निषाद समाज में बहुत से उप जातियों के रूप में बटे हुए होने के कारण भारतीय
स्वरूप में गरीबी के रूप में शिकार हो रहा है, जबकि यह समाज खुद शिकार करने वाला समाज आज खुद ही शिकार बना हुआ है इस उपभोक्तावादी
समाज में आज इसके जीतने रूप है वह उपभोग के रूप में बना हुआ है,
गांवों में उपभोग –
गाँव के संरचना को देखने के बाद इन मछुआरों के जीतने गाँव में देखा यह गरीबी
से जूझ रहा है, यह भूमहीन होने के
कारण यह सवर्ण परिवार के घरों पर काम करते है या तो मजदूरी करते हुएँ नजर आते है। उस
पुजीवादी संरचना में यह आएं दिन उपभोग होता रहता है। इसे गाँव में इस समाज को बनिहारके
रूप में,और दूसरे पर आश्रित के रूप में नजर आते है। जिसका कारण
है, की यह समाज मात्र उपभोग के रूप में बने रह गए है। गाँव के
सामाजिक संरचना की गई है। या बनी हुई है।उपभोग
के रूप में बनी है। गरीब और अशिक्षित होने के कारण यह निषाद समाज (मछुआ समाज ) उपभोग
वाला सिस्टम बनाने में असमर्थ है। जिस इस समाज के सामने बहुत से दिक्कतों को सामना
करना पड़ रहा है। निषाद समाज जिस दिन अपना स्वरूप और सिस्टम बनाने को रूप ले लेगा वह
दिन दूर नहीं होगा जिस दिन समानता, और कंधे से कंधा मिलकर चलाने
लगेगा
समय के साथ उपभोग –
गांवों में जब निषाद समाज के सभी उप जतियों जैसे- बिन्द, मल्लाह, साहनी ,तुरहा, कश्यप,आदि को देखा तो वह
अभी वह बैशाख के महीने में दूसरे के खेतों में अपने बाल-बच्चे के साथ कटाई में लगे
हुएँ है। और उसके बदले में दिन-भर मेंहनत करने
के बाद वह कुछ अनाज मिल जाएगा जिसे उसका भोजन के रूप अपने इस पापी पेट को भरने के लिए
कोशिश करता है। इस तरह से भूमहीन होने के कारण वह जब-जब खेतों में काम करने का समय
आता है, दिन-रात मेहनत करता है। जिसे उसके बाल-बच्चे को वह मौसम
के अनुरूप भोजन को इक्कठा करता है, जरूरत पड़ने पर अपने बच्चों
को भोजन के लिए पलायन भी करता रहता है। अपना सामाजिक पृस्ठभूमि को बदल सके ।
चुनाव के समय उपभोग –
यह समाज में गरीबी होने के कारण लोकतान्त्रिक देश में समय-समय पर चुनाव होता
रहता है। चाहे वह ग्राम प्रधान का चुनाव हो या लोक सभा का जब नेता लोग आते है, तो इस समाज को यह दिलासा दे कर जाते है, कि हम विकास करगे लेकिन मात्र कहने के लिए है, कि हम
विकास करगे चुनाव जैसे नजदीक आने लगता है। वह उस शराव, साड़ी,पैसा पर उसे खरीद-फरोक्त कर दी जाती है। उसे उपभोग के रूप में स्वीकार कर लिया
जाता है कि ये समाज तो कुछ दे दो और वह अपना कीमती वोटो आराम से देने का काम करेगा
और दे देता है।
इस तरह से निषाद समाज के जीतने भी जातीय है वह समय के साथ उपभोग बनती रहती है।
इस सामंती वेवस्था में वह निकाल नहीं पा रहा है आखिर किस दिशा में जाय की एक आशा की
किरण मिल जाय अपना विकास कर सके ।
जय
निषाद –जय भारत
लेखक
बलराम बिन्द
No comments:
Post a Comment