व्यंग्य कविता !!
!! मुझको कड़छा ही बना दे !!
बहुत बन चुकी चमचो कि सेना .!
मुझको कड़छा ही बना दे ........!!
इससे ही स्वार्थ अबाद हुआ हे .!
मुझको मोका भी दिला दे .......!!
पीछे-पीछे क्यों खड़ा सा में .!
अगली पंक्ति में पहुँचा दे .!!
!! मुझको कड़छा ही बना दे !!
बहुत बन चुकी चमचो कि सेना .!
मुझको कड़छा ही बना दे ........!!
इससे ही स्वार्थ अबाद हुआ हे .!
मुझको मोका भी दिला दे .......!!
पीछे-पीछे क्यों खड़ा सा में .!
अगली पंक्ति में पहुँचा दे .!!
मोटा माल तभी मिले सभी को .!
मुझको कड़छा ही बना दे ........!!
एक बार में संकल्प हो पूरा .....!
इसकी सिफारिस कोई करवादे .!!
बार-बार का झंझट ख़तम हो .!
मोका कड़छे का ही दिलादे .!!
सबको रोज ही प्रणाम करूँगा .!
नहीं किसी को बदनाम करूँगा !!
अह्शान कोई तो करादे ....!
मुझको कड़छा ही बना दे .!!
न नहीं हे कोई नई परंपरा ....!
इसपर मुझको कोई चलवादे .!!
वादा करूँ में पक्का दोस्तों ....!
मेरी सिफारिस कोई करवादे .!!
कमाल देखा हे अपनी आँखों से ही .!
कड़छा रूठों को मनादे ................!!
ओलंपिक खेलों की बात ही क्या हे .!
वो सारे खेल ही जितादे ..........……!!
क्युकी नया खिलाड़ी हूँ इस खेल का ....!
यह खेल भी कोई सिखलादे ..............!!
छप्पन भोग भी साथ जो होंगे ...!
कड़छे से इज़ज़त कोई तो बड़ादे .!!
तभी में सबका प्यारा हूँगा ......!
इज़ज़त मुझको यही दिलवादे .!!
न होगा कोई कभी विरोधी .!
ऐसा करिश्मा कोई करादे ..!!
उन्नति करूँ में रोज ही सबकी .!
इसकी भी कोई राह दिखादे ......!!
न होगा पिछड़ा कोई गाँव शहर ही .!
केवल कड़छा ही बनवादे ............!!
नए युग में कदम रखा हे ....!
रास्ता मुझको यही दिखा हे .!!
कोई समझो समझो मेरी बात को .!
हाँथ अपना कोई बड़ादे ..............!!
बहुत बन चुकी चमचो कि सेना .!
मुझको कड़छा ही बना दे ..........!!
!! जय चमचे …न न जय कड़छा !!
!! जय समाज !!
लेखक/रचनाकार: रामप्रसाद रैकवार ....
दिनांक: 18.12.2013 ....
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