Thursday, April 18, 2013

भारतीय फिल्म और भारतीय समाज



भारतीय फिल्म के लगभग फिल्म को देखने के बाद उसके चित्रण को देख कर कोई भी इस भारतीय परिवेश को आसानी समझ सकता है। आप बहुत से फिल्म को देखे होगे जिसमें हीरों पक्ष किसी समस्या को लेकर विद्रोह करता है।  विद्रोह करने के बाद सामंतवादी लोगों उस विद्रोह को दबाने के लिए उसके पूरे परिवार को प्रताड़णा का शिकार होना पड़ता है। उसके बहूँ,बेटियों उत्पीड़न और बलत्कार कर दिया जाता है।
अब इस भारतीय पक्ष को देखा जा सकता है कि अगर सामंतवादी लोगों से विद्रोह कारोगे तो आप के परिवार के साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाएगा और शोषण का शिकार बनाया जाएगा। अब बहुल परिवार के पास यहीं समस्या है कि किसी के साथ कैसे विद्रोह करे। जब उसके सामने पूरे परिवार के साथ ऐसा व्यवहार किया जाएगा।
आज हम सब को समझने कि जरूरत है कि इस भारतीय परिपेक्ष्य में जतियों के नाम पर, धर्म के नाम पर छुआ छूट और किसी के जीने का अधिकार हीं छीन लिया गया है। हँसता खेलता परिवार को बर्बाद कर दिया जाता है। जब हीरों पक्ष किसी तरह से लाख संघर्ष करने के बाद सामंतवादी समाज को मारने का काम करता है या बदला ले पाता है। मात्र यह फिल्म तक ही समित है सच्चाई के रूप में देखने के बाद ऐसा नहीं हो पाता है। आधुनिकता समाज में आज यह समस्या तस मस बनी हुई है। उसे बाहर नहीं निकाल पा रहे है कि अपने परिवार को किस तरह के पारिवारिक मूल्य स्थापित करे कि परिवार को एक नई दिशा मिल सके।
पारिवारिक मूल्यों को हमारे धर्म से लेकर पितृसत्ता के स्वरूप को समझने कि जरूरत है कि आखिर कार किस तरह के सामाजिक संरचना किया गया है। सामाजिक संरचना में जो सिस्टम बनाएँ गए है कितने कारगर है।  समाज और परिवार के लिए कितना कारगर हो सकता है। उसकों आज भारी परिवर्तन करने कि जरूरत है। जो एक नयें समाज बन सकें और पारिवारिक मूल्य को स्थापित कर सके।  
                                             लेखक
                                           बलराम बिन्द 

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