निषाद का निशाना
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बलराम बिन्द
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निषाद का निशाना
बदल रहा है जमाना
निषाद है आदि अन्नत
जानते है दिक-दिगंत
निषाद है भूमिपुत्र
आज का है यह सूत्र
जल से रहा लगाव
नहीं किसी से अलगाव
निषाद की अपनी पहचान
हर कोई रहा है जान
करते रहते दुनिया की सैर
नहीं किसी से बैर
सुनिश्चित करेगें विकास
निषाद के सिर होगा ताज
सुन ले ये जग आज
सबका हो कल्याण
निषदों के यही अरमान
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