निषाद संस्कृति आदिम अवस्था
से शुरुआत होती है । आज से पच्चस से साठ हजार वर्ष पहले मछली के शिकार भी खेती और पशुपालन
की आदि वेवस्था को अपने स्वरूप को विकास करते गए और नौचालक इनका ही अधिकार में रहा
भारत के पूरे इतिहास में नौचालन इनके अधिकार में रहा है । उस समय पूरा विश्व में नौकायन
में भारत अग्रणी था ।
निषाद संस्कृति मछुआरो के संस्कृति
है । समय के अनरूप समाज में परिवर्तन होता गया और आज यह संस्कृति हाशिये के शिकार बन
गई है
भारतीय समाज वेववस्था में वर्ण
के रूप में वर्गीकरण किया गया जब ब्रांहनवाद में यह देखा गया की यह वर्ग होने से यह
विद्रोह कर देगे तो जाति के रूप में वर्गीकरण कर दिया गया
निषाद संस्कृति को लगभग 150 उप जाति में बाट दिया गया । इस संस्कृति
को भी जाति के रूप में बताने के काम किया की यह एक जाति है न की संस्कृति है ।
इस समाज के या इस संस्कृति
के लोग जिस प्रदेश या क्षेत्र में है वह अपने को सर्वपरी मानते है ।
जिस क्षेत्र में कश्यप जाति
के लोग है । वह भी यह बताने से नहीं चूकते है की हम बड़े है तो हम बड़े है । बात उठती
है की कश्यप के संतान है । वह धर्म से कह सकते है ,न की इतिहास के नजर से
अखिल भारतीय महासंघ मछुआरा
संघ –
निषाद संस्कृति के रास्ते
में चलने के लिए खान-पान साथ में लेकर चले थे की कहीं भूख लगे तो भोजन के साथ पानी
पी लेगे और आराम से रास्ते में कहीं दिकत नहीं होगी। ये रास्ते चलने के दूसरे
पावदान पर थे की कहीं समाज को दिकत न हो समाज को समय से आर्थिक, सामाजिक
दीक्त नहीं हो (NGO) के रूप में अखिल भारतीय महासंघ को
रूप में बना दिया गया जिसे कहीं समाज को रास्ते में दीकट न हो लेकिन रास्ते के
पावदान में शुरू से अंत तक समाज को देखने का काम करता था। और जो जहाँ खड़ा था। वह
वही से भारतीय मछुआरा संघ बनाना शुरू कर दिया मछुआरो को हर जगह अपना वर्चश्व के
लिए एक एक मछुआरा संघ बनाने का काम किया जिस तरह से जाति के रूप में विभक्त करके
रखा गया है उसी तरह से वह संघ भी बन गए और रास्ते से निषाद संस्कृति को भटकने का
काम किए और ये संघ भी निषाद संस्कृति को रास्ते के मंजिल से भटकने का काम किए और
मंजिल से दूर कर दिये
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संगठन के विचार -
इस मछुआर संघ में
भी वही हाल भी वही हाल है जो सब एक दूसरे से बड़े है ,जो संघ जिस जाति से बना है वह कहता है की हमारे में से सभी उपजाति
का विभाजन हुआ है । अखिल भारतीय आदिवासी कश्यप ,कहार निषाद भोई
समन्वय समिति के महा सचिव से बात करने के बाद बताएँ की इस संगठन के माध्यम किसी संस्कृति
और विचार को आगे बढ़ाने के उद्देश्य नहीं है मात्र हम सब इस मंच के तहत सरकार से अपने
समाज के समस्याओं को एक साथ रखने के लिए यह समिति बनाया गया है । न की किसी संस्कृति
और विचार को कोई भी संगठन बिना विचार और संस्कृति के ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाता है
। जिसके पास विचार न हो वह समाज को दिशा क्या तय करेगा केवल सरकार के पास समस्या रखने
से हमारे या मछुआ समाज के विकास हो जाएगा आज इस बात को तलाशने की जरूरत है
निष्कर्ष – निषाद
संस्कृति को मछुआरों के संस्कृति जो एतिहासिक प्रमाण से भरा पड़ा है । ब्रामहन वादी
वेवस्था के कारण आज यह समाज एक दूसरे से लगाव तो है लेकिन यह अपने समाज से तदात्मय
(मोह ) स्थापति नहीं कर पा रहे है । किस विचार
और किस संस्कृति के साथ आगे बढ़ाना है ।
लेखक
बलराम बिंद
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