निषाद समाज के उप-जातिय स्वरूप विंद,मल्लाह,केवट,माझी,रैकवार कश्यप,आदि जाति के रूप में तो बना कर रखा
जिसके फलस्वरूप निषाद संस्कृति कमजोर पड़ गई। इस समाज के सामने अपनी
संस्कृति-सामाजिक के आगे बढ़ाने के वजाय वह आए दिन भोजन तलास करने के लिए भटकते
हुएँ एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में जाना पड़ रहा है। मजदूरी के लिए दर-दर भटक रहे
है। जहां इंसान को पापी पेट को पालने के लिए भटकना पड़ रहा है वह अपने सामाजिक,राजनीतिक लड़ाई को कैसे लड़ सकता है कहावत है की जिसका कंधा मजबूत होता है
वही हर जगह ताल ठोकने के लिए कोशिश करता है । जिसका कंधा पहले से कमजोर करके रखा
गया है वह कैसे मजबूत होगा।
आर्थिक-कमजोरी के साथ आशिक्षति होने के कारण यह समाज अपने सामाजिक संस्कृति को
आज पहचान नहीं पा रहा है की हमें किस संस्कृति को आगे बढ़ाने की जरूरत है। जो भी
थोड़ा शिक्षिति हो रहा है वह अपने –अपने डफाली पीटने के काम कर रहा है। जैसे सपा ,बसपा, काग्रेस। भाजपा, के गीत गाते नजर आ रहे है।
जब तक यह समाज अपने समाज के सामाजिक-संस्कृति के पहचान नहीं कर लेता वह आए दिन
दूसरे के डफाली को पीटते रहेगा और उस डफाली के आवाज में सपा, बसपा,भाजपा, कागेस की आवाज आती रहेगी। और अपने समाज को यह कहते हुएँ नजर आएगे की हम
समाज के काम कर रहे है। समाज के विकास कर रहे ।
आरे भाई दूसरे के डफली दूसरे को ही कहलाती है। अपनी पास के डफली गर्व से आप
कहेगे की ये मेरी डफली है। आइये हम सब मिलकर अपने डफली पीटने का काम करे – जय
निषाद –जय भारत
लेखक
बलराम बिन्द
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