!! तब चाँद
था अब चाँद हूँ !!
में तब चाँद था अब भी चाँद हूँ .!
नक्षत्रों ने ही घुमा दिया .........!!
पूर्णिमा का भी चाँद दिखूँ में .!
जब कुदरत ने ही घुमा दिया .!!
लोगो को में कभी-कभी न दिखता .!
जब नक्षत्रों ने ही छुपा दिया ........!!
बीच में बादल और घटायें काली .!
कुदरत ने ही शिला दिया ..........!!
नहीं नींद और कहाँ अब चेन हे .!
जब कुदरत ने ही दिखा दिया ..!!
में तब चाँद था अब भी चाँद हूँ .!
नक्षत्रों ने ही घुमा दिया .........!!
पूर्णिमा का भी चाँद दिखूँ में .!
जब कुदरत ने ही घुमा दिया .!!
लोगो को में कभी-कभी न दिखता .!
जब नक्षत्रों ने ही छुपा दिया ........!!
बीच में बादल और घटायें काली .!
कुदरत ने ही शिला दिया ..........!!
नहीं नींद और कहाँ अब चेन हे .!
जब कुदरत ने ही दिखा दिया ..!!
घुमु में आंतरिक्ष में अपनी गति से .!
जब कुदरत ने ऐसा बना दिया ......!!
कभी में बन जाऊँ ईद का चाँद भी .!
कभी पूर्णिमा का चाँद बना दिया ..!!
न दिखूँ तो तोबा - तोबा होती ....!
क्या-क्या कुदरत ने दिखा दिया .!!
पूर्ण चन्द्र्मा कि रोशनी ने .!
कुछ तो अहम् दिला दिया .!!
कर्म कि भूमि में रोज ही घूमकर .!
रातों को भी जगा दिया ............!!
में भी घूमुँ अपनी धुरी पर ..!
कर्म मिला हे जो भी दिया ..!!
में तब चाँद था अब भी चाँद हूँ ..!
नक्षत्रों ने ही घुमा दिया ..........!!
!! जय समाज !!
लेखक/रचनाकार: रामप्रसाद रैकवार …
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