!! नियत !!
नियत क्या चीज हे एक शब्द भर हे पर वास्तविकता में समस्त जीवन का अधार ही नियत पर ही टिका हुया हे,इसे समाज कभी भी हलके में नहीं लेता हे,यह जानते हुए की पूरे समाज को ऊर्जावान बनाए रखने के लिए यह शब्द अमृत की तरह ही काम करता हे और जीने के लिए उत्साहित भी करता हे,जबकि समाज में विषेली सोच का आवागमन उसकी सोच में कब घर कर जाए किसी को पता भी नहीं चलता और वो दिमाग से होता हुआ ...
पूरे शरीर को इस रोग से पूरे अवाम को ग्रषित कर उसके सोचने की शक्ति को पूरी तरह पंगु और कुंद बना देता हे,यह तो आम अवाम इससे दो चार भारत में होता ही रहता हे ...?
और यही से एक षडयंत्र की उपज जो फिर एक कुरूप रूप धारण सा कर लेती और सही नीतियाँ का पालन करना जो की समाज और आम अवाम के हित में होती हे,एक स्पीड ब्रेअकर बनकर पूरे समाज को सामने खडा होकर मुँह चिड़ाता रहता हे और सारे समझदार बुद्धिजीवी वर्ग इस पूरी व्यवस्था को मूक दर्शक बनकर देखने के अलावा कुछ नहीं कर पाते ...?
बड़ा ही शक्तिशाली आम अवाम इसके आगे अपने को गोण की पा रहा हे,लोग सभी चाहते हुए भी इसका इलाज नहीं ढूंढ़ पा रहे हे यह भी एक सोचने का गंभीर विषय हे,हम चाहे कितनी ही अच्छी नीतियाँ बना ले कितने ही ढोल नतासे बजा ले नीतिगत बातो को लेकर पूरे भारत में अपने पन कितनी ही बाते कर ले जब हमारी नियत ही ठीक नहीं हो पा रही तो ....आप सभी खुदी तय कर ले की हम कहाँ खड़े हे और इन बनाई नीतियों का क्या हस्र हो रहा हे ...?
अब बात आती हे की हम ऐसा क्यों कर रहे एक दिलचस्प बात जो सामने आती हे और आम अवाम में देखने को मिलती जब भी
हम बंद कमरों और सार्वजनिक स्थानों पर बाते करते हे तो हम बड़े ही गंभीर नजर आते की यह तो होना ही चाहिए ...?
लेकिन वो जगह जेसे ही हम छोड़ते हे तुरंत हमारा व्यवहार जो उस स्थान पर था,जगर और स्थान छोड़ते ही क्यों स्वार्थ में बदल जाता हे और समस्या की उत्पत्ति के हम खुद ही जिम्मेदार हो जाते हे ....पर क्यों यह दोहरा मापदंड क्यों ...?
अगर हम अपनी नियत ही ठीक कर ले तो निश्चित हे की जादुई बदलाव के लक्ष्ण अपने आप ही दिखाई देने लगेंगे ...? क्या आप इस परिवर्तन के लिए तेयार हे ...? नियत पर विजय पाने के लिए ...?
हो सकता की में शायद में गलत हूँ ,क्योंकी आम अवाम तो बहुत ही समझदार हे,इसलिए मुझे आपकी समझदारी पर कोई संदेह
नहीं हे ...? लेकिन आपका अगर ध्यान इस और अगर थोड़ा भी गंभीरता से इस और सोचने पर तेयार हो जाए तो हो सकता हे की कुछ अच्छे परिणाम आने की गुंजायश बन सकती हे ....?
आपके विचार सादर आमंत्रित हे ...?
त्रुटी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ...!
जय हिन्द ...जय समाज ...जय भारत
लेखक/रचनाकार: रामप्रसाद रैकवार ...
नियत क्या चीज हे एक शब्द भर हे पर वास्तविकता में समस्त जीवन का अधार ही नियत पर ही टिका हुया हे,इसे समाज कभी भी हलके में नहीं लेता हे,यह जानते हुए की पूरे समाज को ऊर्जावान बनाए रखने के लिए यह शब्द अमृत की तरह ही काम करता हे और जीने के लिए उत्साहित भी करता हे,जबकि समाज में विषेली सोच का आवागमन उसकी सोच में कब घर कर जाए किसी को पता भी नहीं चलता और वो दिमाग से होता हुआ ...
पूरे शरीर को इस रोग से पूरे अवाम को ग्रषित कर उसके सोचने की शक्ति को पूरी तरह पंगु और कुंद बना देता हे,यह तो आम अवाम इससे दो चार भारत में होता ही रहता हे ...?
और यही से एक षडयंत्र की उपज जो फिर एक कुरूप रूप धारण सा कर लेती और सही नीतियाँ का पालन करना जो की समाज और आम अवाम के हित में होती हे,एक स्पीड ब्रेअकर बनकर पूरे समाज को सामने खडा होकर मुँह चिड़ाता रहता हे और सारे समझदार बुद्धिजीवी वर्ग इस पूरी व्यवस्था को मूक दर्शक बनकर देखने के अलावा कुछ नहीं कर पाते ...?
बड़ा ही शक्तिशाली आम अवाम इसके आगे अपने को गोण की पा रहा हे,लोग सभी चाहते हुए भी इसका इलाज नहीं ढूंढ़ पा रहे हे यह भी एक सोचने का गंभीर विषय हे,हम चाहे कितनी ही अच्छी नीतियाँ बना ले कितने ही ढोल नतासे बजा ले नीतिगत बातो को लेकर पूरे भारत में अपने पन कितनी ही बाते कर ले जब हमारी नियत ही ठीक नहीं हो पा रही तो ....आप सभी खुदी तय कर ले की हम कहाँ खड़े हे और इन बनाई नीतियों का क्या हस्र हो रहा हे ...?
अब बात आती हे की हम ऐसा क्यों कर रहे एक दिलचस्प बात जो सामने आती हे और आम अवाम में देखने को मिलती जब भी
हम बंद कमरों और सार्वजनिक स्थानों पर बाते करते हे तो हम बड़े ही गंभीर नजर आते की यह तो होना ही चाहिए ...?
लेकिन वो जगह जेसे ही हम छोड़ते हे तुरंत हमारा व्यवहार जो उस स्थान पर था,जगर और स्थान छोड़ते ही क्यों स्वार्थ में बदल जाता हे और समस्या की उत्पत्ति के हम खुद ही जिम्मेदार हो जाते हे ....पर क्यों यह दोहरा मापदंड क्यों ...?
अगर हम अपनी नियत ही ठीक कर ले तो निश्चित हे की जादुई बदलाव के लक्ष्ण अपने आप ही दिखाई देने लगेंगे ...? क्या आप इस परिवर्तन के लिए तेयार हे ...? नियत पर विजय पाने के लिए ...?
हो सकता की में शायद में गलत हूँ ,क्योंकी आम अवाम तो बहुत ही समझदार हे,इसलिए मुझे आपकी समझदारी पर कोई संदेह
नहीं हे ...? लेकिन आपका अगर ध्यान इस और अगर थोड़ा भी गंभीरता से इस और सोचने पर तेयार हो जाए तो हो सकता हे की कुछ अच्छे परिणाम आने की गुंजायश बन सकती हे ....?
आपके विचार सादर आमंत्रित हे ...?
त्रुटी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ...!
जय हिन्द ...जय समाज ...जय भारत
लेखक/रचनाकार: रामप्रसाद रैकवार ...
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