समाज को अशिक्षित रखने के मुख्य कारण नजर आया की यह समाज बहुल संख्या में है। और अशिक्षित है। अशिक्षित समाज छोटी छोटी बातों के लिए आपस में लड़ाई-झगड़ा कर लेने के बाद आपस में बहुत दिन तक बात नहीं करते है। यहा तक की आपस में खान पान भी बंद कर लेते है। जिसका मुख्य कारण नजर आया की शिक्षा नहीं है। शिक्षा नहीं होने के कारण वह समाज अपनी समाजिक लड़ाई से अनभिज्ञ रहता है। क्योकीं वह समाजिक लड़ाई के नाम से परचित नहीं होता है वह तो आपस के लड़ाई को ही बड़ा लड़ाई मानता है।  समाजिक लड़ाई के से काफी दूर दिख रहा है। और आज अपनी समाजिक पहचान बनाने से खुद ही यह समाज संकट में दिख रहा है।
मछुआरा समाज में आज जो भी थोड़ा बहुत शिक्षित हो गया है। वह अपने फायदे के लिए इस समाज के साथ समय समय पर सौदा करने काम करता है। जैसा अभी लोकसभा चुनाव आने वाला है बड़े स्तर के नेता जैसे सभी पार्टी में है। सपा, बसपा,भाजपा, काग्रेस आदि चुनाव आते ही निषाद समाज यानी मछुआ समाज का नेता बन जाएगे और विकास पर विकास के लहर पैदा करना शुरू कर देते है। और हर शहर गाँव कश्बा में जाना शुरू कर देते है। और पार्टी के माहौल तैयार करना शुरू कर देते है गाँव के कम पढे लिखे लोग को पकड़ कर समाज के स्थिति से अवगत होते है। जिसके कारण उसे साड़ी और पैसे पर सौदा करना शुरू कर देते है। क्योकीं इस समाज के साथ सौदा इसलिए शुरू होता है की समाजिक लड़ाई को जनता ही नहीं क्या होता है जिसका कारण समाज के चंद लोगों ने इस समाज के साथ गद्दारी कर देते है जिसके फल स्वरूप आने वाले दिनों में यह समाज ठगा हुआ महसूस करता है। फिर से उसको पहचानने वाला कोई नहीं होता है फिर से यह समाज संकट में नजर आने लगता है।
जो समाज हवा को पहचान कर लेता है नदी के विपरीत धारा में अपनी नाव को आगे बढ़ा लेता वह समाज संकट में नजर आ रहा है जय निषाद -जय भारत
                                                       लेखक -

                                                   बलराम बिन्द 

No comments:

Post a Comment