सामाजिक न्याय की
संकल्पन इस आधार पर किया गया की जाति व्यवस्था को समाप्त करने का एक मात्र रास्ता
है । जिसमे भारतीय वेवस्था वर्ण और जतियों पर आधारित है। जिसमें मनुष्य का भाग्य
और जाति जन्म से ही तय कर कर दिया जाता है। समाजिक न्याय का विकेंदरीकरण जो नियम है क्या आज
उस गरीव समुदाय के पास पहुच पा रहा है या नहीं आज निषाद समाज को एक मात्र आरक्षण
पर विचार किया जाय तो इस समाज को हर प्रदेश में अलग-अलग तरह से आरक्षण देकर गुमराह
कर के रख दिया गया है। मजधार में है निषाद समाज ये समाज खुद दूसरे को मजधार से
निकालने का काम करता है और ये समाज खुद मजधार राज्य में निषाद समाज के कुछ जतियों
को पिछड़ा (ओबीसी) में है कुछ को (एससी) में (एसटी) में रखा गया है ये समाज समझ
नहीं पा रहा है की आखिर किस ओर जाय जैसे उत्तर प्रदेश में आज सामाजिक न्याय के रूप
में आरक्षण है जो निषाद समाज का अपना सामाजिक अधिकार है जो आरक्षण है जो मिलना
चाहिए उस पर हर राजनीतिक पार्टीया अपने अपने तरीका से गेम खेल रही है। सामाजिक
न्याय दिलाने के वजाय राजनीति किया जा रहा है
जबकी सामाजिक न्याय अधिकारों विकेनद्रीकरण कर
कमजोर जतियों का शक्तीकरण किया जाता है। उसका वर्चस्व के लिए स्थान दिया जाता है। लेकिन वर्चस्व के वजाय आज निषाद समाज में गरीबी,भुखमरी,शोषण,आज तमाम प्रस्थितियों, से गुजर रहा है इसका सुनने वाला कोई नहीं
है आज इस समाज हर तरह से लूटने का काम किया जा रहा है जैसे राजनीति करके,अशिक्षितकरके,भूमहीन बनाकर,मजदूर बनाकर, जिसको जिस तरह मिल रहा है वह वैसे ही
लूटने का काम कर रहा है ,
अभी उत्तर प्रदेश में सत्रह जतियों को अनुसूचित में समिल करने के लिए केंद्र
से सिफारिश की है । जाबिक सपा सरकार जानती है की इस पर अमल करना फिलहाल अशान नहीं
है । क्योकि केंद्र में काग्रेस के लिए आम चुनाव के मुद्देनज़र अपना समीकरण होगा।
यहा समस्या के समाधान की जगह समीकरण महत्तवपूर्ण है। जबकि प्रदेश सरकार ने माना की
अति पिछड़ों का आरक्षण में मछुआ समाज का लाभ नहीं मिला है जिन पिछड़ा जतियों को
अनुसूची वर्ग में भेजने से परेशानी कम नहीं होगी वह पहले से ही अति दलित वर्ग
मौजूद है । जो आज भी बंचित है ।
उत्तर प्रदेश में राजनाथ सिंह सरकार ने भी इस दिशा की पहल की थी 2001 ने
प्रदेश सरकार ने सामाजिक न्यया समिति का गठन किया था । मछुआ समाज के साथ अन्य जतियों
के लिए चौदह प्रतिशत आरक्षण के सिफारिश की गई थी । इतना ही नहीं जतियों के पेशा के
आधार पर पुस्तौनी पेशेवर सुबिधा को ध्यान में रखकर जारी किया गया था लेकिन लागू
नहीं हो सका।
2002 में सामाजिक न्याया समिति में विशेष सुबिधा था लेकिन उस पर ध्यान नहीं
दिया गया । जबकि मंझवार,बेलदार टूरेहा,खरोट गोंड खरवार आदि मछुआ
समुदाय के जातिय अनुसूचित जाति के सूचि में समिल है । संघीय गृह मत्रालय के सेंन्सस
आंफ इंडिया -1961 के अनुसार उत्तर प्रदेश की अनुसूचित जाति मझवार के प्रयर्यावची
केवट,मल्लाह, माझी,गौड़ ,विंद गोड लेकिन इनको मझवार जाति के प्रमाण पत्र
देने में बाधवों को सामना करना पड़ता है । सबसे पहले सरकार को इस पर ध्यान देने की
जरूरत है ।
उत्तर प्रदेश में 2010 में बनी सामाजिक न्याय समिति की सिफारिशो पर दलगत भावना
से ऊपर उठकर अमल किया जाना आवश्यक है । जिसमें अति पिछड़ों और अति दलित के लिए
सामाजिक न्याय सुनिश्चित किया गया है । लेकिन यह संभव नहीं है ।
मछुआ समाज को इसी के आधार पर हर राजनीतिक पार्टिया आपनी
आपनी ढफली पीट कर कहती है की हमारी पार्टी आप सभी को आरक्षण देने का काम करेगे और सामाजिक न्यया दिलाने का काम करेगे इन सब
पार्टियों को मात्र एजेंडे तक सामाजिक
न्यया दिलाने का काम रहता है । लेकिन फिर
भी समझ नहीं पा रहा है लगातार मछुआ समाज ठगा जा रहा है।
लगता है की ये समाज
ठगने के लिए ही बना है कोई भी आए और कहे की हम आरक्षण देगे उसी को आपना वोटा देने
का काम कर देता है। समाज खुद नहीं समझता की दूसरे के आगे पीछे घूमने
से अपने को खुद को मजबूत करे मछुआ समाज एक
हो दूसरी पार्टीया दूसरा कुछ नहीं करेगा बस ललीपाप देखने का काम करेगी मात्र
एजेंडे के तहत हर कोई अपने-अपने तरीका से लूटने का
काम करेगे और मछुआ समाज लुटता रहेगा मछुआ समाज अपना अधिकार जाने । सामाजिक न्याय बनाम मछुआ समाज
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