गर्मी का महिना था सभी नदियाँ सुखाने के कगार पर थी। नदी के
ऊपर पूल से रेलगाड़ी गुजर रही थी कुछ ही पल में कानपुर जंक्शन पर पहुँचने वाली थी की
पूल पर गुजनरे वाली ट्रेन के यात्री पैसा निकाल कर आस्था रूप गंगा नदी में लोग पैसा
फेकना शुरू कर दिये । मुझसे रहा नहीं गया पूल के नीचे देखना शुरू किया तो गंगपुत्र
के बच्चे पानी में फेके पैसा को निकालने के लिए कोई पानी में कूद रहा था तो कोई चुम्बक
से पैसे को निकालने का कोशिश कर रहा था । गंगपुत्र को जो स्कूल और कालेज में दिखाना
चाहिए था । वह चंद पैसे के लिए आगे-पीछे पूरा
दिन पैसे के लिए गुजार देते है। कुछ लड़को से पूछने के बाद पता चला की वह दिन भर ट्रेन
का इतजार करते रहते है। जैसे ही ट्रेन गुजरने के बाद पैसे के खनखनाहट के आवाज आने के
बाद दौड़ लगाना शुरू कर देते है। शाम होते लगभग बीस से तीस रुपया मिल जाता है। वह खुश
हो जाता है ।
जिस बच्चे के के जीवन जीने के आधार शिक्षा से शुरू होता है प्रगति
के रथ में आगे बढ़ने का काम करता है। वही उसके विपरीत में गंगपुत्रों का भविष्य ट्रेन
के आने और पैसे के खंखानाहट के आवाज के पीछे गुजर रही है। भविष्य के आधार पानी में
तलाशते भविष्य में गुजर जाती है और पथ के रास्ते से भटक जाता है ।
मेरे यहा भी बच्चों का वही हाल है। वहा तो ट्रेन तो नहीं गजरती
है न कोई पैसा फेकता है लेकिन सुरहा ताल जरूर है। जिस उम्र में बच्चा ट्रेन के आने
के बाद बच्चा आगे पीछे दौड़ना शुरू कर देता है उस उम्र में मेरे यहा के बच्चे सुरहाताल
में जाल लेकर पानी में डालना शुरू कर देते है । इस तरह से गंगपुत्रों का जीवन जीने
का आधार शुरू होता है। पथ के रास्ते में पानी से शुरू होकर पानी में ही पूरा बचपन बीत
जाता है, कुछ पानी से कुछ मछली मिल जाती है जिसके एवज
में कुछ पैसा मिल जाता है शिक्षा से लाखो कोसों दूर हो जाता है । पानी में तलाशते भविष्य
से गंगपुत्रों का जीवन अधेरामय हो गया है । जिस समाज का आधार की नीव किसी के इंतजार
में पूरा समय गुजर देता हो चंद प्रसाद में पूरा बचपन गुजर जा रहा हो उस पथ को तलास
कर आवों हम सब मिल कर आगे बढ़ाने का काम करे .....
जय निषाद संस्कृति – जय भारत
लेखक
बलराम बिन्द
en logon ke savdhanik adhikaro ke liye Renke commission 2006-2008 ki Report turnt lagu honi chahiye ji,
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