Tuesday, January 14, 2014

खुदी किया हे वीरान जमी को

                                                                             लेखक/रचनाकार:
                                                                           रामप्रसाद रैकवार

!! खुदी किया हे वीरान जमी को !!

खुदी किया हे वीरान जमी को .!
दोष किसी को देते हे ...........!!

चढ़ते हे खुद के मचान पे .!
रास्ता वहीं से देखते हे ....!!

उतार के देखो लोटन चश्मा .!
खड़े और भी दिखाई देते हे .!!

बड़ी ही लम्बी लाइन लगी हे .!
क्यों हम न दिखाई भी देते हे .!!

हे यकीं हो समझदार से शक नहीं .!
फिर क्यों गलतियां करते हे .…...!!

झाँक -झाँकते खुद कि खिड़कियों से .!
क्यों न जमी पे उतरते हे ...…………!!

खुद बना दे अपने ही मजाक सा .!
अपने ही आना - कानी करते हे ..!!

वाह रे हिड्डन/डिप्लोमेसी और पॉलिसी .!
उसका भी हस्र हम देखते हे ....…………!!

क्यों हुआ समझदार अवाम हे मेरा .!
वो भी तो बागो में रहते हे ...........!!

हम भी हे उस बाग़ के माली .!
उसी जमी पर रहते हे ...……!!

खुदी सींचे हम अपने बाग़ को .!
मेहनत भी तो करते हे ..…….!!

दौड़ पढ़ो आवाज अवाम की .!
उम्मीद अवाम भी रखते हे ..!!

कुछ तो समझो मौसम को तो .!
हम भी बागों में रहते हे .........!!

हूँ अपना तो कुछ समझो बात को .!
बात भी काँटे कि कहते हे ..………!!

जिद क्यों हे जिद्दी हे अवाम भी .!
जिद में अवाम भी रहते हे ......!!

खुदी किया हे वीरान जमी को .!
दोष किसी को देते हे ...………!!

!! जय समाज !!

लेखक/रचनाकार: रामप्रसाद रैकवार  

दिनाक: 14.01.2014 ...

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