Monday, June 17, 2013

मंजिल से दूर निषाद संस्कृति-


जब कोई रास्ता भटकता है, तो उसे कोई न कोई रास्ता बतलाने का काम कारता है। रास्ते मिल जाने पर वह मंजिल तक चला जाता है। मंजिल के तलास में निषाद संस्कृति के लोगों ने चलने का काम किया । रास्ते में जंगल से गुजरते हूँ सड़क के किनारे पहुँचे, सड़क पत्थर से भारी थी,जो चलने में दिकत तो हो रही थी मगर चलना था। सड़क में बहुत से रास्ते थे।रास्ते में निषाद संस्कृति के लोग समझ नहीं पाये की जो रास्ता है वह सीधे जाने है । या रास्ते में से जो रास्ते बने है,उस रास्ते में बना है उस रास्ते पर चलना है। उस रास्ते से निषाद संस्कृति के लोग भटक गाएँ भटके हुए रास्ते के रूप में अनेक रूप है।
नेता के रूप –
निषाद संस्कृति के लोग जब रास्ते चलने का शुरूआत किया था जो उस रास्ते में कुछ लोग आगे चल रहा थे। वह रास्ते को दिशा दे रहा थे बहुत से उस रास्ते में बहुत से रास्ता निकाला था जैसे , बसपा, सपा , काग्रेस, भाजपा, आदि के रास्ते के रूप में निषाद संस्कृति के लोगों ने उस रास्ते में से लोगों ने सड़क के भिन्न –भिन्न रास्ता का चुनाव करते गएँ और मंजिल से दूर करते गएँ निषाद संस्कृति के कुछ लोगों को उस रास्ते से भटकने का काम किए। जो मंजिल के तलस में निकले थे,पहुँच नहीं पाये। आज भी मछुआरों को समय समय पर लोगों को रास्ते को भटकने का काम करते है ।
अखिल भारतीय महासंघ मछुआरा संघ –
निषाद संस्कृति के रास्ते में चलने के लिए खान-पान साथ में लेकर चले थे की कहीं भूख लगे तो भोजन के साथ पानी पी लेगे और आराम से रास्ते में कहीं दिकत नहीं होगी। ये रास्ते चलने के दूसरे पावदान पर थे की कहीं समाज को दिकत न हो समाज को समय से आर्थिक, सामाजिक दीक्त नहीं हो (NGO) के रूप में अखिल भारतीय महासंघ को रूप में बना दिया गया जिसे कहीं समाज को रास्ते में दीकट न हो लेकिन रास्ते के पावदान में शुरू से अंत तक समाज को देखने का काम करता था। और जो जहाँ खड़ा था। वह वही से भारतीय मछुआरा संघ बनाना शुरू कर दिया मछुआरो को हर जगह अपना वर्चश्व के लिए एक एक मछुआरा संघ बनाने का काम किया जिस तरह से जाति के रूप में विभक्त करके रखा गया है उसी तरह से वह संघ भी बन गए और रास्ते से निषाद संस्कृति को भटकने का काम किए और ये संघ भी निषाद संस्कृति को रास्ते के मंजिल से भटकने का काम किए और मंजिल से दूर कर दिये
पत्र पत्रिका के रूप –
मंजिल के तलास में निकले निषाद संस्कृति के लोगों को आगे बढ़ने के लिए लबी कतर थी जिसे सब को समय समय पर संदेश पहुँचा सके पत्र –पत्रिक को प्रकशन किया जो रास्ते में सब को संदेश मिलता रहे। हर एक दूसरे के जानकारी मिलते रहे की कहाँ पहुँच गए है, और किसकी स्थिति क्या है जानकारी मिलते रहें, संदेश के रूप निषाद ज्योती, मछुआ दर्शन,निषाद संदेश, और भी बहुत से पत्र-पत्रिक का निकाला गया यह पत्र-पतिका निश्चित नहीं कर पाई की निषाद संस्कृति को आगे बढ़ाना है या कश्यप संस्कृति को या मछुआ संस्कृति को आगे बढ़ाना है, जो जहाँ था आगे बढ़ने के लिए अलग अलग तरीके से आवाज और संदेश देना शुरू कर दिया रास्ते चलने वाले लोग को सहीं दिशा में संदेश न मिल पाने के कारण संदेश के वजह से भए दिग्भर्मित हो गए। मंजिल से भटक गए । मंजिल तक नहीं पहुँच पाये ।
रास्ते के भटकाव के बहुत से कारण है। निषाद संस्कृति को ही मछुआ संस्कृति कहते है, और यहीं से सब निकले है, आज इस बिन्दु को तलास कर के उस के साथ जोड़ कर आगे बढ़ाने की जरूरत है। निषाद संस्कृति को मंजिल तक पहुँचने की जरूरत है ....आए हम सब मिल कर आगे बढ़ाएं
जय निषाद संस्कृति -------------जय भारत
                   लेखक
                बलराम बिंद

  

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