लेखक
बलराम बिंद
कोई भी समाज हो, उसके पास विचार (thought) नहीं होगा तो उस समाज के लोग
कभी धर्म के तरफ झुकाव करगे तो कभी किसी के कुछ कहने पर झुकाव करगे। विचारविहीन समाज
एक पशु के समान होता है, जो खिलाओंगे वह खाता है। जरूरत पड़े तो
उस पशु को जितना मारना हो मार लेते है। उसी तरह से विचार विहीन समाज के साथ होता है।
विचारविहीन बनाने वाला पशुओं के वर्गीकरण रूप होता है। गाय है ,भैस, बकरी आदि है। धर्म के आड में आदमी को भी वर्गीकरण कर दिया । आदमी होने के
वावजूद , वह बिंद, मल्लाह है,माझी है,केवट है,भोई है, गंगपुत्र है ,तुरहा है, निषाद
है ,कश्यप आदि जाति के रूप में वर्गीकरण है । कारण है की वर्गीकरण
करने से कुछ उल्लू सीधा करने को मिल जाता है । यही कारण है कि बहुत से ऐसे समाज है
जो हसिए के शिकार है । वह समाज तो है लेकिन समाज नहीं बन पाया । आप का विचार क्या है
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