Friday, January 17, 2014

एकजुटता का नारा बुलंद तो बहुत हुआ मगर..........

                                                                                   लेखक
                                                                             सुरेश एकलभ्य
एकजुटता का नारा बुलंद तो बहुत हुआ मगर...........
*********************************
विशाल मछुआ समुदाय के विखंडित होने के तत्त्वों में हम एकजुटता के आभाव को मुख्यत उत्तरदायी मानते हैं। यह अकाट्य रूप से सत्य भी है। जब-तब अधिकारों के प्राप्ति हेतु यह समुदाय संघर्ष हेतु तैयार होता है,एकजुटता की कमी स्प्ष्ट झलकती है। समुदाय का प्रतेयक व्यक्ति मुख्यत यही इंगित करता हुआ दर्ष्टिगोचर होता है कि अभी तक एकजुट नहीं होने के कारण, हमारी रणनीतियां असफल हो रही है। एकजुटता के वास्तविक एवं सरल विकल्प क्या हैं, ऐसे तथ्यों पर कोई बुद्दिजीवी अथवा नेतृत्वकर्ता विस्तृत प्रकाश नहीं डालता। वह सीधे -सीधे एकजुटता विचार तत्व को दोष प्रदान कर अपनी भूमिका का निर्वाह कर लेते हैं। सम्भवत अल्पविकसित, न्यून शिक्षित और आर्थिक विषमताओं से जूझने वाले समुदाय को, उचित दर्ष्टिकोण नहीं मिल पाने का यह मुख्य कारण है।

समुदाय के बुद्दिजीवियों ने एकजुटता को आधार मानकर शायद ही कभी कोई विश्लेषण किया हो। हलाहल चहुँ और होता है कि एकजुटता नहीं है। मगर एकजुटता की उत्पत्ति कैसे हो, इस पर कोई नहीं बोलता। एकजुटता की परिभाषा क्या हो, कैसे समुदाय एकीकरण के सूत्र में एकजुटता के तत्व का श्रेय उठाये, उसके विकल्प से एक बड़ा तबका अभी भी अनजान है। यह तबका कालांतर से उस विचार को प्रतीक्षारत है जिसकी बदौलत वह सफलता और सक्षमता के पायदान पर कदम रख सके। एकजुटता का मुख्य तत्व संवाद है। मगर इस विशाल समुदाय में उसकी भूमिका क्षीण है। संवाद एकजुटता में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है। मगर सवांदहीनता के फलसवरूप पुरे समुदाय का सम्पर्क एक -दूसरे से कटा हुआ। गौरखपुर में रहने वाले निषाद समुदाय को बस्तर के अपने ही समुदाय की कोई खबर नहीं। मध्य प्रदेश के मांझी और कहार समुदाय को झारखंड के मांझियों से कोई मतलब नहीं। तमिलनाडु के मल्लाह और महाराष्ट्र के मल्लाह में कोई संपर्क नहीं। यह विषमताएं पुरे देश में व्याप्त है। परिस्थितयां इतनी जटिल हो चुकी है कि एक - दूसरे पर असहनीय अत्याचार होने पर भी इनके कानो पर जूँ नहीं रेंगती।

सवाल है कि सवांद विषमता से संघर्षशील इस समुदाय में एकजुटता का सूत्रपात कैसे किया जाए। कैसे एक विशाल समुदाय में यह संपर्क स्थापित हो। जब एक समुदाय एक संस्कृति का वाहक होते हुए भी विभन्न मंतव्य, अलग दर्ष्टिकोण को रेखांकित करता हो, कैसे सवांद के बिंदु पर पहल की जा सकती है। इसके लिए एक सरल -सा उपाय है, जो दहलीज से आरम्भ होकर देश के अंतिम छोर तक जा पहुँचता है। आप किसी गली मोहल्ले, गाँव अथवा नगर में रहते हैं। आप प्रतिदिन संध्या - प्रातः घूमने के लिए जाया करते हैं। इस समय का सदुपयोग संवाद का बेहतर विकल्प उपलब्ध कराता है। आपकी भांति भर्मण को आये अपने समुदाय के अन्य लोगों से आप सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं। इनमे बहुत से लोग आपको सामाजिक विषयों में रूचि लेने वाले अवश्य मिल जायेंगे। आप उनसे सामाजिक और राजनेतिक विषयों पर विस्तार से बात करें। उन्हें समुदाय में चल रही विभिन्न गतिविधियों की जानकारी अवगत कराना आरम्भ कर दीजिये। यहाँ से एकजुटता का प्रथम अध्याय प्रारम्भ होता है। लोग मिलते हैं। पीड़ा बंटती है और अपनत्व की शुरुआत हो जाती है। शोशल साइट पर यही प्रक्रिया तो चलती है। अन्यथा कहाँ महाराष्ट्र का वर्धा नगर और कहाँ उत्तर प्रदेश का आजमगढ़। कैसे इन दो मंझले नगरों के समुदाय के दो व्यक्तियों में संबंध प्रगाढ़ हो जाते हैं। मगर धरातल पर यह कार्य पारदर्शिता का महत्त्व बढ़ा देता है। वस्तुत एकजुटता हेतु संवाद का प्रेषण स्वयं से शुरू करे और उसे एक से दूसरे फिर तीसरे तक प्रेषित कर दे।

संवाद के अंतर्गत आप अपनी भूमिका का और अधिक विस्तार कर सकते हैं। देश के विभिन्न भागों में रहने वाले मित्रो और सम्बन्धियों को समुदाय में होने वाली विभिन्न गतिविधियों के विषय में उन्हें अवगत कराते रहे। अपने - अपने राज्यों , शहरों में समुदाय की विशेष उपब्धियों , प्रमुख व्यक्ति और सरकारो द्वारा समुदाय हेतु लिए गए निर्णयो की जानकारी भी एक दूसरे से बांटे। इस प्रकार के संवाद से जहाँ ज्ञान और एकजुटता में बढ़ोतरी होती है वहीँ समुदाय की उन्नति हेतु विकल्प भी उत्पन्न होते हैं। समुदाय का जो तबका किसी विभाग अथवा किसी कम्पनी में नौकरी करता है, वह अपने दायित्य्वों का निर्वाह करते हुए, उसी क्षेत्र में कुछ क्षण समुदाय की एकजुटता के लिए निकाल सकते हैं। साप्ताहिक छुट्टी के दिन अथवा माह के अन्य किसी दिन उस क्षेत्र में अपने समुदाय से सम्बंधित लोगों का पता लगाए। उनसे संपर्क स्थापित करके उनसे परिचय बनाये और समुदाय से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करें । शनै; शनै समुदाय के यही अज्ञात लोग आपके सर्वाधिक घनिष्ठ होंगे। स्मरण रहे मछुआ समुदाय देश का एक महान समुदाय है जो शत्रु की भी आवाभगत करता है फिर आप तो उसके अपने बंधू हैं।

( सम्पादित लेख श्री सुरेश साहनी जी को प्रेषित )


No comments:

Post a Comment