Thursday, January 23, 2014

इतिहास के ओर -निषाद राज

                                                                                           लेखक
                                                                                        राजेश निषाद

श्रृंगवेरपुर: वो जगह जो राम के जन्म की वजह बनी और निषाद राज का सम्बन्ध 

निषादराज का राजमहल आज भी भी श्रृंगवेरपुर में मौजूद है भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार कि चाहिए कि वह इस जगह को पर्यटक स्थल बनाये और यहाँ कि सारी सम्पति को निषादों कि सम्पति घोसित करे|
इलाहाबाद। राम के किस्से और कहानियां तो हम बचपन से सुनते आए हैं लेकिन इलाहाबाद से महज 40 किमी की दूरी पर है वो जगह जो भगवान राम के धरती पर आने की वजह बनी। ये जगह है गंगा किनारे बसा श्रृंगवेरपुर धाम जो ऋषि-मुनियों की तपोभूमि माना जाता है। इसका जिक्र वाल्मीकि रामायण में बहुत गहराई के साथ किया गया है।
धर्मग्रंथों के अनुसार राम के जन्म से पहले इस धरती पर आसुरी शक्तियां अपने चरम पर पहुंच गई थीं। राजा-महाराजा, ऋषि-मुनि सभी इनसे परेशान थे। ऐसे में किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें। राजा दशरथ ने अपने कुलगुरु ऋषि वशिष्ठ से जब इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि श्रृंगवेरपुर के श्रृंगी ऋषि ही इस समस्या से निजात दिला सकते हैं।
ऋषि श्रृंगी त्रेता युग में एक बहुत बड़े तपस्वी थे। जिनकी ख्याति दूर-दूर तक थी। राजा दशरथ के अभी तक कोई पुत्र नहीं था। केवल एक पुत्री थी जिसका नाम था शांता। दशरथ के मन में जहां एक ओर आसुरी शक्तियों से छुटकारा पाने की चिंता सता रही थी वहीं अपना वंश बढ़ाने के लिए पुत्र न होने की पीड़ा भी मन में थी। ऐसे में दशरथ को ऋषि वशिष्ठ ने इन समस्याओं के निवारण के लिए श्रृंगी ऋषि की मदद लेने की सलाह दी। तब राजा दशरथ की प्रार्थना पर ऋषि श्रृंगी उनके दरबार पहुंचे। 
ऋषि ने राजा दशरथ से कहा कि इन समस्त समस्याओं का एक ही हल है-पुत्रकामेष्ठी यज्ञ। इसके बाद राजा दशरथ के घर पूरे विधिविधान से पुत्रकामेष्ठी यज्ञ कराया गया और कुछ वक्त बाद दशरथ के यहां विष्णु के अवतार में भगवान राम का जन्म हुआ। पूरे बारह दिन तक चला था ये यज्ञ और इस दौरान दशरथ ऋषि श्रृंगी के तप, उनके ज्ञान और शक्ति से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी इकलौती पुत्री शांता का विवाह श्रृंगी ऋषि से करने का निर्णय ले लिया और तब श्रृंगी बन गए दशरथ के दामाद। 
माना जाता है कि श्रृंगवेरपुर धाम के मंदिर में श्रृंगी ऋषि और देवी शांता निवास करते हैं। यहीं पास में है वो जगह जो राम सीता के वनवास का पहला पड़ाव भी मानी जाती है। इसका नाम है रामचौरा घाट। रामचौरा घाट पर राम ने राजसी ठाट-बाट का परित्याग कर वनवासी का रूप धारण किया था। त्रेतायुग में ये जगह निषादराज की राजधानी हुआ करता था। निषादराज मछुआरों और नाविकों के राजा थे। यहीं भगवान राम ने निषाद से गंगा पार कराने की मांग की थी। 
निषाद अपने पूर्वजन्म में कभी कछुआ हुआ करता था। एक बार की बात है उसने मोक्ष के लिए शेष शैया पर शयन कर रहे भगवान विष्णु के अंगूठे का स्पर्श करने का प्रयास किया था। उसके बाद एक युग से भी ज्यादा वक्त तक कई बार जन्म लेकर उसने भगवान की तपस्या की और अंत में त्रेता में निषाद के रूप मंी विष्णु के अवतार भगवान राम के हाथों मोक्ष पाने का प्रसंग बना। राम निषाद के मर्म को समझ रहे थे, वो निषाद की बात मानने को राजी हो गए।निषादराज का राजमहल आज भी भी श्रृंगवेरपुर में मौजूद है भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार कि चाहिए कि वह इस जगह को पर्यटक स्थल बनाये और यहाँ कि सारी सम्पति को निषादों कि सम्पति घोसित करे|



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